भारतीय संस्कृति में हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति का पहला माध्यम भोजन है अर्थात जीवन की हर खुशी जैसे जन्म, विवाह इत्यादि के जश्न में खाना, दावत, पार्टी के अतिरिक्त कोई अन्य अपेक्षा नहीं की जाती है, क्योंकि मानवीय जीवन में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत भोजन ही है। भोजन हमारी संस्कृति की अभिव्यक्ति का भी सबसे बड़ा माध्यम है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध व्यंजन जैसे गुजरात का ढोकला, मुंबई की पावभाजी, हैदराबाद की बिरयानी, राजस्थान का दाल बाटी चूरमा इत्यादि। भारत में एक ही व्यंजन को अनेक प्रकार से तैयार किया जाता है, जैसे हैदराबाद की बिरयानी की ही बात की जाए, यह अनेक तरीकों से बनायी जाती है तथा भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती है। जो भारत के अन्य भागों में भी प्रसिद्ध है, जिनमें से एक है हैदराबाद की हलीम बिरयानी जो कि मेरठ में अत्यंत लोकप्रिय है।
वास्तव में हलीम बिरयानी अरब का व्यंजन है जिसका सर्वप्रथम उल्लेख 10वीं शताब्दी में अरेबियन लेखक अबू मुहम्मद अल-मुजफ्फर इब्न सय्ययार ने हरीस नाम से किया है। इनके द्वारा व्यंजनों पर लिखी गयी पुस्तक विश्व की सबसे पुरानी अरेबियन कुकबुक (cookbook) है, जिसे किताब अल-ताबीख (व्यंजनों की पुस्तक) नाम से जाना जाता है। मध्य एशिया में अरब साम्राज्य में विस्तार के साथ हरीस इनका एक प्रतीकात्मक व्यंजन भी बन गया था। भारत से इसका परिचय हैदराबाद के निजाम के अरेबियन सैनिकों ने करवाया बाद में इसे हैदराबाद के लोगों द्वारा हलीम नाम दिया गया। अकबर की आइन-ए-अकबरी में भी हलीम का उल्लेख देखने को मिलता है, जिसका अर्थ है कि मुगलों द्वारा 16वीं शताब्दी तक हलीम भारत में ला दी गयी थी।
आज हैदराबादी हलीम विश्व भर में प्रसिद्ध है तथा वर्ष भर इसे बड़े चाऊ से लोगों द्वारा खाया जाता है। यदि इसके सांस्कृतिक परिदृश्य की बात करें तो रमजान और मुहर्रम के महीने में भारतीय और पाकिस्तानी, बांग्लादेशी मुस्लिमों के मध्य इसका विशेष महत्व है, जिसे उपवास समाप्त करने के उपरांत प्रमुख रूप से परोसा जाता है। रमजान के महीने में हैदराबाद की हलीम बिरयानी विश्व भर में निर्यात की जाती है, जिसे प्रारंभ करने में व्यवसायी एम डी माजिद का विशेष योगदान रहा है। हैदराबाद की पारंपरिक हलीम को गेहूं, जौ, चने, मसूर, मांस और तेलंगाना के प्रसिद्ध मसालों से तैयार किया जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम रातभर गेहूं, जौ, चने, मसूर को भिगाया जाता है, तथा मसालों के साथ मीट का कोरमा तैयार किया जाता है। इसके पश्चात गेहूं, जौ, चने, मसूर को उबालकर मीट के साथ मैश किया जाता है। इस जायकेदार हलीम को पकाने में लगभग 6 घण्टे का समय भी लग जाता है। हैदराबादी हलीम को भारत के प्रसिद्ध जीआई (Geographical Indication) के टैग से भी नवाजा गया है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Haleem
2.https://timesofindia.indiatimes.com/home/sunday-times/deep-focus/How-haleem-became-the-new-biryani/articleshow/47941113.cms
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