देश की स्वतंत्रता में मेरठ की हमेशा से एक अहम भूमिका रही है। यहीं पर आज़ादी की पहली चिंगारी भी 10 मई 1857 को फूटी थी। इसी दिन अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी। खास बात तो ये है कि आज़ाद भारत का ऐलान भी मेरठ में ही पहले किया गया था।
26 नवंबर 1946 को मेरठ स्थित विक्टोरिया पार्क में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अंग्रेज़ों द्वारा शासित भारत में अंतिम तथा 54वां अधिवेशन हुआ था, जिसमें कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता जैसे जे॰ बी॰ कृपलानी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरू आदि शामिल हुए थे और इसी अधिवेशन में संविधान बनाने वाली समिति भी गठित की गई थी। ठीक इसी समय नवंबर 1946 में जे॰ बी॰ कृपलानी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। उनके बाद उनका स्थान डॉ राजेंद्र प्रसाद ने लिया था।
कृपलानी (11 नवम्बर 1888 - 19 मार्च 1982) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी और समाजवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति तथा एक कुशल राजनेता होने के साथ-साथ एक लेखक भी थे और उन्होंने गांधीवाधी दर्शन पर अनेक पुस्तकें लिखीं थी। 1946 के अधिवेशन के अध्यक्ष कृपलानी ने अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाया था। ऊपर दी गयी फोटो में आप मेरठ में आयोजित कांग्रेस के इस वार्षिक अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू को सभा को संबोधित करते देख सकते हैं और कांग्रेस अध्यक्ष आचार्य कृपलानी के दाहिने ओर आप सरदार वल्लभ भाई पटेल को बैठे हुए भी देख सकते हैं।
कृपलानी ने गांधीवाद पर कुछ किताबें भी लिखी थीं। मेरठ में हुए इस अधिवेशन में कृपलानी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा:
“कुछ निहत्थे लोगों का ग्रेट ब्रिटेन से लड़ना, वो भी ऐसे समय में जब उनके लिए सभी शस्त्रों को संगठित करना काफी आसान था, वह बेहद मूर्खतापूर्ण दिखाई दे रहा था। लेकिन ये लोग भूल गए कि जब गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने क्रांतिकारी राजनीति को अपनाया, तो उन्होंने पारंपरिक राजनीतिक के ज्ञान को त्याग दिया। इस राजनीति में जोखिम लेने की और अपने लक्ष्य हासिल करने की हिम्मत थी। आज़ादी हासिल करने के लिए नमक सत्याग्रह का सहारा लेना क्या समझदारी का निर्णय था? नमक और आजादी के बीच स्पष्ट रूप से कोई संबंध नहीं था। जगह-जगह जाकर अलग-अलग सत्याग्रहियों को चुनते हुए युद्ध-विरोधी नारे लगाना, क्या यह भी समझदारी थी? सच्चाई ये है कि गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ने कभी कोई परंपरागत कदम नहीं उठाया है, और यदि ऐसा कोई कदम आज़ादी की लड़ाई लड़ने से पहले और स्वतंत्र होने से पहले उठाया जाता है, तो हम अपनी क्रांतिकारी भूमिका खो बैठेंगे।”
कांग्रेस के इस अधिवेशन के बाद भारत को आजादी मिल गई थी। 15 अगस्त 1947 को दिल्ली से आजादी की घोषणा की गई और साथ ही घोषणा की गई बंटवारे की। एक तरफ तो पूरा देश जश्न ए आजादी को मनाने में जुटा हुआ था, वहीं दूसरी तरफ बंटवारे से हिंदू-मुस्लिम दंगों ने भी जन्म लिया। हालांकि मेरठ और अन्य क्षेत्रों में हिंदू-मुस्लिम दंगे 1946 के पहले से ही सामने आ रहे थे, परंतु इनका विराट रूप 1947 में देखने को मिला। अगले 6 वर्षों तक मेरठ में विभाजन से संबंधित काफी रक्तपात भी हुआ था।
ऐसे समय में भारत को एकता और शांति का पाठ जिन्होंने पढ़ाया, वे थे हमारे देश के प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल (31 अक्टूबर, 1875 - 15 दिसंबर, 1950) जो लौह पुरूष के नाम से भी जाने जाते हैं। आज़ादी के बाद विभिन्न रियासतों और समुदायों में बिखरे भारत के एकीकरण में उनका महान योगदान रहा। 12 फरवरी 1949 में उनकी मृत्यु से कुछ महीने पहले, सरदार पटेल ने भारत में शांति और एकता को बनाये रखने के लिये सभी को अपने भाषण से संबोधित किया था, जो आज भी बहुत प्रासंगिक है:
मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर एक नए स्मारक का शिलान्यास किया। इस स्मारक का नाम 'एकता की मूर्ति' (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी/Statue of Unity) रखा गया है। यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची धातु मूर्ति होगी, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट) होगी और यह 20,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र में फैली होगी। यह मूर्ति 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' (Statue of Liberty) (93 मीटर) से दुगनी ऊंची है।
संदर्भ:
1.https://www.triposo.com/loc/Meerut/history/background
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Vallabhbhai_Patel
3.https://goo.gl/N8jw33
4.https://inextlive.jagran.com/declare-independence-began-in-meerut-129617
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