ज्यामिति और खगोल विज्ञान का एक स्‍वरूप वैदिक कालीन वेदियां

मेरठ

 03-12-2018 05:25 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

सनातन धर्म या हिन्‍दू धर्म का सबसे प्राचीन ग्रन्‍थ वेदों को माना जाता है, उनमें से भी सबसे प्राचीन या पहला वेद ऋग्‍वेद है। वेदों में तत्‍कालीन समाज की जीवन शैली, धार्मिक कर्म-काण्‍ड, व्रत, अनुष्‍ठान इत्‍यादि का वर्णन किया गया है। साथ ही इनमें देवताओं की स्‍तुती का विशेष महत्‍व रहा है, जो यज्ञ, अनुष्‍ठान और मंत्रोच्‍चारण से संपन्‍न की जाती थी। यज्ञ और अनुष्‍ठानों को वेदी के माध्‍यम से पूर्ण किया जाता था, जिसका उपयोग हम आज भी देख सकते हैं। आज हम श्री सुभाष काक द्वारा लिखे गए पेपर 'एस्ट्रोनॉमी एंड इट्स रोल इन वैदिक कल्चर' (Astronomy and its Role in Vedic Culture) का अध्ययन कर इस विषय में थोड़ा और ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।

वैदिक काल में तैयार की जाने वाली वेदियों में ज्यामिति और खगोल विज्ञान का विशेष ध्‍यान रखा जाता था अर्थात अनुष्‍ठान हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली वेदियों में चन्‍द्र वर्ष और सूर्य वर्ष के मिलन की खगोलीय संख्‍याओं को प्रयोग किया जाता था। वेदों में उल्लिखित खगोलीय जानकारी ने आधुनिक खगोल शास्त्रियों के लिए एक पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाई है। तीन प्रकार की वेदियां संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड (आकाश, अंतरिक्ष और पृथ्‍वी) को इंगित करती हैं, जिसमें पृथ्‍वी के लिए गोलाकार तथा आकाश के लिए वर्गाकार वेदियों का प्रयोग किया गया। एक आयताकार वेदी का वृत्‍तीय मान तथा एक वृत्‍ताकार वेदी (पृथ्‍वी) का आयताकार (आकाश) मान बराबर करना एक ज्‍यामितीय समस्‍या थी, जो प्राचीन ज्‍यामितीय की पहली समस्‍या भी मानी जाती है।

अग्नि वेदियां 21 पृथ्‍वी वेदी के, 78 अंतरिक्ष वेदी के, 261 आकाश वेदी के पत्‍थरों से घिरी होती हैं। इन्‍हीं संख्‍याओं को तीनों (पृथ्‍वी, अंतरिक्ष, आकाश) के प्रतीकात्‍मक रूप में व्‍यक्‍त किया गया। पृथ्‍वी और ब्रह्माण्ड के द्विभाजन को ध्‍यान में रखते हुए इसके लिए 21 और 339 संख्‍याएं इंगित की गयी हैं क्‍योंकि ब्रह्मांड में अंतरिक्ष और आकाश भी शामिल हैं। हजारों ईंटों से तैयार की जाने वाली इन पांच परतों की वेदी के निर्माण हेतु अनेक बीजगणितीय और ज्यामितीय समस्‍याओं से होकर गुजरना पड़ता था। इसलिए इसमें सामान्‍य और विशेष दो प्रकार की ईंटों का प्रयोग किया गया। वर्ष के 360 दिन तथा 36 अंतराल महीने को इंगित करने के लिए 396 विशेष ईंटों का प्रयोग किया गया। इसी प्रकार वेदी की परतों में प्रयोग होने वाली ईंटों की भिन्‍न-भिन्‍न संख्‍याओं का योग तिथियों, चन्‍द्र वर्ष के दिनों तथा एक वर्ष में मुहुर्तों की संख्‍या इत्‍यादि को दर्शाते हैं।

ऋग्वेद के अक्षरों की संख्या 4,32,000, चालीस वर्षों में आने वाले मुहूर्तों की संख्या के समान है, जो एक प्रतीकात्मक वेदी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऋग्वेद के छंदों की गणना हम चालीस वर्षों में आकाश के दिवसों की संख्या या 261×40= 10,440 से कर सकते हैं और सभी वेदों के छंद की गणना 261×78= 20,358 से कर सकते हैं।

ऋग्वेद के 1,017 सूक्तों को 216 समूहों में दस पुस्तकों में विभाजित किया गया है। इन संख्‍याओं को ऋग्‍वेद के ब्राह्मणा में वर्णित पांच-परतों वाली वेदी के समान माना जाता है, इसमें प्रथम दो पुस्‍तकें पृथ्वी और आकाश के मध्य अंतरिक्ष के रूप में मध्यवर्ती की भूमिका निभाती हैं। अंतरिक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाली संख्या 78 को 3 गुणक के साथ तीनों लोक के लिए प्रयोग किया जाए तो यह 234 सूक्तों का निर्माण करती है, जोकि इन दोनों पुस्तकों की वास्तविक संख्या है। जैसा कि आप नीचे देख सकते हैं कि ऋग्वेद की पुस्तकों को पांच-परतों वाली वेदी की पुस्तकों के प्रतिनिधित्व के रूप में देखा जा सकता है:

वेदी की पुस्तकें

वहीं जब वेदी पुस्तकों में सूक्तों की संख्या का उपयोग किया जाता है तो हमें निम्न संख्याओं की प्राप्ति होती है:

इस क्रम का चुनाव सूक्तों में नियमितता को प्रेरित करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार सूक्तों की गणना दो कॉलमों में विकर्ण के रूप में अलग-अलग होती हैं। अतः हम ऋग्‍वेद में वर्णित वेदियों को एक आदर्श वेदी के रूप में इंगित कर सकते हैं।

संदर्भ:
1.Astronomy and its Role in Vedic Culture, Subhash Kak

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