आपको जानकर बड़ी हैरानी होगी कि इंडोनेशिया की भाषा, कला, साहित्य, यहां तक कि शिल्प शैली में भी सनातन हिंदू धर्म का प्रभाव दिखता है। भारत के निकटवर्ती देशों में से इंडोनेशिया एक ऐसा देश है, जिसका जावा द्वीप हिंदू संस्कृति खासकर कि महाभारत की खुशबू से सराबोर है। जावा द्वीप ने अपने आंचल में महाभारत की ऐतिहासिक संस्कृति को समेटे हुआ है। भारत की हिंदू सभ्यता यहां पूरी तरह जीवंत है।
महाभारत का एक दूसरा रूप इंडोनेशिया के मध्य जावा द्वीप में डिएंग (Dieng) पठार में स्थित है। यहाँ आपको 7वीं या 8वीं शताब्दी के महाभारत के मुख्य पात्रों के मंदिरों के समूह भी देखने को मिलेंगे जो कि डिएंग मंदिरों के नाम से जाने जाते हैं। आप ये भी कह सकते हैं कि भारत के प्राचीन राज्य हस्तिनापुर (मेरठ) का एक प्रतिरूप जावा द्वीप में डिएंग पठार में स्थित है।
यह पठार आठ छोटे हिंदू मंदिरों का समूह है जो जावा में बने सबसे पुराने जीवित धार्मिक संरचनाओं में से एक हैं। ये इंडोनेशिया का सबसे प्राचीन हिंदू मंदिर है तथा इन भवनों के निर्माण का आरम्भ कलिंग साम्राज्य से हुआ है। इन मंदिरों में भारतीय हिंदू मंदिरों की वास्तुकला की कई विशेषताएं आप साफ-साफ देख सकते हैं। इन मंदिरों के निर्माण से जुड़े शिलालेखों की कमी के कारण इनका इतिहास, निर्माता, मंदिरों के वास्तविक नाम आदि जैसे प्रश्नों के उत्तर अभी भी अज्ञात हैं। परंतु यहां के स्थानीय लोगों ने प्रत्येक मंदिर को महाभारत के पात्रों के अनुसार नाम दिया है।
इस मंदिर परिसर को तीन समूहों में बाँधा गया है: अर्जुन समूह, द्वारवती समूह तथा घटोत्कच समूह।
अर्जुन मंदिर उत्तर छोर पर स्थित है, फिर दक्षिण में क्रमशः श्रीकंडी, पुंटादेव और सेमबद्रा मंदिर हैं जिनमें भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा की छवियां हैं, ये त्रिमूर्तियां-क्रमशः उत्तर, पूर्व और दक्षिण की ओर है। अर्जुन मंदिर के ठीक सामने सेमार मंदिर खड़ा है।
वर्तमान में केवल घटोत्कच मंदिर ही बचा हुआ है, अन्य चार मंदिर खंडहर हो चुके हैं। घटोत्कच मंदिर की इमारत ऐतिहासिक कथाओं की इमारत के जैसी नज़र आती है क्योंकि छत का आकार लगभग मंदिर की इमारत के आकार के समान ही है। इसकी दीवार के दूसरी तरफ एक विशिष्ट सजावटी कलमकारी है तथा यह मंदिर 4.5 x 4.5 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। वर्तमान में इसकी छत को नष्ट कर दिया गया है इसलिये ये अब अपने मूल रूप जैसा नहीं दिखता है।
वर्तमान में इस समूह में केवल द्वारवती मंदिर है जो बचा हुआ है, बाकी के शेष मंदिर खंडहर हो गये हैं। द्वारवती मंदिर डिएंग पठार मंदिर परिसर में एक अनूठा मंदिर है। यह मंदिर डिएंग कुलोन गांव की उपजाऊ भूमि से घिरा हुआ है। यह एकमात्र मंदिर है जिसका नाम महाभारत के पात्रों के नाम पर नहीं रखा गया है।
इन मंदिरों के अलावा एक एकल मंदिर है जो एक पहाड़ी पर स्थित है जिसे ‘बीम मंदिर” के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर डिएंग मंदिरों से अलग है तथा यहाँ के मंदिर परिसर की सबसे बड़ी और सबसे ऊंची इमारत है जो कि दक्षिणी परिसर में स्थित है। मंदिर की छत 5 स्तरों में बनी हुई है। इस मंदिर की वास्तुकला भारतीय मंदिरों से काफी मिलती है, विशेष रूप से इसकी तुलना उड़ीसा के भुवनेश्वर में स्थित परशुरामेश्वर मंदिर (650 ईस्वी) से की गई है। सिरपुर में स्थित 7वीं शताब्दी का लक्ष्मण मंदिर भी इससे काफी मिलता है।
भारत और इंडोनेशिया के रिश्ते हज़ारों साल पुराने हैं। भारत के व्यापारी वहां सदियों से व्यापार कर रहे हैं। यही कारण है कि इंडोनेशिया और भारत में काफ़ी सारी सांस्कृतिक समानताएं देखने को मिलती हैं। यहां तक कि यदि आप इंडोनेशिया में महाभारत की बात करेंगे तो वे कहेंगे कि ये तो हमारा ग्रंथ है। दोनों महाभारत में बस कुछ प्रसंगों की भिन्नता है, जैसे कि शिखंडी जोकि भारत की महाभारत में एक औरत है जो अपने वयस्क जीवन में एक लड़का बन जाती है परंतु इंडोनेशिया की महाभारत में शिखंडी एक औरत ही है और अर्जुन की पत्नी है, आदि। महाभारत यहां भी उतनी ही लोकप्रिय है जितनी की भारत में।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Dieng_temples
2.https://www.facebook.com/groups/331575973297/permalink/10154081324118298/
3.https://harindabama.com/2016/02/13/dieng-dawn-of-javanese-hindu-temples/
4.https://www.jogjacompasstours.com/dieng-plateau-oldest-hindu-temple/
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