 
                                            समय - सीमा 276
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                                            हर किसी का होता है एक सपना खूबसूरत घर हो अपना। अक्सर हम किसी भी खूबसूरत घर या हवेली को देखें तो हमारे ज़हन में एक प्रश्न ज़रूर उठता है कि आखिर यह कैसे बनाया गया होगा। यही स्थिति होती है प्राचीन हवेलियों के प्रति जो विभिन्न प्रकार की वास्तुकलाओं (हिन्दू, मुगल, यूरोपियन इत्यादि) द्वारा तैयार की जाती हैं। इन हवेलियों को तैयार करने की एक पूरी प्रक्रिया होती थी। इसे हम शेखवती हवेली के निर्माण प्रक्रिया के माध्यम से करीबी से समझ सकते हैं :
1. अभिविन्यास (Orientation)
हवेलियों में जोखिम को ध्यान में रखते हुए दिशा के अनुसार तैयार किया जाता है। इमारतों को गर्मी से बचाए रखने के लिए उसके अग्रभाग को उत्तर और दक्षिण दिशा की ओर रखा जाता था। 
2. ज़ोनिंग (Zoning)
शेखवती हवेली की ज़ोनिंग में सार्वजनिक (मुख्य प्रवेश द्वार) और व्यक्तिगत (आंतरिक स्थल) स्थानों को पृथक बनाया गया है। सार्वजनिक स्थल पर सार्वजनिक कार्य और व्यवसाय संबंधी कार्य तथा व्यक्तिगत स्थानों पर परिवार संबंधी कार्य किये जाते थे। हवेली में रसोई घर, स्टोर रूम, सीढि़यां, सम्मेलन स्थल, शौचालय आदि को उपयोग के अनुसार हवेली के चारों और तैयार किया गया है।  
3. निर्माण सामग्री (Materials)
इस क्षेत्र में इमारत निर्माण सामग्री की अनुपलब्धता के कारण, हवेली का निर्माण पत्थर और चूना मोर्टार (lime mortar) से किया गया। इस क्षेत्र में व्यापार के कारण मार्बल, टाइल्स तथा अन्य वस्तुओं का उपयोग देखा जा सकता है।
4. भवन और आंगन का स्वरूप (Size of Building and Courtyard)
हवेली के आंगनों की लंबाई और चौड़ाई (9000*9000 मिमी) को विभिन्न धार्मिक और सांकृतिक प्रयोजन को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था। इस क्षेत्र को तैयार करते समय तापमान और द्रव्यमान (mass) को ध्यान में रखा गया था।
5. प्रवेश और प्रस्थान स्थल (Entry & Exits)
हवेली की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रवेश और प्रस्थान हेतु एक ही द्वार का निर्माण किया गया है। सार्वजनिक स्थल को मुख्य द्वार पर बनाया गया तथा व्यक्तिगत स्थानों को मुख्य द्वार से अलग बनाया गया है।
6. सेवाएं (Services)
परिसर की सभी मुख्य सेवाएं निजी और सार्वजनिक आंगनों के चारों ओर घिरे हुए हैं। जैसे रसोईघर, सीढ़ियों, शौचालय क्षेत्रों (सूखे गड्ढे), स्टोर रूम सभी आंगनों के चारों ओर समूहित हैं।
7. दीवारें (Walls)
हवेली में तापमान को नियंत्रित करने के लिए दीवारों को 450 मिमी से 1000 मिमी तक मोटा बनाया गया है।
इस प्रकार आप अनुमान लगा सकते हैं कि किसी हवेली को तैयार करते समय किन किन बातों को ध्यान में रखा जाता था। साथ ही आपने अक्सर हवेलियों में विभिन्न प्रकार के चित्र, आकृतियों को देखा होगा, जो भाग हैं आर्ट डेको वास्तुकला (Art Deco) का। आर्ट डेको वास्तुकला प्राचीन ओर आधुनिक ग्रीक, रोम, अफ्रीका, भारत आदि कलाओं का मिश्रण है। जिसमें मिश्र की कला सबसे प्रसिद्ध है।
1925 में आर्ट डेको शब्द का उद्भव न्यूयॉर्क (New York) से हुआ। 1920 और 1930 के दशक में संयुक्त राज अमेरिका की न्यूयॉर्क सिटी की अधिकांश गगन छूती इमारतों (जैसे-क्रिसलर बिल्डिंग) को इसी कला में तैयार किया गया। इस शैली में इमारतों पर प्रतिकात्मक छवियों (भगवान, राजा, प्रजा या कोई अन्य) का भी उपयोग किया जाता था। किंतु इसमें अब विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां भी शामिल हो गयी हैं।

भारत में मुंबई की इमारतों (न्यू इंडिया एश्योरेंस बिल्डिंग-1936) में भी आप इस कला स्वरूप देख सकते हैं। भारत में यह कला 1937 के दौरान काफी प्रसिद्ध हुयी, जब भारतीय वास्तुकला संस्थान द्वारा इसे एक "आदर्श घर प्रदर्शनी" (Ideal house exhibition) में दर्शाया गया। भारतीय घरों को सजाने में पहले भगवानों की मूर्तियों का उपयोग देखा है, जिसका उदाहरण आप मेरठ के बुद्धाना गेट के क्षेत्र तथा खैराती लाल हवेली में देख सकते हैं। धीरे धीरे स्वरूप बदलता गया और अब आधुनिक घरों में भगवान की मूर्तियों का प्रयोग तो नहीं दिखाई देता किंतु घर की सजावट को बढ़ाने के लिए अन्य प्रकार के अनेक डिजाइनों का उपयोग किया जाता है। जब भी कोई आपके घर जाता है तो सबसे पहले वे आपके घर का अग्रभाग ही देखता हैं। घर का अग्रभाग आपके व्यक्तिगत रहने की जगह, शैली और व्यक्तित्व के साथ पहला संपर्क बिंदु है। और यही कारण है कि लोग बाहरी पेंट, लॉन, प्रवेश, गुज़रगाह (घर के सामने का रास्ता) और बाहर से दिखाई देने वाली हर चीज की अच्छी देखभाल करते हैं।
यह नीचे मेरठ की खैराती लाल हवेली की तस्वीर है, यह हवेली अभी भी मेरठ में स्थित है:


जब नवीन शहर योजनाओं और इसके विधायी विधानसभा भवनों (Legislative assembly buildings) के निर्माण के लिये चंडीगढ़ को प्राथमिकता मिली तो यहाँ से नये राष्ट्र के आधुनिक प्रगतिशील दृष्टिकोण की नींव पड़ी और यह वास्तुकला भारत में पहले बनाए गए अन्य विधायी घरों से बहुत अलग थी। यह वास्तुकला महल और मंदिर की तरह नहीं दिखती थी, परंतु ये दो पारंपरिक आकृतियां शक्ति या 'संस्कृति' का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक मॉडल के रूप में काम करती थीं।
लगभग 57 साल बाद, चेन्नई में तमिलनाडु विधानसभा भवन के निर्माण में भी आधुनिक वास्तुकला का उद्भव शुरू हुआ, हालांकि ये चंडीगढ़ के जितना प्रभावशाली नहीं हो सका, लेकिन यह निश्चित रूप से आधुनिक वास्तुकला को बढ़ावा देता है।
संदर्भ :
1. http://talkarchitecture.in/features-plan-shekhawati-havelli/ 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        