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हम सभी पक्षियों को अपने घरों के ऊपर से उड़ते हुए या किसी पेड़, ईमारत में डेरा डाले हुए देखते ही हैं और उनकी चहचहाट को सुनकर खुश भी होते हैं लेकिन दुनिया में कई ऐसे पक्षी भी हैं जो सामान्य पक्षियों से काफी अलग होते हैं। ये पक्षी सिर्फ देखने में ही बाकियों से अलग नहीं होते बल्कि इनका रहन-सहन भी सामान्य पक्षियों से भिन्न होता है। आज हम ऐसे ही एक पक्षी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे भारत में बतासी के नाम से जाना जाता है और यूरोप में इस पक्षी को 'स्विफ्ट' (Swift) पुकारा जाता है।
इन पक्षियों को पहाड़ियों के बीच बुलबुल की तरह उड़ते हुए देखा जा सकता है। इन पक्षियों के पंख लम्बे और नुकीले होते हैं। खैरा रंग, ठुडी, गले और पूछ की जड़ के पास गहरा सफ़ेद रंग होता है। इन पक्षियों को पुरानी इमारतों और ताड़ के वृक्षों में डेरा डाले हुए देखा जा सकता है। इन पक्षियों की बनावट और पक्षियों से अलग होती है। इनके पैर के पंजे ऐसी होती हैं की उनके सहारे चलना, फिरना, बैठना अत्यंत मुश्किल होता है। इनके पंजे बहुत छोटे, मुड़े हुए होते हैं साथ ही इनके डैने लम्बे होते हैं। इसलिए ये हेमशा डैने के सहारे ही बैठ पाती हैं। ये पक्षी केवल प्रजनन के वक़्त घोसलों में आते हैं।
इनकी उड़ने की गति 110 से 170 कि.मी. प्रति घंटा होती है। ये पक्षी पूरे 2-3 साल बाद अंडे देने अपने घोंसले में आते हैं। बतासी पक्षी आसमान में रहते हुए ही खाना, पीना और सोने की क्रियाओं को अंजाम देते हैं। ये पक्षी घोंसला बनाने से पहले एक साथ मुआयना करने के लिये निकलते हैं और फिर जा कर घोंसलें बनाते हैं। बतासी पक्षी घोंसला बनाने के लिये अपनी लार का प्रयोग करते हैं। इनकी लार जिलेटिन (Gelatin) की तरह चिपचिपी और गाढ़ी होती है। ये लार की मदद से तिनके और परों को चिपकाकर घोंसला बनाते हैं। बतासी नर और मादा प्रजनन के वक़्त कई दिनों तक बिना खाये अपने घोंसलों में पड़े रहते हैं और भूख लगने पर ये कई किलोमीटर दूर उड़ जाते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि बतासी अपने पुराने घोंसलों में ही अंडे देते हैं।
संदर्भ:
1.https://goo.gl/dmEpPG
2.सिंह, राजेश्वर प्रसाद नारायण. भारत के पक्षी. पब्लिकेशन डिवीज़न, भारत सरकार. 1958