मेरठ लघु क्रांति का शहर है। यहाँ पर बड़े पैमाने पर उद्योगों का जन्म हुआ है। विगत कुछ वर्षों से मेरठ एक शिक्षा के केंद्र के रूप में भी उभर कर सामने आया है। यह राजधानी दिल्ली से सटा हुआ जिला है जिस कारण यहाँ पर बड़े पैमाने पर शिक्षा के केंद्र खुले। मेरठ में अभियांत्रिकी के अनेकों महाविद्यालय खुल गए हैं तथा भारत के सबसे विशिष्ट अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में से मेरठ के कुछ महाविद्यालयों का नाम भी आता है। इनके अलावा मैनेजमेंट और मेडिकल की भी शिक्षा का यहाँ पर बोलबाला है।
शिक्षा के उभरे हुए केंद्र के कारण यहाँ पर शिक्षा के स्तर में बड़ा बदलाव आया है और लोग विभिन्न विभागों में शिक्षित हुए हैं। शिक्षा ग्रहण करने के पीछे युवाओं के मन में एक बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा होती है। शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत बच्चे रोज़गार के क्षेत्र में अपना कदम रखते हैं। वर्तमान में रोज़गार एक प्रमुख समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है। शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत भी यदि रोजगार की उपलब्धता न हो तो यह एक बड़ी समस्या है। मेरठ में रोजगार की यह समस्या अत्यंत सोचनीय है जिसका उदहारण हमें एक पुस्तक के माध्यम से मिलता है। पुस्तक क्रेग जेफरी द्वारा लिखित है तथा इस किताब में क्रेग अपने मेरठ में बिताये हुए दिनों के बारे में बताते हैं।
उन्होंने टाईमपास (Timepass: Youth, Class, and the Politics of Waiting in India) नाम की किताब में इस पूरे वाकये का विवरण प्रस्तुत किया है। 1995 में जब क्रेग मेरठ में थे तो वो लिखते हैं कि मेरठ में युवा और विद्यार्थी जो कि मध्यम श्रेणी के नीचे के हैं, वे एक निश्चित वेतन के रोज़गार के लिए चिंतित तो हैं परन्तु साथ ही ये अपना ज़्यादातर समय ऐसे ही व्यतीत कर देते हैं जिसको ये टाइमपास के नाम से बुलाते हैं। ये सब इंतज़ार करते थे कि एक नौकरी, रहने के लिए घर और पुलिस द्वारा सुरक्षा मिलेगी कभी। क्रेग के इस कथन को यदि वर्तमान के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो यह स्वतः ही जवाब दे देता है।
अब यदि आंकड़ो की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर 2001 की जनगणना के अनुसार 56.3% थी जो कि देश के औसतन 64.8% से काफी कम थी। वहीं 2011 के आंकड़ों को यदि देखा जाए तो उत्तर प्रदेश का औसतन साक्षरता दर 67.68% हो गया है और पूरे भारत का साक्षरता दर 74% है। यह प्रदर्शित करता है कि उत्तरप्रदेश और मेरठ में शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी हुयी है और रोज़गार की स्थिति में अभी तक सुधार देखने को नहीं मिला है।
क्रेग कहते हैं कि मेरठ में एक सरकारी पद के लिए नियमित रूप से 10,000 आवेदन आते हैं। इससे पता चलता है कि पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी रोज़गार एक बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है। शिक्षा का स्तर भी एक कारक है बेरोज़गारी का। कुछ लोगों का मानना है कि कमी नौकरियों में नहीं, बल्कि आवेदकों की कुशलता में है तथा सभी डिग्री पाने वाले छात्रों में से रोज़गार के लायक छात्र बहुत कम हैं।
इसका कारण है कि शिक्षा की जिस रूपरेखा का पालन आज भी भारत में किया जाता है वो ब्रिटिश से विरासत के रूप में हमें प्राप्त हुयी है। भारतीय उच्च शिक्षा में निरंतर मूल्यांकन और सक्रिय शिक्षा की कमी है। शिक्षक और छात्र परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और इसलिए सिर्फ अंकों को सफलता का माप मानते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में पाठ समझने और उससे कुछ सीख लेने का प्रयास कम होता जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव और रोज़गार की नए रूपरेखा का पालन कर के इस समस्या का निवारण किया जाना संभव है।
संदर्भ:
1.http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/1005247.cms?referral=PM&utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst
2.https://www.theguardian.com/commentisfree/2010/may/29/politics-waiting-social-action
3.https://www.livemint.com/Politics/lXlhB05IDyeUBTHQKoAPaL/Educated-still-unemployed.html
4.https://www.thehindu.com/opinion/interview/education-is-a-necessary-but-not-a-sufficient-basis-for-social-mobility/article2023922.ece
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