देवों के देव महादेव का नाम सुनते ही मन में शिवलिंग की छवि उभरकर आने लगती है। जब भी हम मंदिर में पूजा करने जाते हैं तो हमारे द्वारा शिवलिंग पर जलाभिषेक करके भगवान शिव की आराधना की जाती है। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया कि जिस मंदिर में आप जा रहे हैं, वहां स्थित शिवलिंग कौन से प्रकार का है? जी हाँ, शिवलिंग के भी प्रकार होते हैं। जैसे मेरठ में स्थित औघड़नाथ शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग हैं, और ऐसा माना जाता है कि इस शिवलिंग के दर्शन करके लोगों की मनोकामनाएं जल्द पूरी हो जाती हैं।
मुख्यतः शिवलिंग के छः प्रकार बताए गये हैं, जो इस प्रकार हैं:
स्वयंभू लिंग: ऐसा माना जाता है कि स्वयंभू लिंग स्वयं प्रकट होते हैं।
देव लिंग: ऐसा माना जाता है कि देव शिवलिंग की स्थापना और पूजा देवी पार्वती और अन्य दिव्य देवताओं द्वारा की गयी थी। वर्तमान समय में भी ये धरती पर मौजूद हैं लेकिन इनका मूल देवों से जोड़ा जाता है।
मनुष्य लिंग: प्राचीनकाल या मध्यकाल में मानव (महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं) द्वारा स्थापित किए गए लिंग को मनुष्य शिवलिंग के नाम से जाना जाता है।
अर्श लिंग: प्राचीनकाल में मुनियों (जैसे: अगस्त्य मुनि) द्वारा स्थापित और पूजन किए जाने वाले लिंग को अर्श लिंग कहा जाता है।
असुर लिंग: असुरों द्वारा स्थापित और पूजा किये जाने वाले लिंग को असुर लिंग कहा जाता है। उदाहरण के लिए - रावण द्वारा स्थापित शिवलिंग असुर लिंग था।
बाना लिंग: बाना लिंग अधिकतर नदियों के तट पर पाए जाते हैं। "बाना" के दो अर्थ हैं - पानी और राक्षस (असुर)। ऐसा माना जाता है कि दानव बाना ने लाखों छोटे लिंगों की पूजा की थी और उन्हें गंगा, गंडकी, गोमुखी आदि जैसी कई नदियों में गिरा दिया था। ये लिंग अभी भी नदियों के तट पर पाए जाते हैं।
इन लिंगों के गुणों के आंकलन के आधार पर स्वयंभू, देव और अर्श लिंगों को उत्तम माना जाता है और बाकी सभी लिंगों को मध्यम माना जाता है।
शिव लिंग के निर्माण के पीछे विज्ञान का होना बड़ी अनुभवी संभावना है। आम तौर पर, ऋषियों द्वारा बनाए गये शिवलिंग में वैज्ञानिक आधार पाया जाता है। उनमें कुछ शाश्वत कंपन देखने को मिलता है, और उन्हें विशिष्ट उद्देश्यों और गुणों के लिए मंत्रों के उपयोग से पवित्र करके बनाया जाता था। दक्षिण भारत में प्रकृति के पांच तत्वों (पृथ्वी, अग्नि, वायु, पानी, और अंतरिक्ष) के आधार पर पांच शिवलिंग बनाए गये हैं। ये लिंग पूजा के लिए नहीं वरन साधना के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए, यदि किसी को पानी की साधना करनी होगी तो वो तिरुवन्नाइकवल (Thiruvanaikaval) जाएगा, और यदि अंतरिक्ष की, तो चिदम्बरम (Chidambaram)।
क्या आप जानते हैं, ज्यादातर लिंग एक या दो चक्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। और कई आमतौर पर केवल एक का। वहीं ध्यानलिंग सभी सात चक्रों के साथ सशक्त हैं, इसे प्राण प्रतिष्ठा द्वारा पवित्र किया गया था। जो दुनिया में बहुत कम देखने को मिलता है, वह ध्यानमिंग में देखने को मिलता है, इसकी देखभाल पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा की जाती है।
वहीं आप में से बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि मेरठ के औघड़नाथ शिव मंदिर का 1857 की क्रांति पर एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतीय सेना द्वारा मंदिर के कुएं से अक्सर पानी पीया जाता था, लेकिन एक दिन जब ब्रिटिश सेना द्वारा बंदूक की कारतूस में गाय की चर्बी का इस्तेमाल होने लगा, और उसका उपयोग कुछ सिपाहियों द्वारा किया जाने लगा, तब इस बात की जानकारी पाते ही मंदिर के पुजारी द्वारा सिपाहियों को कुएं का पानी पीने के लिए मना कर दिया गया। और तभी से सारे सिपाहियों के मन में विरोध की भावना उत्तेजित हो गयी। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय सेना को ‘काली पलटन’ के नाम से जाना जाता था और इस मंदिर में काली पलटन के अधिकारियों की गुप्त बैठक हुआ करती थी। जिससे इस मंदिर का नाम काली पलटन मंदिर पड़ गया।
1.https://www.dharisanam.com/pages/types-of-shivalingam
2.http://www.indianmirror.com/temples/augurnath-temple.html
3.https://isha.sadhguru.org/in/en/wisdom/article/science-history-creating-lingas
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