विभिन्न सभ्यताओं के आरंभ होने के साथ ही मनुष्यों द्वारा अपने अराध्यों की पूजा अर्चना करना भी प्रारंभ कर दिया गया था। इन अराध्यों में देवी देवता दोनों शामिल थे। देवियों की पूजा करने का प्रचलन मात्र हिन्दू धर्म में ही नहीं वरन् अन्य धर्मों में भी देखने को मिलता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इटली/ग्रीक की सिबेल (Cybele) हैं, जो हमारी शेरावाली माँ से अनेक समानताएं रखती हैं। जैसे माँ दुर्गा को शेर पर सवार दिखाया जाता है, ठीक उसी प्रकार ग्रीस की सिबेल माता को भी शेर पर सवार दिखाया गया है। कहा जाता है कि भारत में दुर्गा माता की मूर्ति के साथ शेर को दर्शाने की प्रथा ग्रीक से ली गयी थी।
हिन्दू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को शक्ति का केंद्र माना जाता है। इन्होंने अपनी शक्ति से माँ दुर्गा का सृजन किया, जिन्हें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र से सजाया गया। आज हमारे द्वारा इनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। उत्खनन में कुषाण काल के दौरान माँ दुर्गा की जो प्रतिमाएं मिली हैं, उनमें शेर नहीं दर्शाया गया है।
गुप्त वंश (700 ईस्वी के आसपास) में माँ दुर्गा को युद्ध की देवी के रूप में पूजा जाने लगा। इनकी प्रतिमाओं में इन्हें राक्षसों के साथ युद्ध करते हुए दर्शाया गया है। यह वो समय था जब भारत में कला, साहित्य और व्यापार अपने चरम पर थे। और इसी के चलते माँ दुर्गा की प्रतिमा में भी कई परिवर्तन आये। इस समय के आस-पास माँ दुर्गा को 8,10,12, और यहाँ तक कि 16 हाथों के साथ भी दर्शाया गया। जैसे-जैसे उनके प्रति श्रद्धा बढ़ती गयी, वैसे-वैसे उनकी प्रतीकात्मकता भी विकसित हुई। साथ ही गुप्त काल में इनकी विभिन्न मुद्राओं को भी पूजा जाने लगा। इसी दौरान माँ को शेर पर विराजमान हुए भी दर्शाया गया। शेर एक शाही जानवर है, उसका अयाल सभी पशुओं में से अनोखी रचना है।
रोम में युद्ध (लगभग 600 ईस्वी के आसपास) के दौरान भविष्यवाणी की गयी कि माँ सिबेल के रोम में आगमन के बाद ही आक्रमणकारियों को यहां से भगाया जा सकता है। इन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाना गया, जिसमें सिबेल माता ही प्रमुख थी। यहां से सिबेल माता की मूर्ति की पूजा का प्रचलन प्रारंभ हो गया। वेटिकन (हिंदी के ‘वाटिका’ से लिया गया शब्द) की पहाड़ियों में माता का 200 फुट लंबा मंदिर बनाया गया, जिसे तैयार होने में 13 वर्ष का समय लगा। ईसाई धर्म के विस्तार के साथ ही यहां मूर्ति पूजा का प्रचलन समाप्त हो गया। तथा यह कहा जा सकता है कि करीब 6-12वीं शताब्दी के करीब माँ दुर्गा को सिबेल से उनका शेर प्राप्त हुआ। ऊपर दिए गए चित्र में बाईं ओर सिबेल को और दाईं ओर माँ दुर्गा को दर्शाया गया है।
संदर्भ:
1.https://atlantisrisingmagazine.com/article/goddess-in-the-vatican/
2.http://www.merinews.com/article/the-lion-of-durga-is-a-gift-from-a-greek-goddess/126919.shtml
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