प्रथम विश्व युद्ध में हिंदु-मुस्लिम सैनिकों के सहयोगदान से धर्मातंर में न्यूनता

मेरठ

 12-11-2018 05:00 PM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

प्रथम विश्व युद्ध को खत्म हुए 100 साल पूरे हो गए हैं। यह युद्ध साल 1914 में शुरू हुआ था और 1918 में खत्म हुआ था। जब भी इस युद्ध की बात की जाती है तो जर्मनी, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और हंगरी आदि देशों का नाम सामने आता है। लेकिन भारत का नाम तो मानो लिया ही नहीं जाता है। लेकिन आज हम आपको इस युद्ध के दौरान अविभाजित भारत के योगदान के बारे में बताने जा रहे हैं। सहयोगी देशों की सेना का एक बड़ा हिस्सा भारतीय सैनिकों का था जिनमें मुस्लिम भारतीय सैनिकों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, जिससे अधिकांश लोग आज भी अपरिचित हैं। लगभग 2% लोग ही ब्रिटिश भारतीय सेना के मुस्लिम सैनिकों के योगदान के बारे में जानते हैं।

आंकड़ों के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन में करीब 60 लाख सैनिकों को एकत्रित किया गया था, जिनमें 15,00,000 सैनिक मध्य एशिया से, 1,00,471 न्यूज़ीलैंड से, 3,31,781 ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया से, 74,146 दक्षिण अफ्रीका से, 1,34,202 आयरलैंड से, 10,610 न्यूफाउंडलैंड (जो अब एक कैनेडियन प्रांत है) से, 16,000 वेस्टइंडीज से, 4,18,000 कनाडा से तथा 31,000 सैनिक अन्य अधिराज्यों से थे। इन सभी ने ब्रिटिश साम्राज्य के लिये युद्ध में हिस्सा लिया था। इनमें से करीब 14 लाख तो सिर्फ भारतीय सैनिकों की संख्या थी जो रणभूमि में जुटे हुए थे और ब्रिटिश भारतीय सेना का एक तिहाई हिस्सा मुस्लिम सैनिकों से बना हुआ था जिनकी संख्या लगभग 4 लाख थी।

जब यह युद्ध आरम्‍भ हुआ था तो उस समय भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था। यह समय भारतीय राष्ट्रवाद के परिपक्वता का समय था। भारत ने युद्ध के प्रयासों में जनशक्ति और सामग्री दोनों में रूप से भरपूर योगदान किया। इस युद्ध में भारतीय सैनिक सम्‍पूर्ण विश्‍व में अलग-अलग लड़ाईयों में भाग लेने के लिये फैले हुए थे। भारत के सैनिक फ्रांस और बेल्जियम, एडन, अरब, पूर्वी अफ्रीका, गाली पोली, मिस्र, मेसोपेाटामिया, फिलिस्‍तीन, पर्सिया और सालोनिका यहां तक कि चीन में भी विभिन्‍न लड़ाई के मैदानों में बड़े पराक्रम के साथ लड़े।

युद्ध के अंत तक 14 लाख भारतीय सैनिकों ने लगभग 60,000 से अधिक सैनिकों की जान की कीमत चुका कर ब्रिटिश साम्राज्य में सेवा की थी। उन्होंने बहादुरी के लिए 11 विक्टोरिया क्रॉस सहित 9,200 से अधिक पदक अर्जित किये थे। इन आंकड़ों में 26,000 से अधिक इम्पेरिअल सर्विस सैनिकों (Imperial Service Troops) का योगदान शामिल था जो भारतीय राज्य बलों का हिस्सा थे।

युद्ध के बाद अपने गांवों में लौटने वाले कई सैनिकों को काफी बदलाव देखने को भी मिला। उनके सैन्य जीवन ने पारंपरिक सामाजिक बाधाओं को तोड़ने में भी मदद की। युद्ध के समय विभिन्न जातियों के लोग एक ही मेज पर भोजन करते हैं, हिंदुओं और मुसलमानों ने एक साथ रहना सीख लिया था। फ्रांस, इंग्लैंड और यूरोप जैसे अन्य आधुनिक समाजों के संपर्क में आने से उनकी सोच का दायरा बढ़ गया था। अब वे भी भारत में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाना चहते थे। घर लौटे सैनिकों ने ना केवल जाति बाधा तोड़ दी बल्कि महिलाओं की शिक्षा, वास्तुशिल्प शैलियों को बढ़ावा, समानता, स्वच्छता आदि के लिए काम करना शुरू किया था। और आज एक शताब्दी बाद, भारत के कई गांवों में विकास और समृद्धि उन सैनिकों द्वारा बोए गए बीज का परिणाम है।

संदर्भ:
1.https://www.indy100.com/article/map-the-troops-from-around-the-world-that-served-britain-in-wwi--xJIQVBP_fl
2.http://www.sunday-guardian.com/investigation/world-war-1-indian-soldiers-drove-social-political-change-at-home?fbclid=IwAR1zxLQjs8CBfXlahAYMmYnKgqhDSgHlxSTz_7Js8unsETrZLwjea3uEgw8
3.http://indiaww1.in/aboutus.aspx

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