आखिरकार क्यों दिखते हैं सरकार को सिर्फ किसान भाई, किसान बहनें क्यों नही ?

मेरठ

 27-09-2018 04:12 PM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

ग्रामीण और शहरी, कोई भी क्षेत्र हो, महिलाएँ परिवार, समाज समुदाय का एक बड़ा ही सार्थक अंग हैं। जो समाज के स्वरूप को सशक्त रूप से प्रभावित करती हैं। हमारे देश में 70% आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जिनमें से अधिकांश कृषि कार्यों पर निर्भर हैं। देश की 11 करोड़ 87 लाख (11,87,000,00) किसानों की कुल आबादी में से 30.3% महिला किसान है। परंतु फिर भी जब खेती बाड़ी की बात जब भी चलती है तो किसान भाईयों की बात तो होती है किंतु किसान बहनों की नही, भला ऐसा क्यों?

देश में 60 से 80 प्रतिशत महिला खेती के काम में लगी रहती हैं। जमीन का मलकाना हक कि बात अगर करे तो सिर्फ 13 प्रतिशत महिलाओं के पास है। आइये आपको मिलाते हैं जिला झांसी, गांव खुजुराओ बुजुर्ग कि किसान महिला रामवती से , उन्होंने बताया कि वो किसानी का पूरा काम करती हैं। जमीन,जायदाद में उन्हें कोई अधिकार नहीं मिला। और बाज़ार में होने वाला शोषण भी उन्हें फसल कि अच्छी कीमत दिलाने से दूर कर देता है, महिला किसान सिर्फ खेती का नहीं बल्कि घर में पशु पालन, गृह कार्य तथा बच्चों को सम्भालना आदि कार्य भी करती हैं। महिला किसानों का योगदान देखते हुए 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला का श्रम पुरुषों कि तुलना में दुगना है। एजेंसी एफ.ए.ओ के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों में पुरुष एक साल में प्रति हेक्टेयर कुल 12-12 घंटे काम करता है वहीं इनकी तुलना में महिलाओं का काम उनसे ज्यादा घंटे हो जाता है। ये महिलाएं 16-16 घंटे खेतों में झुक कर काम करती है। महिलाओं की कृषि में महत्त्वपूर्ण भूमिका होते हुए भी उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कृषि कार्यों में मेहनत करने वाली महिलाओं की अपनी कोई अलग पहचान नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था की बागडोर प्रायः पुरूषों के पास रहती है। ज्यादातर के पास जमीनों के मालिकाना हक भी नहीं है।

24 जुलाई को कृषि और किसानों के कल्याण मंत्री ने कहा कि, महिला किसानों को पहचान पत्र प्रदान करने का प्रस्ताव होना चाहिए, ताकि उन्हें किसानों के रूप में पहचाना जा सके; यदि हां है, तो विवरण दें और यदि नहीं, तो इसके कारण बताए? जवाब में कहा गया कि 2011 की जनगणना के तहत 3.60 करोड़ महिलाओं को पहले ही 'खेती करने वाले'(Cultivators) के रूप में पहचान दी जा चुकी है, और सरकार के पास किसानों को पहचान पत्र प्रदान करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। जनगणना में वे सभी आते हैं, जो कृषि भूमि के एक टुकड़े पर भी काम करती है। परंतु यह केवल महिला किसानों की गिनती है और ये उन्हें वो आवश्यक पहचान प्रदान नहीं करती है जो उन्हें किसानों को प्राप्त होने वाले अधिकारों तक पहुंचने में सक्षम बनाती हो।

क्योंकि 87% से अधिक महिलाओं के पास जमीन पर मालिकाना हक नहीं है इसलिए वे सरकार के लिए आधिकारिक तौर पर 'किसान' नहीं हैं। नतीजतन, कृषि में ज्यादातर महिलाएं किसानों के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाती हैं और न ही वे खेती के लिए सब्सिडी (Subsidy), खेती के लिए ऋण, ऋण छूट, फसल बीमा आदि सुविधाएं प्राप्त कर पाती हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (National Crime Report Bureau) के अनुसार 2014 में कुल 8,007 किसानों ने खुदकुशी की थी, जिनमें से 441 महिला किसान थीं तथा उसी वर्ष ऐसी 577 महिलाएं ने भी खुदकुशी की थी जो खेतों में मजदूरी करती थीं। महिला किसानों की ये दिक्कतें दरअसल पितृसत्तात्मक समाज के कारण जमीन पर अधिकार न मिलने की वजह से हैं। और ये समस्याएं तब तक बनी रहेंगी जब तक सरकार ये नहीं समझती कि महिलाएं ही खेती का प्रमुख हिस्सा हैं, और उनके हित के लिए काम शुरू नहीं करती। सरकार को आज राष्ट्र के विकास के लिये कृषि कार्यों से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है और भारतीय कृषि के "स्त्रीकरण" को स्वीकार करने के लिए कई कदमों को उठानें की भी आवश्यकता है।

संदर्भ:

1. https://thewire.in/women/women-farmers-agriculture-rights
2. https://www.hindustantimes.com/columns/it-s-time-the-government-recognised-the-role-of-women-
3. 
in-agriculture/story-h1zDdTP7P2GgzIxYk5uAHM.html
4. https://www.villagesquare.in/2018/06/18/mountain-women-live-and-work-with-bent-backs/
5. https://thewire.in/agriculture/hard-realities-woman-farmer-in-india

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