भोजन हमारे जीवन रूपी वाहन का प्रमुख ईंधन है, भोजन ग्रहण करते समय हम उसके स्वाद पर विशेष ध्यान देते हैं। यदि कोई मीठा खाद्य पदार्थ हो तो उसे हम बिना सोचे समझे थोड़ा तो चख ही लेते हैं। मीठा एक ऐसा स्वाद है, जो व्यक्ति को बचपन से ही पसंद होता है। इसको यदि हम स्वादों का राजा भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज के समय में चीनी विश्व स्तर पर मीठे का सबसे बड़ा स्त्रोत है, यह स्वाद के साथ-साथ शर्करा, फ्रक्टोज (fructose), गैलेक्टोज (galactose) का भी मुख्य स्त्रोत है। ब्राजील के बाद भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राष्ट्र है।
इतिहासकारों के अनुसार चीनी का उत्पादन भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ जिसके साक्ष्य हमें दूसरी शताब्दी ईसापूर्व महर्षि पतंजलि द्वारा लिखे गये महाभाष्य में मिलते हैं। इसमें इन्होंने अन्य खाद्य पदार्थों के साथ चीनी का भी उल्लेख किया है। इसके साथ ही 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी के मध्य के तमिल संगम साहित्य में गन्ने की खेती तथा आयुर्वेद में गुड़ या अपरिष्कृत चीनी का वर्णन देखने को मिलता है। यह स्वेत स्वर्ण उपनिवेशों के माध्यम से विश्व स्तर पर फैला। पहली शताब्दी ईस्वी में यूनानी चिकित्सक पेडानियस डिओस्कोराइड्स (Pedanius Dioscorides) ने अपने चिकित्सा ग्रंथ डी मटेरिया मेडिका (De Materia Medica) में चीनी का वर्णन किया है। इसी दौरान रोम के प्लिनी द एल्डर (Pliny the Elder) ने भारतीय चीनी को चिकित्सा की दृष्टि से अधिक उपयोगी बताया।
यूरोप में पहली शताब्दी तक चीनी का प्रवेश हो गया था। अब तक भी चीनी अपने क्रिस्टलीय स्वरूप में नहीं आयी थी। पांचवी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के दौरान इसके क्रिस्टलीकरण की खोज की गयी जिसे भारतीय स्थानीय भाषा में खण्ड कहा गया जिसे कैण्डी (candy) शब्द का स्त्रोत भी माना जाता है। जिसे भारतीय नाविकों द्वारा जिसका प्रचार प्रसार किया गया। 7वीं शताब्दी में हर्षवर्धन के शासन काल के दौरान चीनी बौद्ध यात्रियों ने भारतीयों से ही चीनी बनाने की प्रक्रिया सीखकर, चीन में अपने पहले गन्ने के बागान लगाये तथा इसका क्रिस्टलीकरण प्रारंभ किया। देखते ही देखते चीनी दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और चीन में व्यंजन बनाने का एक अभिन्न अंग बन गयी।
12वीं शताब्दी में वेनिस ने टायर के पास चीनी उत्पादन और यूरोप में इसके निर्यात हेतु अपनी जागीर स्थापित की। 15वीं शताब्दी में वेनिस यूरोप का मुख्य चीनी परिष्करण और वितरण केंद्र बना। सिडनी मिन्ट्ज़ (Sidney Mintz) की पुस्तक "स्वीटनेस एंड पावर" (Sweetness and Power) में चीनी के उत्पादन और उपभोग के इतिहास के विषय में विस्तृत जानकारी दी गयी है। इसके अनुसार 1400-1800 के मध्य चीनी उत्पादन ने उपनिवेशों, किसानों, चीनी दलालों और उपनिवेशकों आदि को बढ़ावा मिला। 1500 और 1815 के ब्राजील के पुर्तगाली उपनिवेशियों ने यूरोप में चीनी की आपूर्ति की। इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देख यूरोपीय उपनिवेशों ने गन्ने की खेती के लिए उपर्युक्त क्षेत्रों का चयन किया। गन्ने की खेती और चीनी उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में दासों को लगाया जाता था तथा दास प्रथा इस दौरान अपने चरम पर पहुंच गयी।
पंद्रहवीं शताब्दी में अपनी समुद्री यात्रा के दौरान कोलंबस पहली बार गन्ने की फसल से परिचित हुआ तथा 1501 में कैरेबिया के हिस्पानियोला (Hispaniola) में पहली बार गन्ने की खेती की गयी। अठारहवीं शताब्दी में सेंट डोमिंग्यू (Saint Domingue) (अब हाइती) के फ्रांसीसी उपनिवेश कैरेबिया में बड़े चीनी उत्पादक के रूप में उभरे। 18 शताब्दी में चीनी यूरोप में विशिष्ट खाद्य वस्तु बन गयी। चीन की तीव्रता से बढ़ती मांग के कारण इसकी एकल कृषि ने अन्य खाद्य और व्यापारिक फसलों के उत्पादन पर विपरित प्रभाव डाला। 1960 और 1980 के दशक में ब्राजील में एकल कृषि का इतना प्रभाव पड़ा कि खाद्य अनाज का अस्सी फीसदी भाग आयात करना पड़ा। प्रथम विश्व युद्ध तथा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी इसका उपयोग व्यापक रूप से देखने को मिला। आज भी विश्व में अनगिनत रूप से चीनी का उपयोग देखने को मिलता है।
चीनी कुछ प्रमुख प्रकार और उसके उपयोग इस प्रकार हैं :
ब्राउन (Brown) या भूरी चीनी : यह अपरिष्कृत या आंशिक रूप से परिष्कृत मुलायम चीनी है जिसमें गुड़ के साथ चीनी क्रिस्टल होते हैं। वे सिके हुए खाद्य पदार्थ, मिठाईयों और टोफियों में उपयोग किया जाता है।
दाने दार चीनी : इसका उपयोग गर्म पेय (कॉफी और चाय), सिके हुए खाद्य पदार्थ (कुकीज़ (cookies) और केक (cake)), मिठाई (पुडिंग और आइसक्रीम) आदि में मिठास देने हेतु किया जाता है। इन्हें सूक्ष्म जीवों द्वारा विकृत किये जाने वाले भोज्य पदार्थों को बचाने के लिए भी किया जाता है।
तरल शर्करा : तरल शर्करा एक प्रबल चाशनी है, इसे 67% दाने दार चीनी को जल में विघटित करके तैयार किया जाता है। इन्हें पेय पदार्थ, हार्ड कैंडी (hard candy), आइसक्रीम जैसे आदि खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जाता है।
न्यून कैलोरी शर्करा (Low-calorie sugar) : यह माल्टोडेक्सट्रिन (Maltodextrin) में अतिरिक्त मिठास मिलाकर तैयार की जाती है। माल्टोडेक्सट्रिन में सुपाच्य कृत्रिम पॉलिसैकेराइड (polysaccharide) होता है, जिसे ग्लूकोज अणुओं की छोटी श्रृंखला तथा स्टार्च के आंशिक जलीय संलयन द्वारा बनाया जाता है।
बूरा/गुड़/खांडसारी : यह गन्ने के रस से ग्रामीण क्षेत्रों व्यक्तिगत स्तर पर बनाई जाती है तथा इसका रंग गहरा होता है। गुड़ का उपयोग शराब, चीनी तथा ईंधन के लिए इथेनॉल (ethanol) बनाने में किया जाता है।
इनवर्टर शुगर (Invert sugars) : चीनी चाशनी में अम्ल की सूक्ष्म मात्रा को मिलाकर बनाया जाता है। इसमें चीनी ग्लूकोज और फ्रक्टोज के रूप में टूट जाती है। ब्रेड (bread), केक (cake) और पेय पदार्थों में इनका उपयोग किया जाता है।
मिल्ड शुगर (Milled sugar) : यह खाद्य पदार्थों को पकाने या सेंकने तथा मिठाईयों आदि में चीनी पाउडर के रूप में उपयोग किया जाता है।
पॉलिओल्स (Polyol) शर्करा: यह मुख्यतः शराब और च्यूइंगम (chewing gums) में उपयोग होने वाली शर्करा है।
स्क्रीन्ड (Screened) शर्करा: यह शर्करा अनाज की आकृति के अनुसार तैयार की जाती है। सूखे और बेकिंग (baking) खाद्य पदार्थों, मिठाईयों आदि में इसका उपयोग किया जाता है।
घनीय शर्करा (sugar cubes): यह हल्की भापित सफेद और भूरे रंग की दाने दार ब्लॉक (block) आकार की शर्करा है। इसे सामान्यतः पेय पदार्थों में उपयोग किया जाता है।
शुगरलोफ (Sugarloaf) : इस शंक्वाकार की परिष्कृत चीनी का उत्पादन 19वीं सदी तक किया जाता था। जर्मनी, ईरान, मोरक्को में आज भी उपयोग किया जाता है।
चाशनी या राब : बेक्ड (baked) खाद्य वस्तु, मिठाई आदि को विशिष्ट स्वाद देने के लिए इसे उपयोग किया जाता है।
फल शर्करा : शराब बनाते समय किण्वन प्रक्रिया द्वारा फल शर्करा को शराब में परिवर्तित कर दिया जाता है।
चीनी उत्पादन में भारत की प्रारंभ से ही विश्व में विशेष भूमिका रही है। भारत के चीनी उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश (24%), महाराष्ट्र (20%), गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश आदि शामिल हैं। भारत में 453 चीनी मिलें हैं जिनमें से 252 सहकारी, 134 निजी और 67 सार्वजनिक क्षेत्र की मिलें हैं। गन्ना उत्पादन की दृष्टि से मेरठ का उत्तर प्रदेश में श्रेष्ठ स्थान है, किंतु यहां चीनी का उपयोग ज्यादा प्राचीन नहीं है। पिछले कुछ समय में अपवाह फैलाई गयी कि भारत में निर्मित चीनी में अस्थियां मिलाई जाती हैं, किंतु जब 2017 में भारत की पांच चीनी के नमूनों का एनएबीएल (राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (National Accreditation Board for testing and calibration Laboratories)) में पशुओं की अस्थियों के डीएनए के साथ परीक्षण किया गया तो ज्ञात हुआ कि इसमें किसी प्रकार की अस्थियों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह पूर्णतः शाकाहारी है। चीनी का उत्पादन गन्ना, चुकंदर, ज्वार, नारियल, जौ, अंगूर, साबूदाना, मेपल (maple), शहद आदि से किया जाता है। विश्व भर में चीनी का उत्पादन दानेदार, भूरे, तरल और प्रतीप शर्करा के रूप में होता है।
संदर्भ:
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