भारत में कुछ ब्रांड के नाम ऐसे हैं जिनका नाम लेते ही हमारे दिमाग में उनके उत्पाद की छवि उभर कर आ जाती है। ऐसे में अगर वाहन उद्योग की बात करें, तो शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जिसने मारूति सुज़ूकी का नाम न सुना हो। आज हम आपको मारूति सुज़ूकी के इतिहास से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं, परंतु उससे पहले थोड़ा सा मारूति सुज़ूकी के बारे में जान लेते हैं।
मारुति सुज़ूकी इंडिया लिमिटेड को पहले मारुति और इससे पूर्व मारुति उद्योग लिमिटेड के नाम से जाना जाता था। यह संगठन भारत में एक बड़ा मोटर निर्माता है। यह जापानी मोटरगाड़ी एवं मोटरसाईकिल निर्माता सुज़ूकी की एक सहायक कंपनी है। आकड़ों के आनुसार जुलाई 2018 तक, भारतीय यात्री कार बाज़ार में इस कंपनी की हिस्सेदारी 53% थी। शेयर बाज़ार से जुड़ी बात करें तो पहले मार्केट कैपिटलाइज़ेशन समझना ज़रूरी है। मार्केट कैपिटलाइज़ेशन एक कंपनी के आउटस्टैंडिंग शेयरों (कंपनी के वे सभी शेयर जो वर्तमान में निवेशकों, कंपनी अधिकारियों और अंदरूनी सूत्रों के अधिकार में हैं) की संख्या को बाज़ार मूल्य से गुणा करके प्राप्त की जाती है। मारुती सुज़ूकी का मार्केट कैपिटलाइज़ेशन 260,781 करोड़ (14 सितम्बर 2018 को) है। आज मारूति सुज़ूकी प्रवेश स्तर हैचबैक में ऑल्टो, रिट्ज़ से लेकर स्विफ्ट, वैगन आर और सेडान वर्ग में डिज़ायर, सिआज़ और बड़े वाहनों में ईको, ओम्नी, ग्रांड विटारा आदि बेचती है।
आईए अब आपको बताते हैं मारुति सुज़ूकी से संजय गांधी किस प्रकार जुड़े हुए हैं:
संजय गाधी ने ब्रिटेन में रॉल्स रॉयस में प्रशिक्षण हासिल किया था। उनको कारों को लेकर हमेशा से बहुत लगाव था। वह सन 1968 में वापस भारत लौटे और सरकार तथा योजना आयोग दोनों इस नतीजे पर पहुंच गए कि निजी क्षेत्र में छोटी कार का निर्माण एक अच्छा विचार है। संजय ने दिल्ली के ट्रक चालकों की एक पसंदीदा जगह गुलाबी बाग (दिल्ली) में छोटी कार के नमूने के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी।
सरकार ने सितंबर 1970 में आशय पत्र जारी कर दिया। इस पत्र के ज़रिये संजय गांधी को यह अनुमति दे दी गई कि वह एक वर्ष में 50,000 तक कारें बना सकें। फिर 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक ऐसी ‘गाड़ी' के निर्माण का प्रस्ताव दिया, जिसे आम आदमी खरीद सके, तो अगस्त 1971 में ‘मारूति मोटर्स लिमिटेड' नाम से एक कंपनी बनाई गई और बिना किसी तजुर्बे, नेटवर्क और डिज़ाइन (Design) के ही इसके प्रबंधक निदेशक संजय गांधी बने।
मारुति द्वारा बनाया गया छोटी कार का नमूना परीक्षण में विफल हो गया। इसका सीधा तात्पर्य था कि यह वाहन सड़क पर उतारे जाने लायक नहीं था। कई लोगों द्वारा इस समय मारुती पर सियासी पहुँच का फायदा उठाने के इलज़ाम लगाये गए, किन्तु 1971 के युद्ध ने विरोध की आवाजों को दबा दिया। हालांकि संजय ने जर्मन कंपनी फोक्सवैगन से भी संपर्क किया, परंतु इस फैसले के साथ क्या हुआ, कोई नहीं जानता। लेकिन इसके बावजूद जुलाई 1974 में मारुति को 50,000 कारें बनाने का औद्योगिक लाइसेंस प्रदान कर दिया गया।
1974 में, सरकार के खिलाफ एक विपक्षी विद्रोह ने देश में व्यापक परेशानी पैदा की, जिसने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। संजय की मां, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल (1975) घोषित किया, सैनिक कानून लागू किया, प्रेस की आज़ादी को नियंत्रित कर दिया और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ऐसे कई विशेषाधिकारों को निलंबित कर दिया। इस समय संजय का सम्पूर्ण ध्यान इस समस्या को हल करने की ओर आवश्यक था और इसलिए मारुती की योजना पर एक विराम लग गया।
1977 के आम चुनावों के दौरान ‘जनता दल' की जब सरकार बनी तो मारुति को समाप्त कर दिया गया था। अंतत: मारुति दिवालिया हो गई। इसके बाद 1980 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद इसे पुननिर्मित किया गया, संजय गांधी की मौत के एक साल बाद जून सन 1980 में सरकार ने इंदिरा गांधी के आदेश पर मारुति को उबारा और उसके लिए एक विदेशी साझेदार की तलाश शुरू की। अंतत: जापानी कंपनी सुज़ूकी के रूप में उसे अपना साझेदार मिला।
इस प्रकार भारतीय कम्पनी मारूति सुज़ूकी ने कई परिस्थितियों से जूझते हुए नम्बर 1 बनने का सफऱ तय किया था, और आज इसने भारतीय बाजार में एक बड़ा मुकाम हासिल किया है।
संदर्भ:
1.https://www.motoroids.com/features/maruti-and-sanjay-gandhi-the-history-of-an-illicit-extraordinary-love-affair/
2.http://www.rediff.com/business/special/special-the-brazen-story-of-sanjay-gandhis-car-project/20150710.htm
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Maruti_Suzuki
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