कंकाल और मांसपेशियां वह रूपरेखा हैं जो किसी व्यक्ति की आकृति का निर्धारण करती हैं और उसे स्थानांतरित करने की अनुमति देती हैं। यदि कंकाल में केवल एक ठोस हड्डी होती तो? तब गति करना असंभव होता। प्रकृति ने कंकाल को कई हड्डियों में विभाजित करके और जोड़ों या संधि को बना कर इस समस्या को हल किया है। संधि शरीर के उन स्थानों को कहते हैं, जहाँ दो अस्थियाँ एक दूसरे से मिलती हैं, जैसे कंधे, कोहनी या कूल्हे की संधि। इनका निर्माण शरीर में गति सुलभ करने और यांत्रिक आधार हेतु होता है।
क्या आपने सोचा है कि जब हम फुटबॉल (Football) को किक (Kick) करते हैं तो हमारा पैर कैसे मुड़ जाता है या हमारी हड्डी किस प्रकार एक दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं? यदि नहीं तो हम आपको बता दें कि संधियों में होने वाली गतियों के कारण ऐसा संभव होता है। प्रत्येक संधि में मांसपेशियों की सिकुड़न और प्रसार से कुछ क्रियाएँ होती हैं जैसे मोड़, खिंचाव, अभिवर्तन (adduction), अपवर्तन (abduction), पर्यावर्तन/गोलाकार गति (circumduction), परिभ्रमण, एवं विसर्पन आदि। मेरठ में बनने वाले सभी खेल उपकरणों को इन्हीं क्रियाओं को ध्यान में रखते हुए मानव शरीर की गति के अनुसार बनाया जाता है, ताकि हम इनका उपयोग आसानी से कर सकें।
शरीर में मुख्य रुप से तीन प्रकार की संधियाँ पाई जाती हैं: अचल संधि, अर्धचल संधि तथा चल संधि।
अचल संधि: इन संधियों में दोनों अस्थियों के बीच में खाली स्थान नहीं होता। इस कारण अस्थियों के संगम स्थान पर किसी प्रकार की गति नहीं होती है। दोनों अस्थियाँ तंतु-ऊतक (Fibre Tissue) द्वारा आपस में जुड़ी रहती हैं। ये संधियां तीन प्रकार की होती हैं- सीवनी (Sutures), दंतमूलसंधि (Gomphosis) तथा तांतव संधि (Syndesmosis)।
अर्धचल संधि: इन संधियों में अस्थियों के बीच में उपास्थि (Cartilage) रहती है तथा गति कम होती है। ये दो प्रकार की होती है- उपास्थि संधि (Synchodrosis) तथा तंतूपास्थि संधि (Symphysis)।
चल संधि: इन संधियों की गति असीमित होती है। इसमें अस्थियां एक दूसरे से प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं होती हैं। ये कई प्रकार की होती हैं जैसे कोर संधि (Gingliums), विवर्तिका संधि (Pivot joint), स्थूलकाय संधि (Condyloid joint), पर्याण संधि (Saddle Joint), उलूखल संधि (Ball and Socket joint), सरल संधि (Plain Joint)।
शरीर में संधियों का कार्य गति प्रदान करना होता है। इसलिए इनकी रचना भी इस प्रकार से हुई है कि अस्थियाँ गति कर सकें। अस्थियों को चिकना रखने के लिए एक प्रकार का तरल पदार्थ (Synovial Fluid) मौजूद होता है जो संधियों से निकलता रहता है और ये हड्डियों को आपस की रगड़ से भी बचाता है। इस प्रकार ये सन्धियाँ हमारे शरीर को सरलता पूर्वक मोड़ने में सहायक होती हैं और इसी के फलस्वरूप हम अपने उठने, बैठने, चलने-फिरने, झुकने, लेटने इत्यादि कार्यों को सुगमता पूर्वक कर सकते हैं।
सन्दर्भ:
1. http://www.innerbody.com/image/skel07.html
2. http://www.teachpe.com/anatomy/joints.php
3. https://www.britannica.com/science/joint-skeleton
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Joint
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