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19वीं शताब्दी के सबसे सफल कलाकारों में से एक थे राजा रवि वर्मा, जिन्होंने बिना किसी शिक्षा के अपने प्रयासों के माध्यम से यूरोपीय शैली में चित्रकारी करना सीखा था। वहीं आधुनिक भारतीय चित्रकला को जन्म देने का श्रेय भी राजा रवि वर्मा को ही जाता है, जिनके द्वारा बनाए गए मनुष्य और भगवान, दोनों के चित्र बिलकुल सजीव प्रतीत होते हैं। जल्द ही उनकी सारी प्रतियां पूरे भारतवर्ष के घरों में पहुँच गईं। इन्हीं में से एक है शांतनु और सत्यवती की प्रसिद्ध चित्रकारियां। वैसे तो शांतनु और सत्यवती की कहानी भी महाभारत का एक हिस्सा है लेकिन यह नल दमयंती की तरह प्रसिद्ध नहीं हुई, तो आइये आज आपको बताते हैं इस कहानी के बारे में –
शांतनु हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप के पुत्र थे, जिनका विवाह गंगा से हुआ था। गंगा ने विवाह से पहले शांतनु से वचन लिया था कि शांतनु उनके किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। गंगा के गर्भ से महाराज शान्तनु के आठ पुत्र हुये जिनमें से सात को गंगा ने गंगा नदी में ले जा कर बहा दिया। परंतु जब वह आठवे पुत्र को नदी में बहाने के लिये ले जा रही थी तो राजा शान्तनु ने उन्हें रोक लिया और अपने पुत्र को न बहाने के लिये प्रार्थना की, यह सुन कर गंगा ने कहा, "आपने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी है इसलिये अब मैं आपके पास नहीं रह सकती।" इतना कह कर गंगा अपने पुत्र के साथ अन्तर्ध्यान हो गईं। कुछ वर्षों बाद शांतनु ने गंगा के किनारे जा कर गंगा से अपने पुत्र से मिलने की विनती की, गंगा उस बालक के साथ प्रकट हो गईं और बोलीं, "राजन्! यह आपका पुत्र है तथा इसका नाम देवव्रत है”, जिन्हें आज हम महाभारत के प्रमुख पात्र भीष्म के नाम से भी जानते हैं।
तत्पश्चात् एक दिन जब शांतनु जंगल में टहलने निकले तो वहाँ वे सत्यवती की सुगंध की ओर आकर्षित हो गये। सत्यवती मछुआरों के सरदार की बेटी थी, जिसका जन्म मछली के पेट से हुआ। शांतनु द्वारा सत्यवती से शादी के प्रस्ताव रखने पर सत्यवती के पिता उनसे शादी के लिये इस शर्त में सहमत हुए कि उनकी बेटी का पहला पुत्र हस्तिनापुर के सिंहासन का उत्तराधिकारी होगा। लेकिन राजा शांतनु अपने वचन को स्वीकार करने में असमर्थ रहे क्योंकि उनके सबसे बड़े पुत्र देवव्रत सिंहासन के उत्तराधिकारी थे। हालांकि, जब देवव्रत को इसके बारे में पता चला तो अपने पिता के लिए उन्होंने मछुआरे के सरदार को यह वचन दे दिया और सिंहासन त्याग दिया और आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने का भी वचन दे दिया ताकि सत्यवती से पैदा होने वाली भविष्य की पीढ़ियों को भी उनके वंश द्वारा चुनौती नहीं दी जाए, उस दिन से अपनी प्रतिज्ञा के कारण वे भीष्म कहलाये और उनकी ये प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से सदैव के लिये प्रख्यात हो गई।
सत्यवती और शांतनु की दो संतान हुईं जिनका नाम था चित्रसेन और विचित्रवीर्य। चित्रसेन की मृत्यु एक गन्धर्व द्वारा हुई तथा विचित्रवीर्य बीमारी के कारणवश बिना किसी संतान को अपने पीछे छोड़कर मारे गए। इसके बाद सत्यवती को ऋषि पराशर से हुए अपने पुत्र व्यास के बारे में याद आया और उन्हें याद करते ही वे उनकी आँखों के सामने प्रकट हो गए। इसके बाद सत्यवती ने व्यास से अपनी पुत्र-वधुओं को अपनाने का आग्रह किया और वे मान गए। इससे धृतराष्ट्र और पाण्डु का जन्म हुआ। इस प्रकार यदि देखा जाये तो सत्यवती धृतराष्ट्र और पाण्डु की दादी हुई।
राजा रवि वर्मा ने महाभारत के इन पात्रों की कहानी को बखूबी दर्शाया है, उन्हें देखकर ये कहा नहीं जा सकता कि ये महज़ एक कल्पना पर आधारित कलाकृतियां हैं। इन चित्रों में कहानी के पात्रों की भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Satyavati
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Shantanu
3. http://www.apamnapat.com/entities/Satyavati.html
4. https://nabayanroy.wordpress.com/2012/09/26/the-story-of-matsyagandha-and-rishi-parashar-and-the-birth-of-krsna-dwaipayana/