भगवान बुद्ध के बाद बौद्धों में मतभेद उभरकर सामने आने लगे थे। द्वितीय बौद्ध परिषद के दौरान थेरवाद भिक्षुओं से मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया। अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को 'महासांघिक' और जिन्होंने निकाला था उन्हें 'हीनसांघिक' नाम दिया जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण कर लिया। बौद्ध धर्म मूल रूप से पाली में पढ़ाया जाता था, जो कि उस समय के लोगों की भाषा थी। हीनयान (इसे थेरवाद, स्थिरवाद भी कहते हैं) भी पाली भाषा में लिपिबद्ध किया गया था और लगभग 3-4 शताब्दियों के बाद संस्कृत लिपि के प्रभाव के चलते महायान संस्कृत में लिपिबद्ध किया गया था। आइये इन दोनों धार्मिक ग्रंथों में कुछ भिन्नताओं को जानते हैं।
बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। ईसा पूर्व 6ठी शताब्दी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। इस धर्म को बचाए रखने और इसका संचालन करने के लिए, कुछ प्रमुख संन्यासी या गुरू तथा अनुयायी होते हैं। जिन्हें प्रायः भिक्षु, बोधिसत्व, बुद्ध, अरहंत, देव आदि कहा जाता है। चलिए एक नज़र डालें इनके मध्य अंतर में:
बुद्ध:
बुद्ध एक पूरी तरह आत्मनिर्भर व्यक्ति है (बिना किसी अन्य बुद्ध की प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद से)।
बोधिसत्व (थेरवाद में):
ज्ञान के रास्ते पर जा रहा व्याक्ति बोधिसत्व है। बौद्ध धर्म में, बोधिसत्व सत्त्व के लिए प्रबुद्ध (शिक्षा दिये हुये) को कहते हैं।
बोधिसत्व (महायान में):
एक जागृत व्यक्ति, जिसने दूसरों के लिए संसार में अनिश्चित काल तक सेवा करने की कसम खाई है। पारम्परिक रूप से महान दया से प्रेरित, बोधिचित्त जनित, सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिए सहज इच्छा से बुद्धत्व प्राप्त करने वाले को बोधिसत्व माना जाता है।
अरहंत (थेरवाद में):
एक पूरी तरह से प्रबुद्ध व्यक्ति को कहा जाता है। अरहंत ‘संपूर्ण मनुष्य’ को कहते हैं जिसने अस्तित्व की यथार्थ प्रकृति का अंतर्ज्ञान प्राप्त कर लिया हो और जिसे निर्वाण की प्राप्ति हो चुकी हो।
अरहंत (महायान में):
वह व्यक्ति है जिसने स्वयं के लिए शांति (ज्ञान का) प्राप्त किया है, लेकिन दूसरों के लिए इसे देने को तैयार नहीं है।
देव:
ये मानव आंखों के लिए अदृश्य दिव्य प्राणी होते हैं जिन्होंने अतीत में अच्छे कर्म किए हैं और परिणामस्वरूप स्वर्ग में पैदा हुए हैं। वे आमतौर पर एक लंबे जीवन काल का आनंद लेते हैं। मनुष्यों के विपरीत, वे बीमार नहीं मरते।
भिक्खु:
बौद्ध संन्यासियों या गुरूओं को भिक्षु (संस्कृत) या भिक्खु (पाली) कहते हैं। ये अपना जीवनयापन ‘दान या भिक्षा’ पर करते हैं।
संदर्भ:
1.https://www.quora.com/What-is-the-difference-between-Mahayana-Hinayana-and-Theravada-Buddhism
2.https://buddhism.stackexchange.com/questions/3057/buddhas-vs-bodhisattvas-vs-arhats-vs-devas-vs-brahmas
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Arhat
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Bhikkhu
5.https://dharmawheel.net/viewtopic.php?t=14816
6.https://www.buddhanet.net/e-learning/snapshot02.htm
7.https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8
8.https://en.wikipedia.org/wiki/Paritta
9.https://goo.gl/QEbXco
10.https://goo.gl/M5GxPT
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.