क्या वास्तव में उल्लू है उल्लू?

मेरठ

 22-09-2018 12:54 PM
पंछीयाँ

उल्लू एक ऐसा पंछी है जिसका भारतीय समाज में एक बड़ा महत्त्व तो है, परन्तु किसी प्रशंसक अंदाज़ में नहीं। बचपन से लेकर आज तक आपने इस पक्षी के नाम को मूर्खता की उपमा स्वरुप इस्तेमाल होते देखा होगा, तथा शायद किया भी होगा। काली बिल्ली के साथ-साथ उल्लू भी हमारे अंधविश्वास भरे समाज द्वारा निर्धारित शुभ-अशुभ की सूची में शामिल है। बहुत हद तक शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक निशाचर जीव है तथा रात के भी काले होने के कारण इसे अशुभ मान लिया जाता है। तो चलिए आज इस मिथक को तोड़ आगे बढ़ते हैं और समझते हैं कि कैसे उल्लू ना तो मूर्ख है और ना ही अशुभ।

यह बिलकुल सत्य है कि उल्लू अन्य पक्षियों से काफी भिन्न होता है। यह दिन में न जागकर रात में जागता है, इसकी आँखें काफी चमकती हुई सी होती हैं और दूसरी चिड़ियाओं की तरह अलग अलग दिशा में न होकर मानव की तरह सामने की ओर होती हैं, यह अपनी गर्दन को काफी हद तक (करीब 270°) गोल घुमा सकता है तथा इसके पंख भी काफी मुलायम होते हैं। भारत में उल्लुओं की करीब 40 से 45 प्रजातियाँ पायीं जाती हैं। तो चलिए इन्हीं में से एक प्रजाति ‘जंगली घुघू’ या अंग्रेज़ी में कहें तो ‘यूरेशियन ईगल आउल’ (Eurasian Eagle Owl) या संस्कृत में कहें तो ‘भासोलूक’ की बात करते हैं।

उल्लू की सभी प्रजातियों में से सबसे बड़े आकार वाले उल्लुओं में से एक है जंगली घुघू। इसका वज़न 3 से 4 किलो तक का हो सकता है जिससे इसके आकार की विशालता का और बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है। हालांकि इसके विशालकाय होने के कारण इसके उड़ने की गति पर थोड़ा असर पड़ता है और ये बाकी प्रजातियों से धीमे उड़ पाता है। इस उल्लू के कान के छिद्रों को ढकने वाले पंख दूजे उल्लुओं से भिन्न होकर खड़े हुए होते हैं। और रोचक बात यह है कि इसके दाहिने कान के पंख बाएं कान के पंखों से लम्बे होते हैं। इनके गले की ओर के हिस्से पर सफ़ेद रंग का धब्बा सा होता है जिस कारण ये अपना शिकार सूर्यास्त के समय या सूर्योदय के समय हलकी रौशनी में ही करते हैं, नहीं तो घोर अंधेरे में इनका शिकार इन्हें देख लेगा।

यह उल्लू काले-भूरे रंग का होता है तथा इसकी आँखें आकार में बड़ी और चमकीले नारंगी रंग की होती हैं। यह अक्सर पहाड़ी इलाकों में चट्टानों और घने पत्तेदार पेड़ों के बीच बैठा रहता है। यह उल्लू ‘बुबो’ वंश (Bubo Genus) से नाता रखता है। इसका वैज्ञानिक नाम है ‘बुबो बुबो बंगालेंसिस’ (Bubo bubo bengalensis)। इसकी बोली दो स्वरों ‘बु-बो’ की होती है जिसमें दूसरा स्वर ‘बो’ लम्बा खींचा जाता है। इनका घोंसला बनाने का समय नवम्बर से अप्रैल तक का होता है। एक बार में ये 3-4 अंडे देते हैं तथा ये अपने अंडों को खुली मिट्टी में किसी चट्टान के समीप या फिर किसी झाड़ी के नीचे सुरक्षित रखते हैं। इसी घोंसले की जगह हो हर साल इस्तेमाल किया जाता है। अंडे से बच्चे करीब 33 दिन बाद निकलते हैं और फिर करीब 6 महीने तक वे अपने माता-पिता पर निर्भर रहते हैं। भारत में यह ज़्यादातर उत्तरी और मध्य भारत के हिस्सों में पाया जाता है। रामपुर के तराई क्षेत्र से थोड़ी ऊंचाई पर हिमालय की पहाड़ियों में इसे पाया जा सकता है।

संदर्भ:
1. सिंह, राजेश्वर प्रसाद नारायण. 1958. भारत के पक्षी. प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रकाशन मंत्रालय
2. अंग्रेज़ी पुस्तक: Kothari & Chhapgar. 2005. Treasures of Indian Wildlife. Oxford University Press
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_eagle-owl
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Eurasian_eagle-owl

RECENT POST

  • आइए जानें, हमारी प्रगति की एक प्रमुख चालक, बिजली के व्यापार के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:43 AM


  • भारत में परमाणु ऊर्जा का विस्तार: स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक सशक्त कदम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:30 AM


  • आइए, आज देखें, अब तक के कुछ बेहतरीन तेलुगु गीतों के चलचित्र
    ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

     05-01-2025 09:25 AM


  • भारत के 6 करोड़ से अधिक संघर्षरत दृष्टिहीनों की मदद, कैसे की जा सकती है ?
    संचार एवं संचार यन्त्र

     04-01-2025 09:29 AM


  • आइए, समझते हैं, मंगर बानी और पचमढ़ी की शिला चित्रकला और इनके ऐतिहासिक मूल्यों को
    जन- 40000 ईसापूर्व से 10000 ईसापूर्व तक

     03-01-2025 09:24 AM


  • बेहद प्राचीन है, आंतरिक डिज़ाइन और धुर्री गलीचे का इतिहास
    घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ

     02-01-2025 09:36 AM


  • विविधता और आश्चर्य से भरी प्रकृति की सबसे आकर्षक प्रक्रियाओं में से एक है जानवरों का जन्म
    शारीरिक

     01-01-2025 09:25 AM


  • क्या है, वैदिक दर्शन में बताई गई मृत्यु की अवधारणा और कैसे जुड़ी है ये पहले श्लोक से ?
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     31-12-2024 09:33 AM


  • लोगो बनाते समय, अपने ग्राहकों की संस्कृति जैसे पहलुओं की समझ होना क्यों ज़रूरी है ?
    संचार एवं संचार यन्त्र

     30-12-2024 09:25 AM


  • आइए देखें, विभिन्न खेलों के कुछ नाटकीय अंतिम क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     29-12-2024 09:21 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id