भारतीय कला की समय अवधि का एक संक्षिप्त परिचय

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
24-11-2018 12:45 PM
भारतीय कला की समय अवधि का एक संक्षिप्त परिचय

कला मानव मन की ऐसी रचनात्मक प्रदर्शनी है, जिसके माध्यम से वास्तविक और काल्पनिक स्थितियों को चित्रित किया जाता है। जब हम कला की बात करते हैं तो उसका अभिप्राय, वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला से होता है। एक कलात्मक और अनूठी पहचान से किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वहीं अगर बात की जाए भारतीय कला की तो, उसमें भी विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनमें प्रतिमा कला (जैसे, मिट्टी के बर्तन, मूर्तिकला), दृश्य कला (उदाहरण के लिए, पेंटिंग (Paintings)), निष्पादन कला और वस्त्र कला शामिल हैं। भारतीय कला का इतिहास काफी पुराना और अद्भुत है, आइए भारतीय कला के समय के साथ विकास पर एक नज़र डालें।

प्राचीन भारतीय कला:


पाषाणकाल की कला:
पाषाण काल में भारतीय कला में उभरी हुई नक्काशी, खुदी हुई नक्काशी और चित्रकला शामिल हैं। वहीं भारत में 1300 से अधिक स्‍थानों पर लगभग एक लाख पाषाणकालीन चित्रकला की आकृति प्राप्‍त हुयी हैं। सबसे पहली भारतीय पाषाण कला को आर्किबाल्ड कार्लाइल (Archibald Carlleyle) द्वारा खोजा गया था, हालांकि उनके इस कार्य पर जे कॉकबर्न (J Cockburn) (1899) द्वारा प्रकाश डाला गया। पाषाण कला का प्रमाण मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका की गुफाओं से प्राप्त होता है। इसकी खोज का श्रेय प्रोफेसर विष्णु वाकणकर को जाता है, इनके द्वारा विंध्य पर्वत श्रृंखला में कई चित्रित गुफाओं की भी खोज की गयी। भीमबेटका की गुफाओं से प्राप्त मानव द्वारा निर्मित चित्र तथा पत्‍थर के औजार पाये गये हैं। भीमबेटका को यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता (5000 ईसा पूर्व - 1500 ईसा पूर्व):
पाषाण काल के सैंकड़ों वर्षों के बाद सिन्धु घाटी की हड़प्पा नामक प्राचीन सभ्यता का विकास हुआ। इनकी खुदाई के दौरान इनकी कला के कई नमुने सामने आए। कई प्रकार की सोने, टेराकोटा (Terracotta) और पत्थर की नर्तकी की मूर्ती; इसके अतिरिक्त टेराकोटा मूर्तियों में गायों, भालू, बंदरों और कुत्ते की मूर्तियाँ शामिल थीं। सिन्धु घाटी के मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांस्य नर्तकी की मूर्ति काफी मशहूर है, जो इस समय की उन्नत मॉडलिंग (Modelling) को दर्शाती है। और कई योग अवस्था में बैठी हुई मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं।

मौर्य कला (322 ईसा पूर्व - 185 ईसा पूर्व):
उत्तर भारतीय मौर्य साम्राज्य में अशोका द्वारा उनके बौद्ध धर्म अपनाने के बाद कई अद्भुत मूर्तियां बनवाई गईं। हालांकि मौर्य काल में बनायी गई मूर्तियां बहुत कम बची हुई हैं। सबसे मशहूर बची हुई मूर्तियाँ अशोक के कई स्तंभों पर बड़े जानवरों की मूर्तियां हैं। वहीं प्रसिद्ध अशोक लाट (चार एशियाई शेरों) को भारतीय आज़ादी के बाद भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया था।

बौद्ध कला (1 ईसवी - 500 ईसवी):
बौद्ध कला का प्रमुख अस्तित्व मौर्य की अवधि के बाद शुरू हुआ। जिनमें सांची, भरहुत और अमरावती जैसी कुछ प्रमुख जगहें शामिल हैं। रॉक-कट चैत्य (Rock-cut Chaitya) प्रार्थना कक्षों और मठवासी विहारों के मुखौटे और अजंता, करले, भाजा और अन्य जगहों पर पर गुफाओं में प्रारंभिक मूर्तियां देखने को मिलती हैं।

गुप्त कला (320 ईसवी - 550 ईसवी):
गुप्त काल को आम तौर पर सभी प्रमुख धार्मिक समूहों के लिए उत्तर भारतीय कला का उत्कृष्ट समय माना जाता है। इसमें कई हिंदु भगवानों, बौद्ध और जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों का निर्माण हुआ। इस समय मूर्तिकला के दो महान केंद्र मथुरा और गांधार थे।

मध्य साम्राज्य और मध्ययुगीन काल (600 ईसवी – 1300 ईसवी)


दक्षिण भारत के राजवंश (तीसरी शताब्दी ईसवी - 1300 ईसवी):
पल्लवों द्वारा निर्मित महाबलीपुरम में शोर मंदिर प्रारंभिक हिंदू वास्तुकला का प्रतीक है, जिसमें हिंदू देवताओं की अखंड चट्टानों पर उभरी हुई नक्काशी और मूर्तियां देखने को मिलती हैं। इन्हें बाद में चोल शासकों द्वारा प्राप्त किया गया। इस अवधि के ग्रेट लिविंग (Great living) चोल मंदिर उनकी परिपक्वता, भव्यता और विस्तार के लिए जाने जाते हैं, और इन्‍हें यूनेस्को द्वारा विश्‍व धरोहर में शामिल किया गया है।

खजुराहो के मंदिर (800 ईसवी - 1000 ईसवी):
राजपूत राजवंशों के चंदेल वंश द्वारा खजुराहो समूह के स्मारकों (यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त) का निर्माण किया गया था। सामान्य हिंदू मंदिरों के अलावा इसमें 10% मूर्तियाँ मध्ययुगीन भारत में रोजमर्रा की सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं पर प्रकाश डालने वाले पुरुषों और महिलाओं के शरीर को दर्शाती हुई अंकित की गई हैं।

आधुनिक और औपनिवेशिक युग (1400 ईसवी - 1800 ईसवी)


मुगल कला:

हुमायूँ द्वारा दो कुशल फ़ारसी चित्रकारों (मीर सय्यद अली और अब्द अल-समद) को लाया गया। उसके बाद अकबर के काल में चित्रकला को एक राजसी कारखाने के रूप में संगठित किया गया। ‘हमज़ानामा’ के निर्माण के दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में चित्रकारों को आमंत्रित किया गया। जहाँगीर ने हस्तलिखित ग्रंथों की विषय वस्तु को चित्रकारी के लिए प्रयोग करने की पद्धति को समाप्त किया, और इसके स्थान पर छवि चित्रों, प्राकृतिक दृश्यों आदि के प्रयोग की पद्धति को अपनाया। ‘रज्मनामा’ (हिंदू महाकाव्य महाभारत का फारसी अनुवाद) और जहांगीर की ‘तुज़ुक-ए-जहाँगीरी’ का सचित्र ज्ञापन उनके शासन के तहत बनाया गया था। शाहजहाँ का सबसे उल्लेखनीय वास्तुशिल्प का योगदान ताजमहल है। शाहजहाँ के काल में तो चित्रकला पूरी तरह जारी रही, पर औरंगज़ेब की इस कला में दिलचस्पी न होने के कारण मुगल कला के संरक्षण का अंत हो गया।

ब्रिटिश काल (1841-1947):

ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय कला को एक नया रूप मिला। उस शैली में मुख्य रूप से आबरंग (पानी वाले रंग) के उपयोग से नरम बनावट और रंगत दी जाती थी। आज हमें यूरोपीय शैली के साथ भारतीय परंपराओं का संलयन राजा रवि वर्मा के तैलचित्रों से स्पष्ट रूप में प्राप्त होता है।

समकालीन कला (1900 ईसवी - वर्तमान)
1947 में आज़ादी मिलने के बाद 1952 में के.एच.आरा, एस.के.बाकरे, एच.ए.गेड, एम. ऍफ़. हुसैन और अन्य द्वारा बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप (Bombay Progressive Arts Group) की स्थापना औपनिवेशिक युग के बाद भारत को नए तरीकों से व्यक्त करने के लिए की गयी। हालांकि समूह को 1956 में विघटित कर दिया गया था, लेकिन इसने भारतीय कला के बदलाव में काफी प्रभाव डाला। वर्तमान में भारतीय कला पहले से काफी अलग है। नई पीढ़ी के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में बोस कृष्णमचारी और बिकाश भट्टाचार्य शामिल हैं। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में चित्रकारी और मूर्तिकला का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है, जिसे हम नलिनी मालानी, सुबोध गुप्ता और अन्य प्रमुख कलाकारों के काम में देख सकते हैं।

प्रासंगिक आधुनिकतावाद
1997 में आर.शिव कुमार की प्रदर्शनी ‘शांतिनिकेतन: दी मेकिंग ऑफ़ अ कंटेक्स्चुअल मॉडर्निज़्म’ (Santiniketan: The Making of a Contextual Modernism) से प्रासंगिक आधुनिकता का विचार प्रकट हुआ था। पूर्व औपनिवेशिक देश जैसे भारत में उपनिवेशों के प्रवेश के पश्चात दृश्य कला में आधुनिकता का एक नया रुप उभरकर सामने आया, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण शांतिनिकेतन है। हाल ही में प्रासंगिक आधुनिकता ने अध्ययन के अन्य संबंधित क्षेत्रों में अपना उपयोग पाया है, विशेष रूप से वास्तुकला में।

350 वर्ष का प्राचीन शहर रामपुर रोहिल्ला राजाओं द्वारा स्थापित किया गया था। रामपुर की कला भारतीय इस्लामी कला शैलियों के साथ पश्चिमी कलाओं (मुख्य रूप से गोथिक/Gothic) का एकीकरण है। इंडो-सारासेनिक (Indo-Saracenic) वास्तुकला शैलियों को रज़ा पुस्तकालय, कोठी खास बाग और अन्य शाही नवाब युग की इमारतों में देखा जा सकता है। रामपुर चित्राधार इसलिए एक समृद्ध दृश्य संग्रह है।



संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_art
2.https://globalurbanhistory.com/2017/08/03/princely-architectural-cosmopolitanism-and-urbanity-in-rampur/