इतिहास से हमारे समक्ष कई सूफी संत और कवि आए हैं, जिनमें से कई कवियों की रचनाएं काफी प्रसिद्ध भी हुई हैं। उनमें से ही प्रसिद्ध हुए महान सूफी कवि मौलाना रूमी। इनके महाकाव्यों के संकलन को लगभग 900 वर्षों बाद भी बड़े पैमाने पर पढ़ा जाता है। वे फ़ारसी साहित्य के प्रभावशाली लेखक रहे और साथ ही उन्होंने ‘मसनवी’ में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रूमी का जन्म फ़ारस देश के प्रसिद्ध नगर बाल्ख़ (अफ़ग़ानिस्तान) में 1207 में हुआ था। इन्होंने मध्य तुर्की के सेल्जूक दरबार में अपना जीवन व्यतीत किया और वहीं कई महत्वपूर्ण रचनाएँ रचीं।
रूमी के जीवन में शम्स तबरीज़ी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है, जिनसे मिलने के बाद इनकी शायरी में मस्ताना रंग भर आया था। ऐसा कहा जाता है कि रूमी द्वारा अपने पसंदीदा लोगों के साथ एक गहरी दोस्ती बनाए रखना पसंद किया जाता था। इसलिए जब वे शम्स तबरीज़ी (जो कि एक जोगी थे) से मिले तो उनकी बातों से प्रभावित होकर उन्हें अपने घर ले आए। उन्होंने बड़ी उत्सुकता के साथ शम्स का अपने जीवन में स्वागत किया। उसके बाद शम्स ने रूमी को एकांतवास में 40 दिन तक शिक्षा दी। जिसके बाद रूमी एक बेहतरीन शिक्षक और न्यायाधीश से एक सन्यासी बन गए। यह बात रूमी के शिष्यों और परिवार वालों से सहन नहीं हुई और वे शम्स से ईर्ष्या करने लगे। साथ ही शम्स के अनौपचारिक, शराब पीने वाले, और बच्चों के सामने अपशब्द का इस्तेमाल करने वाले व्यवहार के चलते शम्स से सब नफरत करने लगे थे। एक दिन शम्स अचानक गायब हो गए, ऐसा माना जाता है कि रूमी के शिष्यों और उनके बेटे अलाउद्दीन द्वारा उनका कत्ल कर दिया गया था।
वहीं शम्स से बिछड़ने के बाद रूमी बहुत परेशान हो गए और उनकी खोज पर निकल गए। उनका शम्स के प्रति प्रेम और उनकी मौत के शोक का विस्तार गीत कविताओं ‘दिवान-ए शम्स-ए तब्रीज़ी’ में अभिव्यक्त किया गया है। जब वे शम्स को खोजते हुए डमेस्कस (Damascus) तक चले गये थे, तो वहां उन्हें अहसास हुआ कि, "मैं उसे क्यों खोजूं? मैं भी वैसा ही तो हूं, जैसा कि वह है। उसी का सार तो मेरे माध्यम से बोलता है। ये तो मैं खुद को ही खोज रहा हूं।” डमेस्कस से वापस जाने के बाद उन्होंने किताबों को छोड़, अपना संपूर्ण जीवन अपने गुरु शम्स तबरीज़ी के प्रति अपनी श्रद्धा और आदर को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करने में बिता दिया।
रूमी की कविताओं में प्रेम और ईश्वर भक्ति का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। फ़ारसी साहित्य के अन्य रहस्यवादी और सूफी कवियों की तरह, रुमी के विचार का सामान्य प्रसंग भी तौहीद से जुड़ा हुआ है। रूमी ने ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग के रूप में संगीत, कविता और नृत्य को चुना, उनके अनुसार संगीत, ईश्वर भक्ति में ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। रुमी ने समा को प्रोत्साहित किया जिसमें उन्होंने ईश्वर भक्ति में किये गये नृत्य और संगीत को पवित्र माना। उनकी ये शिक्षा मसनवी के आदेश के लिए आधार बन गई, जिसे उनके बेटे सुल्तान वालद ने व्यवस्थित किया। उन्होंने सभी को अहंकार को छोड़कर सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाया, साथ ही उन्होंने जाति, वर्गों और राष्ट्रों में भेदभाव किये बिना सेवा करने का भाव लोगों में जागृत किया।
रुमी की कविता अक्सर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जाती है जिनमें मसनवी की छः किताबें तथा उनके दीवान की रूबायतें और गज़लें शामिल हैं। वहीं उनके गद्य कार्य की बात की जाये तो उसे व्याख्यान, पत्र तथा सात उपदेशों में विभाजित किया गया है। उनकी काव्य रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है, जिसमें से अभय तिवारी द्वारा उनकी रचनाओं का हिंदी अनुवाद निम्न है, उदाहरण के लिए:
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Rumi
2.http://sologak1.blogspot.com/2012/09/hindustan-india-and-hindus-in-rumis.html
3.https://www.rumi.net/about_rumi_main.htm
4.https://www.hindi-kavita.com/HindiMaulanaRumi.php
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