आइये समझें एक स्वच्छता तंत्र को जो हो सकता है मेरठ के लिए लाभदायक

मेरठ

 09-11-2018 10:00 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

गंदगी से होने वाले रोग न जाने हर साल कितने लोगों की जिंदगी छीन लेते हैं। यह केवल हमारे देश की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या है जिससे निपटने के लिये पूरे विश्व के देश अलग-अलग विधियों को खोज रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी और 2019 तक स्वच्छ भारत बनने का सपना देखा था। स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने में सबसे पहले यदि किसी क्षेत्र ने योगदान दिया है तो वह छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर है।

इस क्षेत्र ने कूड़े-कचरे का निवारण करने के लिये ऐसे मॉडल (Model) को अपनाया जिससे क्षेत्र से कचरे का नामो-निशान मिट गया और लोगों के लिये रोज़गार के नये अवसर भी खुल गये। आइये जानते हैं अंबिकापुर का स्वच्छता मॉडल क्या है और मेरठ को इसकी ज़रुरत क्यों महसूस हुई।

अंबिकापुर स्वच्छता मॉडल सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (Solid and Liquid Resource Management System) अर्थात ठोस अथवा तरल कूड़े के निपटान की तर्ज पर काम करता है। इसमें कचरे को इकट्ठा करने पर इसे 20 जैविक और 17 अजैविक भागों में बांटा जाता है। प्राप्त जैविक कचरे में खाने योग्य कचरे को गाय, मुर्गी और बत्तखों को खिला दिया जाता है। इन जानवरों से दूध और अंडे प्राप्त होते हैं जो अतिरिक्त आय का साधन बनते हैं। बाकि के बचे कार्बनिक (Carbonic/ कार्बन युक्त) कचरे को खाद बनाने के लिये कम्पोस्ट यार्ड (Compost Yard) में पहुंचा दिया जाता है। दूसरी ओर अजैविक कचरा जैसे कागज, गत्ता, धातु और प्लास्टिक (Plastic) को 17 श्रेणियों में बांट दिया जाता है। इस अलग-अलग कचरे को पहले धोया और साफ़ किया जाता है।

सफाई के बाद इसे सुखाया जाता है, फिर कचरे को अलग-अलग बोरों में भरा जाता है जिसके बाद बोरों का वजन कर इन्हें तृतीयक पृथकीकरण के लिये भेज दिया जाता है। यहाँ साफ़ कचरे को 156 उप श्रेणियों में बांटा जाता है जिसमें प्लास्टिक को 22 भागों, प्लास्टिक आइटम (31), धातु (5), रबड़ आइटम (Rubber Item) (8), बोतल (15), कागज (13), कार्डबोर्ड (9) श्रेणियों में बांटा जाता है। इसके बाद इन सब को अलग-अलग बोरों में डाला जाता है और उनका वज़न कर बेचने के लिये भेज दिया जाता है। यह सारा काम मॉडल सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (सी.एल.आर.एम.) सेंटर्स (Model Solid and Liquid Resource Management System Centres) में किया जाता है।

सी.एल.आर.एम. सेंटर्स बनाने के लिये उन क्षेत्रों का चुनाव किया जाता है जिन पर कचरे को फेंका जा रहा हो या उस जमीन पर कब्ज़ा किया हो। इससे सी.एल.आर.एम. सेंटर बनाने के लिये क्षेत्र में अलग से ज़मीन की जरूरत नहीं पड़ती है। सी.एल.आर.एम. सेंटर पर सी.सी.टी.वी. कैमरे से नजर रखी जाती है। हर घर से कचरा इकट्ठा करने के लिये हर सुबह 7 बजे और शाम 3 बजे तीन महिलाओं का एक रिक्शा या स्वचालित रिक्शा लेकर लोगों के घरों में जाते हैं जहाँ पर पहले से हर-घर में हरा और लाल डब्बे में कूड़ा रखा हुआ रहता है।

कूड़े को किस तरह से रखना है यह लोगों को बताया गया होता है और लोग बताये हुए तरीके से ही हरे डब्बे में गीला कूड़ा रखते हैं और लाल डब्बे में सूखे कूड़े को रखते हैं जिसे सी.एल.आर.एम. सेंटर की महिलायें आकर रिक्शे में बने गीले और सूखे भाग में डाल देती हैं। इस मॉडल से कचरे का निवारण करने से अंबिकापुर निगम का पैसा तो बचा ही, साथ ही वहां कई नए रोज़गार के अवसर भी खुल गये। एक रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ कूड़ा बीनने और उसे डंपिंग यार्ड (Dumping Yard) तक पहुंचाने तक में निगम को हर महीने 5 से 5.5 लाख रुपये लगते थे, सी.एल.आर.एम. मॉडल के कारण पैसा लगने की बजाय निगम के पास उल्टा पैसे आने लगे हैं।

मेरठ में 1000 टन कूड़ा रोज़ जिले के तीन क्षेत्रों में फेंका जाता है। मेरठ का कूड़ा शहर के बाहर जिन साइट्स (Sites) पर फेंका जाता है, उसके आसपास गाँव बसे हुए हैं और इस कारण वहां रहने वाले लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मेरठ प्रशासन ने पिछले वर्ष इस समस्या से निपटने के लिये अंबिकापुर स्वच्छता मॉडल को अपनाने का विचार भी किया था, परन्तु इसे पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए नागरिकों के भी काफी योगदान की होगी। साथ ही नागरिकों को कचरा सम्बंधित शिक्षा भी देनी होगी। यदि आज हर मेरठवासी यह ठान ले कि हमें अपने शहर को साफ़ बनाकर इसे पूरे देश के लिए एक उदाहरण बनाना है, तो खुले में कचरे का अस्तित्व हम मिटा सकते हैं।

संदर्भ:
1.https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/composting-must-for-all-public-facilities-generating-more-than-100kg-garbage/articleshow/65861781.cms
2.https://bit.ly/2pPssYQ
3.https://swachhindia.ndtv.com/swachh-survekshan-2018-chhattisgarhs-ambikapur-waste-management-success-story-19837/

RECENT POST

  • चलिए अवगत होते हैं, भारत में ड्रॉपशिपिंग शुरू करने के लिए लागत और ज़रूरी प्रक्रियाओं से
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:30 AM


  • आध्यात्मिकता, भक्ति और परंपरा का संगम है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:26 AM


  • भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय जाता है, इसके मज़बूत डेयरी क्षेत्र को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     13-01-2025 09:26 AM


  • आइए, आज देखें, भारत में पोंगल से संबंधित कुछ चलचित्र
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:30 AM


  • जानिए, तलाक के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए, कुछ सक्रिय उपायों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:26 AM


  • इस विश्व हिंदी दिवस पर समझते हैं, देवनागरी लिपि के इतिहास, विकास और वर्तमान स्थिति को
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:31 AM


  • फ़िनलैंड के सालाना उपयोग से अधिक विद्युत खपत होती है, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग में
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:27 AM


  • आइए जानें, भारत और अमेरिका की न्यायिक प्रणाली के बीच के अंतरों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:26 AM


  • आइए जानें, हमारी प्रगति की एक प्रमुख चालक, बिजली के व्यापार के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:43 AM


  • भारत में परमाणु ऊर्जा का विस्तार: स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक सशक्त कदम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:30 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id