गैर निस्पंदकारी संपत्ति (Non-Performing Assets) वित्तीय संस्थानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाला वर्गीकरण है, जिसका सीधा सम्बन्ध कर्ज/ ऋण/ लोन न चुकाने से होता है। जब ऋण लेने वाला व्यक्ति 90 दिनों तक ब्याज या मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण गैर निस्पंदकारी संपत्ति के रूप में माना जाता है। वहीं कृषि ऋण में 2 फसल के मौसम के बाद भी यदि भुगतान नहीं किया जाता तो उसे गैर निस्पंदकारी संपत्ति घोषित कर दिया जाता है।
यह गैर निस्पंदकारी संपत्ति भारत के बैंकिंग क्षेत्र के सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के लिए परेशानी बन गयी है। क्योंकि गैर-निस्पंदकारी संपत्तियों के मुद्दे पर ग्यारह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve bank of India) की सूची में आतें हैं। आर.बी.आई. की निगरानी सूची में 11 बैंकों में इलाहाबाद बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, कॉरपोरेशन बैंक, आई.डी.बी.आई. बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज़ बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, देना बैंक, महाराष्ट्र बैंक शामिल हैं। पांच बैंक जो प्रॉम्प्ट सुधारक कार्रवाई (पी.सी.ए.) के तहत लाए जा सकते हैं: आंध्र बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, कानारा बैंक, यूनियन बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक हैं।
भारत में एन.पी.ए. मुद्दा कितना गंभीर है?
• 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक ऋण को भारत में गैर-निस्पंदकारी ऋण के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। जो एक बहुत बड़ी राशि है।
• यह आंकड़ा मोटे तौर पर दिए गए सभी ऋणों के लगभग 10% तक बनता है।
• इसका मतलब यह है कि लगभग 10% ऋण का कभी भुगतान नहीं किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बैंकों को धन का भारी नुकसान होता है।
• जब पुनर्गठित और अपरिचित संपत्तियों को जोड़ा जाता है तो कुल ऋण का भुगतान 15-20% होता है।
• भारत में एन.पी.ए. की स्थिति बहुत खराब हो गयी है।
• पुनर्गठन मानदंडों का दुरुपयोग किया जा रहा है।
• यह खराब प्रदर्शन एक अच्छा संकेत नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप भारत के बैंकों की स्थिति भी संयुक्त राज्य अमेरिका में हुए 2008 के उप-प्रधान संकट जैसी हो सकती है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक, मार्च में 9.6% की तुलना में, सितंबर 2017 में कुल एन.पी.ए. में 10.2% की वृद्धि हुई। वहीं हाल के वर्षों में एन.पी.ए. में वृद्धि के कारण निम्न हैं।
• पांच क्षेत्र- वस्त्र, विमानन, खनन, निर्माण एवं संरचना एन.पी.ए. में योगदान देते हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में अधिकांश ऋण सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों द्वारा दिए गए हैं।
• सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक उद्योगों को लगभग 80% ऋण प्रदान करते हैं। यह एन.पी.ए. में वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा बनता है। पिछले वर्ष जब किंगफ़िशर वित्तीय संकट में फंस गया था, तब एस.बी.आई. ने इसे बड़ी मात्रा में ऋण प्रदान किया।
• भारत में दिवालियापन कोड की कमी और सुस्त कानूनी व्यवस्था बैंकों के लिए कंपनियों से ऋणों को पुनर्प्राप्त करना मुश्किल बनाती है।
• प्राकृतिक कारणों जैसे बाढ़, सूखा, बीमारी का प्रकोप, भूकंप, सुनामी इत्यादि।
• किसी विशेष बाजार खंड में सख़्त प्रतियोगिता। उदाहरण के लिए भारत में दूरसंचार क्षेत्र में।
रिजर्व बैंक द्वारा इस कदम के चलते छोटे और मध्यम उद्यमों को काफी आघात सहना पड़ेगा। क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक पी.सी.ए. में बैंकों की संख्या को बढ़ा सकता है, जिससे कंपनियों को, विशेष रूप से एम.एस.एम.ई. (MSME- Micro, Small and Medium Enterprises) को उपलब्ध कराए जा रहे ऋणों को सीमित कर दिया जाएगा। जबकि बड़ी कंपनियाँ कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट (Corporate Brand Market) में प्रवेश कर लेती हैं, इसलिए वे तुरंत प्रभावित नहीं होंगे।
संदर्भ:
1.https://www.thehindu.com/business/Economy/all-you-need-to-know-about-indias-npa-crisis-and-the-frdi-bill/article21379531.ece
2.https://www.financialexpress.com/industry/banking-finance/npa-crisis-11-public-sector-banks-under-rbi-scanner-check-full-list/1126310/
3.http://www.thehansindia.com/posts/index/Civil-Services/2017-10-11/Understanding-the-NPAs-and-their-impact/332611
4.https://qz.com/india/1166910/npa-crisis-indias-bad-loan-problem-ranks-among-the-worlds-worst/
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