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विश्व के इतिहास में काले अक्षरों से लिखे वो दिन जिनके बारे में हम आज भी पढ़ कर सहम जाते हैं, वो दिन जब मानव अपनी इंसानियत को भूल गया था। हिरोशिमा के लोगों के लिए यह दिन भी हर सुबह जैसा ही था। लोग अपने रोज़मर्रा के कामों को निपटा रहे थे, इस बात से अंजान कि वहाँ सब कुछ चंद पलों में ही ख़त्म होने वाला है। उस दिन कैलेण्डर में तारीख थी 6 अगस्त 1945। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने एक बेहद गोपनीय अभियान में जापान के हिरोशिमा पर अमेरिकी वायु सेना द्वारा परमाणु बम "लिटिल बॉय" (Little Boy) गिरवाया था। साथ ही 9 अगस्त 1945 को अमरीका ने दोबारा नागासाकी पर "फ़ैट मैन" (Fat Man) परमाणु बम गिराया। इस हमले में लाखों लोग मारे गए थे। उसके बाद जापान ने समर्पण किया। परमाणु हमलों की त्रासदी के बाद से जापान परमाणु हथियारों का विरोध करता रहा है।
जब गांधी जी ने खबर सुनी कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान में परमाणु बम का इस्तेमाल किया, तो उन्होंने कहा कि "मैं अपने शरीर को हिला भी नहीं पाया जब मैंने पहली बार सुना कि परमाणु बम ने हिरोशिमा को नष्ट कर दिया। इसके विपरीत, मैंने खुद से कहा कि यदि अब भी इस दुनिया ने अहिंसा को नहीं अपनाया, तो सम्पूर्ण मानव जाति आत्महत्या के मंत्र में बंध जाएगी।"
जब उनसे पूछा गया कि क्या इस घटना से अहिंसा में उनका विश्वास डगमगाया है, तो उन्होंने कहा कि ऐसा विश्वास ही एकमात्र चीज है जो परमाणु बम से भी नष्ट नहीं हो सकती है। साथ ही साथ उन्होनें हमें याद दिलाया कि काउंटर-बम (Counter Bomb) इस घटना के दुःख को नष्ट नहीं कर सकता बस इस पर शर्मिंदा हो सकता है, केवल प्यार ही हमें इससे उभरने की ताकत दे सकता है। हिंसा से हिंसा नष्ट नहीं हो सकती है। द्वेष केवल नफरत की गहराई को बढ़ाता है। मानव जाति को केवल अहिंसा के माध्यम से हिंसा से बाहर निकलना है। नफरत को केवल प्यार से दूर किया जा सकता है।
1945 में, संयुक्त राज्य अमरीका परमाणु हथियारों का एकमात्र निर्माता था। आज दुनिया में ऐसे घातक हथियारों के साथ नौ देश हैं - USA, रूस, फ्रांस, UK, चीन, इज़राइल, भारत, पाकिस्तान और उत्तरी कोरिया। अगर दुनिया की इन बड़ी ताकतों के बीच परमाणु युद्ध हो जाए तो इससे सीधे तौर पर दुनिया की लाखों की आबादी समाप्त हो जाएगी। यही नहीं, इसके बाद पृथ्वी पर निम्न तापमान और सूखे का असर सैकड़ों सालों तक रहेगा। गांधी जी द्वारा बताए गये आहिंसा के मार्ग पर चलने से ही आज लोगों के दिलों में मानवता की भावना उजागर हो सकती है। हमें ध्यान रखना होगा कि परमाणु-शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग हो, वह विनाश का हथियार नहीं वरन विकास का औज़ार बने।
संदर्भ:
1.https://mettacenter.org/daily-metta/gandhi-and-the-atom-bomb-daily-metta/
2.https://www.quora.com/What-was-the-reaction-s-of-Mahatma-Gandhi-after-the-twin-Atom-Bomb-blast-on-Japan-in-August-1945
3.https://www.huffingtonpost.in/sudheendra-kulkarni/hiroshimas-message-nuclea_b_7948732.html
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