कई लोग अपनी दैनिक कार्यों से अलग अपने पसंद का कोई कार्य करते हैं, ऐसा कुछ जो उनके शौक में शामिल हों और जो उनमें नयी ऊर्जा का संचार करें, जिसे करना उन्हें रूचिकर लगता हो। बहुत से लोगों को पढ़ना, खेलना, संगित का अध्यय करना, कुछ संरक्षित करना आदि का शौक होता है। ऐसे ही कुछ लोगों को माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करना मनोरंजक लगता है।
माचिस की डिब्बी तथा इन पर अंकित चित्र, मैचबुक्स, मैच सेफ इत्यादि माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करने के शौक को फिल्लुमेनी (Phillumeny) कहते हैं। माचिसों को इकट्ठा करने का शौक मचिसों की उत्पत्ती के साथ ही लोगों में उभरने लगा था। वहीं अक्सर जो लोग विदेश जाते हैं वे वहां के स्मृति चिन्ह के रूप में माचिस के डिब्बे साथ में ले आते हैं। साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बहुत से माचिस के कारखानों नें स्थानीय फिलूमेनिस्टों (Phillumenists) के साथ काम कर विशेष गैर-विज्ञापन सेट जारी किए थें। माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करने का शौक 1960 से 1980 के दशक तक विशेष रूप में व्यापक हुआ। वर्तमान में कुछ संग्रहों में 1810-1815 में उत्पादित रासायनिक माचिसों पर अंकित चित्रों को ढुंढना काफी आसान है।
माचिस की डब्बियों को इकट्ठा करना काफी मनोरंजक, सस्ता और बहुत अधिक स्थान न लेने वाला शोक है। लेकिन इनहें इकट्ठा करने से पहले यह जान लें कि कौन सी माचिस की डब्बी आकर्षक होती हैं और इसे प्रदर्शन के लिए कैसे तैयार करना है।
माचिस की डिब्बियों में क्या इकट्ठा करना चाहिए?
व्यवसाय और दुकानों नें 1800 के दशक से इकट्ठे करे हुए कई प्रकार के माचिस के डब्बे बेचे। इन्हें इकट्ठा करने से पहले इस चीज का निर्णय लें कि आपको माचिस के डिब्बे इकट्ठे करने हैं या मेचबुक्स को इकट्ठा करना है साथ ही इनके विषय में कुछ जांच भी कर लें। ज्यादातर संग्रहकरता माचिस और माचिस के डिब्बे से ज्यादा उसमें अंकित चित्रों पर आक्रषित होते हैं। हालांकि, संपुर्ण डिब्बों और बुक्स की कीमत मान्य होती है। याद रखें कि अक्सर एक आकर्षक कहानी को संबोधित करती हुई चित्र को इकट्ठा करें। साथ ही अच्छी तरह से संरक्षित और उपयोग ना की गयी माचिस के डिब्बे इकट्ठे करें, जिनमें कोई क्षति या रगड़ ना लगी हो।
संग्रहण के लिए माचिस के डिब्बे और मेचबुक्स को तैयार करना।
संरक्षित की गई माचिस के डब्बे और मेचबुक्स को पहली बार प्रदर्शन के लिए तैयार करने से पहले नई माचिस की डिब्बियों में अभ्यास करें। पहले माचिस के डब्बों और मेचबुक्स को सावधानी से समतल करें। इसके लिए आप तेज और समतल चाकु का या गरम लोहे की किसी वस्तु का इस्तेमाल कर सकते हैं। माचिस की डिब्बी तो आसानी से खुल जाएगी, लेकिन मेचबुक्स को समतल करने के लिए चाकू के किनारे के उपयोग से धीरे-धीरे खोले और उस से स्टेपल (staple) को हटा दें। मेचबुक के अंदर तिलियां चिपकी हुई होंगी, उन्हें सावधानी से निकालें। इन्हें संरक्षित करने के लिए विशेष पृष्ठों के साथ एल्बम उपलब्ध हैं।
कई फिल्लुमेनिसट विश्व में एक उल्लेखनीय छवी बनाए हुए हैं, जैसे :- जापान के टीची योशिज़ावा (Teiichi Yoshizawa) को गीनिस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness Book of World Records) में दुनिया के शीर्ष फिल्लुमेनिसट के रूप में सूचीबद्ध किया गया। और पुर्तगाल के जोस मैनुअल परेरा (Jose Manuel Pereira) नें एल्बमों की एक श्रृंखला प्रकाशित की और "फिलएल्बम (Phillalbum)" नामक मैचबॉक्स के संग्रह का प्रदर्शन किया।
भारत में भी कई फिल्लुमेनिसट हैं जिनको माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करने का शोक है। जिनमें से एक दिल्ली की श्रेया कातुरी, दिल्ली में स्थित गौतम हेममाडी और चेन्नई के रोहित कश्यप शामिल हैं। दिल्ली की श्रेया कत्युरी के पास वर्तमान में 900 से अधिक माचिस के डिब्बे और उनमें अंकित चित्रों का संग्रह है। साथ ही गौतम हेममाडी के पास अब तक संरक्षित की गई 25,000 माचिस के डिब्बे, उसमें अंकित चित्र और कवर उनके संग्रह में शामिल हैं। वहीं रोहित कश्यप ने पांचवी कक्षा की ऊमर से ही माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था, और उनके 30 साल से अधिक के संरक्षण में 108 विभिन्न देशों से 80,000 माचिस के डिब्बे, उसमें अंकित चित्र और कवर शामिल है।
संदर्भ:
1.http://www.pittwateronlinenews.com/Collecting-Matchboxes-History-and-Art.php
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Phillumeny
3.https://www.hindustantimes.com/brunch/heard-of-phillumeny-meet-india-s-matchbox-collectors/story-LFY204Lq5iWI0dzmD8ONCK.html
4.http://www.phillumeny.com/
5.https://www.bbc.com/news/world-asia-india-36467415
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.