वर्ष 1928 में जब अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक पेनिसिलिन का अविष्कार किया, तो यह खोज जीवाणुओं के संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने में एक चमत्कार सिद्ध होने लगी थी। समय के साथ एंटीबायोटिक का चलन तेजी से बढ़ा, लेकिन धीरे-धीरे वक्त बदला और साथ ही साथ बदली जीवाणु की आनुवंशिक बनावट। आज के समय में एंटीबायोटिक के लगातार इस्तेमाल से बैक्टीरिया में उत्परिवर्तन के कारण एक प्रतिरोध क्षमता पैदा हो गई है। एंटीबायोटिक दवा के उपयोग से बैक्टीरिया अब इतना ताकतवर हो गया है कि उस पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होने लगा है या हम ये भी कह सकते हैं कि बिल्कुल से खतम होने लगा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन(W.H.O) की 2014 की रिपोर्ट में दुनिया भर में सरकारों को चेतावनी दी थी कि एंटीमाइक्रोबियल(antimicrobial) प्रतिरोध (जब माइक्रो ऑर्गनिज्म (जैसे कि बैक्टीरिया, कवक, वायरस और परजीवी), एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे कि एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमलेरीयल्स और एंथेमिलिंटिक्स) के संपर्क में आने पर बदल जाते हैं, तब इसे एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध(Antimicrobial Resistance) (एएमआर) कहा जाता है।) हर जगह फैल गया है और यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
वे माइक्रो ऑर्गनिज्म(Microorganism), जिनमें एंटीमाइक्रोबियल(Antimicrobial) प्रतिरोध विकसित हो गया है (अर्थात इस पर एंटीबायोटिक का कोई असर नही होता है), उन्हें "सुपरबाग" कहा जाता है। इन सुपर बाग ने इतनी सारी दवाओं के प्रति प्रतिरोध क्षमता विकसित कर ली है कि अब इनका इलाज पहले ही मुश्किल हो गया है।
भारत की बात करें तो यहाँ एंटीबायोटिक का अंधाधुंध उपयोग ही प्रतिरोध विकसित होने का का एक प्रमुख कारक है। यह एंटीबायोटिक दवाओं का कुल उपयोग वर्ष 2000 से 2015 तक दोगुना हो गया है। 2016 में, भारत ने 260 करोड़ से अधिक पैक या 15,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की एंटीबायोटिक दवाओं का उपभोग किया है, इन आंकड़ों ने भारत को मानव स्वास्थ्य के लिये एंटीबायोटिक दवाओं का विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बना दिया है। बढ़ती आय, ओवर-द-काउंटर बिक्री, एक खराब विनियमित निजी अस्पताल क्षेत्र, अस्पताल में संक्रमण की उच्च दर, सस्ती एंटीबायोटिक्स और लगातार संक्रामक बीमारी के प्रकोप एंटीबायोटिक की खपत का मुख्य कारण है।
परंतु भारत के लिये विडंबना यह है कि जब एंटीबायोटिक्स(Antibiotics) के उपयोग की बात आती है, तो भारत को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है, पहली ये की समाज के कुछ हिस्सों में एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक उपयोग से एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित हो रहा है, और दुसरी यह है कि एंटीबायोटिक्स को देश की गरीब, कमजोर और जरूरतमंद आबादी तक पहुंचाने के लिये कई सुधार करने है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के लिए एंटीबायोटिक प्रतिरोध की रोकथाम प्रमुख उद्देश्य बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एंटीबायोटिक प्रतिरोध सहित एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध(Antimicrobial Resistance) (एएमआर) पर वैश्विक कार्रवाई योजना का गठन किया है, इसके तहत एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के बारे में प्रभावी संचार, शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से जागरूकता प्रसारित की जाएगी।
1.https://www.thehindubusinessline.com/news/science/the-twin-challenge-of-antibiotics-use-in-india/article9967521.ece
2.https://www.hindustantimes.com/health/use-of-antibiotics-in-india-more-than-doubles-in-15-years-study/story-PS7pGfhUYQJMHWuGvnAjzM.html
3.https://cen.acs.org/pharmaceuticals/antibiotics/India-leads-increasing-antibiotic-consumption/96/i16
4.https://timesofindia.indiatimes.com/india/Antibiotic-addict-India-losing-fight-against-lethal-bacteria/articleshow/48993699.cms
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Antibiotic
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