किसी ज़माने में फोटोग्राफी (Photography) सम्पन्न वर्ग तक सीमित थी। उस समय फोटोग्राफी जितना बड़ा विज्ञान थी उतनी ही बड़ी कला थी। उस समय में फोटोग्राफी के उपकरणों से काम लेने के लिए काफी तकनीक तथा कौशल की जरूरत होती थी। इसीलिए पहले लोग अपने खास पलों को फोटो के रूप में कैद करवाने के लिए पेशेवर फोटोग्राफर्स (Photographers) पर ही अधिकतर निर्भर रहते थे। भारत के प्रथम पेशेवर फोटोग्राफर थे मेरठ के लाला दीनदयाल, जिन्हें राजा दीनदयाल के नाम से भी जाना जाता था। दयाल जी ने आज़ादी से पहले की कई शाही शख्सियतों और प्रसिद्ध स्थानों को अपनी तस्वीरों में संजोया है।
लाला दीनदयाल 1844 में मेरठ जिले के सरधना के एक जैन जौहरी परिवार में जन्मे थे। उन्होंने 1866 में रुड़की के थॉमसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज से तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त किया। फिर 1866 में वे इंदौर के सचिवालय में हेड ड्रॉफ्ट्स मैन नियुक्त हुए। इस बीच, उन्होंने इंदौर में ही फोटोग्राफी शौकिया तौर पर सीखना शुरू किया। उनके काम का सर्वप्रथम प्रोत्साहन इंदौर राज्य के महाराजा तुकोजी राव होलकर द्वितीय से मिला, जिन्होंन उन्हें सर हेनरी डेली (सेंट्रल इंडिया (1871-1881) के गवर्नर जनरल के एजेंट और डेली कॉलेज के संस्थापक) से मिलवाया। इन्होंने महाराजा के साथ उनके काम को प्रोत्साहित किया और उन्हें इंदौर में अपना स्टूडियो (Studio) स्थापित करने के लिए भी कहा। उसके बाद उन्होंने 1868 में अपने स्टूडियो ‘लाला दीन दयाल एंड संस’ की स्थापना की, और भारत के मंदिरों, महलों, प्राकृतिक दृश्यों, इमारतों, राजाओं और जमीनदारों के फोटो खींचे। यहां तक कि 1875-76 में, दीन दयाल ने अपने कैमरे में प्रिंस ऑफ वेल्स (Prince of Wales) को भी कैद किया था।
1880 के दशक के आरंभ में उन्होंने तत्कालीन एजेंट सर लेपेल ग्रिफिथ के साथ बुंदेलखंड का दौरा किया और वहां की सभी प्राचीन जगहों और पुरातात्विक तस्वीरों को खींचा। यह 86 तस्वीरों का एक पोर्टफोलियो था, जिसे ‘मध्य भारत के प्रसिद्ध स्मारक’ के नाम से जाना जाता है। दीन दयाल 1885 में हैदराबाद के छठे निज़ाम के दरबार के फोटोग्राफर बने, जहां दयाल ने उनके भव्य महल, अंदरूनी भागों, पुराना पुल, और मनोरंजन तथा अवकाश के दिनों होने वाली गतिविधियों के साथ-साथ शाही परिवार के फोटो को भी अपने कैमरे में कैद किया, जिस कारण निज़ाम ने उन्हें ‘बोल्ड वॉरियर ऑफ़ फोटोग्राफी’ (Bold Warrior of Photography अर्थात चित्रकारी के साहसी योद्धा) की उपाधि दी। इसी वर्ष उन्हें भारत के वायसराय का फोटोग्राफर नियुक्त किया गया। 1896 में दयाल ने बॉम्बे में अपना सबसे बड़ा फोटोग्राफिक स्टूडियो खोला। इस स्टूडियो की सबसे खास बात ये थी कि यहाँ महिलाओं की फोटोग्राफी के लिए एक अलग स्थान (ज़नाना) था, जिसे केनी-लैविक नाम की एक ब्रिटिश महिला द्वारा संचालित किया जाता था। उसके बाद 1887 में दीन दयाल को रानी विक्टोरिया का फोटोग्राफर नियुक्त किया गया था।
उनके काम की "द न्यू मीडियम: फोटोग्राफी इन इंडिया 1855-1930" (The New Medium: Photography in India 1855-1930) नामक एक प्रदर्शनी 8-10 जुलाई 2015 में, लंदन की प्रहलाद बब्बर गैलरी में लगाई गई थी। इस प्रदर्शनी में 1894 में उनके द्वारा ली गई तीन राजकुमारों की तस्वीर, जिसमें उनके मुलाज़िम भी हैं, चर्चा में रही। उनकी एक अन्य 1882 की तस्वीर में बिजावर के महाराजा भान प्रताप सिंह हैं, जिनके हाथों में तलवार और ढाल है तथा सिर पर शाही मुकुट। इस तस्वीर में राजा के साथ-साथ उनके कई मुलाज़िम भी हैं। 1885 में इनके द्वारा खींची गयी एक तस्वीर देवास के कुछ कसरतियों/खिलाडियों को भी प्रदर्शित करती है। इसके साथ-साथ इस प्रदर्शनी में भारत के अन्य शाही घरानों, महलों, मंदिरों आदि की कई तस्वीरें भी शामिल थीं जो आज़ादी के पहले के भारत की एक झलक पेश करती हैं, जो बड़े परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा था। उन्होंने अपने जीवन में भारत के लोगों के जीवन, उनके रीति-रिवाजों, उनकी संस्कृतियों और रहन-सहन से जुड़ी तस्वीरें लीं। इस प्रदर्शनी में अन्य फोटोग्राफरों के काम को भी प्रदर्शित किया गया जिन्होंने 1855-1930 के भारत को अपनी तस्वीरों में कैद किया था।
1.https://lens.blogs.nytimes.com/2015/06/18/indias-earliest-photographers/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Lala_Deen_Dayal
3.https://www.icp.org/browse/archive/constituents/lala-deen-dayal?all/all/all/all/0
4.http://prahladbubbar.com/wp/wp-content/uploads/2015/05/TheNewMedium_Final.pdf
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