स्तूप प्राचीनकालीन भारतीय वास्तु-कला का सुन्दर उदाहरण है। यह किसी महान व्यक्ति की स्मृति को याद रखने के लिए उसके अवशेषों को मिट्टी के टीले के अंदर स्थापित कर एक उल्टे कटोरे के आकार में बनाया जाता है। स्तूप पीड़ा की अज्ञानता पर ज्ञान की जीत का प्रदर्शन करते हैं। इसमें मिलने वाली प्रकृति की विजयी वास्तविकता प्राणियों को अंतिम पूर्ति, मृत्यु और असंतुष्ट जीवन से परे एक अनुभव कराती है। स्तूप एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘इकट्ठा करना’ है। पहले के स्तूप टीले-जैसे आकार के होते थे।
ऐसा माना जाता है कि स्तूप का मौलिक नमूना स्वयं गौतम बुद्ध द्वारा बनाया गया था। जब बुद्ध को मृत्यु की निकटता का एहसास हुआ, तो उन्होंने अपने शरीर के संस्कार का आदेश दिया और उनके अवशेषों को चार अलग-अलग स्मारकों में विभाजित और संलग्न करने को कहा। साथ ही उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा के महत्त्वपूर्ण स्थानों को चिह्नित करते हुए निम्नलिखित स्थानों पर स्मारक बनाने के आदेश दिए :- लुंबिनी में, जहां उनका जन्म हुआ; बोधगया में, जहां उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया; सारनाथ में, जहां उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया; और कुशीनगर में, जहां उनकी मृत्यु हुई। वहीं स्तूप बनाने का वास्तविक प्रदर्शन देते हुए, उन्होंने अपने बाहरी पीले रंग के वस्त्र को एक कठोर घन बनने तक तह किया। फिर उन्होंने अपने दक्षिणा मांगने वाले कटोरे को उसके ऊपर रखा, और आज ये दो तत्व, अंदरूनी घन और बहरी गुंबद, हर स्तूप (भारत), दागोबा (श्रीलंका), चोर्टन (तिब्बत), चेदी या पगोड़ा (बर्मा), ताप (कोरिया), ता (चीन), टार्प (वियतनाम), थाट (लाओस), सोटोबा (जापान), या चंडी (जावा) में देखने को मिलते हैं। बुद्ध द्वारा चार स्तूप के निर्माण का आदेश दिया गया था, ये मूल 4 जल्द ही 8 हो गये और फिर कुछ 300 साल बाद सम्राट अशोक द्वारा 8000 से अधिक भव्य स्तूप बनाये गए।
स्तूप सिर्फ एक स्मारक नहीं बल्कि उससे कई अधिक हैं, यह ज्ञान के आदर्श का व्यंजक है। उसमें स्थित मूर्ति बुद्ध के शरीर का प्रतिनिधित्व करती है, और धर्म ग्रंथ उनके भाषण का। साथ ही स्तूप बुद्ध के विचार का प्रतिनिधित्व हैं, ये ज्ञान के मार्ग को प्रकट करते हैं, और बताते हैं कि कैसे मन की पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल करके उसे ज्ञान में परिवर्तित किया जा सकता है।
स्तूप को पांच तत्वों के व्यंजक के रूप में देखा जा सकता है, जो निम्न हैं:
पृथ्वी, जो चार दिशाओं में फैलती है और एक ठोस आधार प्रदान करती है।
गुंबद, जो कि गर्भ को दर्शाता है, और पानी के समान रचनात्मक निराकार क्षमता रखता है। इसे अंडा भी कहते हैं।
शंकुधारी शिखर आग को दर्शाता है, जो हमेशा ऊपर की ओर उठी रहती है। यह उस ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है जो अज्ञानता का विनाश करता है।
वर्धमान चंद्रमा वायु का प्रतीक है जो विशालता और उतार-चढ़ाव को दर्शाता है।
वृत्त अंतरिक्ष, पूर्णता, कुलता का प्रतीक है जिसकी ना कोई शुरुआत है और न ही कोई अंत है।
वहीं रामपुर के पास स्थित अहिक्षेत्र (अहि का संस्कृत में अर्थ सर्प या नाग है। नागा एक प्राचीन मनुष्यों का समुदाय है जो सर्प पूजन करते थे। इसलिए हो सकता है कि अहिक्षेत्र असल में नागाओं का क्षेत्र था।) गांव में दो प्राचीन (1800 वर्ष) स्तूप अच्छी हालत में पाए गये हैं। अहिक्षेत्र गांव के कुछ अवशेष बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित एक गांव रामनगर में पाए गये हैं।
संदर्भ:
1.http://detongling.org/the-meaning-of-stupas/?fbclid=IwAR12zO1uBDTcTti_gLev3QfMznDTK7j2S0SP_T9P2iS739aYTfg1bRFIZJ8
2.https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10153209251466239&set=a.10150426417856239&type=3&theater
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Ahichchhatra
4.http://wikimapia.org/21128149/Small-Buddhist-Stupa-Ruins-Ahichhatra
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