औपनिवेशिक युग के दौरान भारत में ब्रिटिशों के प्रवेश के साथ ही यहां की वास्तुकला में नये परिवर्तन आये। मेरठ छावनी की स्थापना औपनिवेशिक युग मे ब्रिटिशों द्वारा उनके रहने के लिऐ की गयी थी। अपने रहने के लिए उन्होंने खुबसूरत बंगले बनाए जिनमें उन्होंने विभिन्न प्रकार की शैलियों से भवन तथा खिड़कीयों और दरवाजों की साज सज्जा की।
अन्य कई शहरों की तरह, मेरठ में शहर के नजदीकी भूमि के बड़े टुकड़े अंग्रेजों द्वारा उनके छावनी और सिविल लाइनों के लिए आरक्षित थे। ब्रिटिश सैन्य इंजीनियरों (engineer) के द्वारा अधिकारियों के लिये घरेलू संरचनाओं पर आधारित स्थायी आवास तैयार किये गये, उसके बाद के संस्करण में, उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिशों ने इस तरह के बंगलों की विशाल इमारत का निर्माण किया जो आंतरिक रूप से विभाजित, एक बड़े परिसर में स्थित तथा चारों ओर एक बरामदे के साथ घिरी हुई थी। इस बुनियादी मॉडल को उस समय लगभग हर जगह ब्रिटिश साम्राज्य शासन में सुधारों के साथ अपनाया गया था।
बरामदा अथवा अंग्रेजी शब्द ‘वरैनडा’, बंगाली ‘बरांदा’ से आती है, क्यूंकि आखिरकार, अँगरेज़ यहाँ जब घर बना रहे थे तो यह इमारत यहां की स्थानीय वास्तुकला से ही प्रेरित थी, जिसकी रचना यहां भारत की ग्रीष्म जलवायु के आधार पर थी। ‘बंगलो’ शब्द भी बंगाल के स्थानीय घरों से उत्पन्न हुआ है। उस समय के बंगलो में ना सिर्फ बाहरी खुबसूरती पर ध्यान दिया गया था आपितु आंतरिक फर्श, खिड़कियों, दरवाजों को भी सुंदर और आकर्षक बनाया गया था। उस समय की खिड़कियों को एक वस्तु से ढका जाता था, उस वस्तु को "विन्डो ब्लाइंड्स" (window blinds) कहा जाता था।
विन्डो ब्लाइंड्स खिड़की को ढकने के लिए एक प्रकार का आवरण होता है। बांस के बेंत, लकड़ी आदि प्राकृतिक वास्तुओं से बने ब्लाइंड्स का उपयोग प्रकाश, वायु प्रवाह, गोपनीयता और सुरक्षा को बनाये रखने के लिए किया जाता था। उस समय बांस से बने ब्लाइंड्स का उपयोग प्रमुख्ता से किया जाता था, ये गर्मियों में बंगलों में ठंडक बनाने में सहायक थे। देखा जाए तो उनके घरों में यह सब स्वदेशी तकनीकों, जैसे चीक, जो आज भी बनती हैं, का परिपाक है।
औपनिवेशिक काल में यह विन्डो ब्लाइंड्स व्यापक रूप से लोकप्रिय और सौंदर्यपूर्ण समृद्ध सांस्कृतिक आइकन में बदल गये। उस समय से वर्तमान समय तक इन ब्लाइंड्स में कई आधुनिक और बुनियादी परिवर्तन करके इन्हें और भी सुविधाजनक और आकर्षक बना दिया गया है। यह कई प्रकार के होते हैं, जैसे कि बैंम्बु रोलिंग, फारसी, विनीशियन, रोमन ब्लाइंड्स आदि। ये ज्यादातर बरामदे, खिड़कियों, अपार्टमेंट और बंगलों की सजावट के लिए उपयोग किये जाते है।
हालांकि शुरू में बंगले विदेशी लोगों के लिए वहां की प्रौद्योगिकी और प्रथाओं के आनुसार डिजाइन किये गये थे, फिर भी इनमें भारतीय वास्तुशिल्प परंपराओं को देखा जा सकता है। इन बंगलों में से कुछ स्वतंत्र भारत में मुख्य रूप से सैन्य नियंत्रित छावनी में बचे हैं।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Window_blind
2.https://www.thehindu.com/features/homes-and-gardens/design/sunlight-yes-heat-no/article5689691.ece
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Veranda
4.https://iias.asia/sites/default/files/IIAS_NL57_2627.pdf
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