माचिस, कितनी छोटी सी चीज़ है ना! यदि गौर से देखा जाए तो इस दुनिया में छोटी से छोटी चीज़ भी अपने आप में अनोखी है। अब इस छोटी सी माचिस की डिब्बी को ही ले लीजिये। काम सबका एक और दाम भी सबका करीबन एक ही, फिर क्यों ये दिखने में इतने भिन्न-भिन्न होते हैं। क्यों की जाये इतनी मेहनत? क्यों ना सिर्फ एक काला या पीला या लाल या सादा सा डब्बा भर दिया जाए इन तीलियों से। जवाब है, क्योंकि सालों से इसे एक प्रकार की कला के रूप में देखा जा रहा है जो आज ख़त्म होने की कगार पर है। आपने स्टाम्प इकट्ठे करने वाले और सिक्के इकट्ठे करने वाले देखे होंगे, उसी प्रकार कई लोग इन माचिस के डब्बों को भी इकट्ठा करते हैं क्योंकि एक तरह से ये हमारे इतिहास को चित्रों के साथ प्रदर्शित करती हैं।
कुछ 20 साल पहले तक, रामपुर के नज़दीक बरेली की ‘विमको’ (Wimco) भारत में माचिस उत्पादन का सबसे बड़ा अड्डा था। परन्तु कुछ वर्ष पहले ही आई।टी।सी। ने इसे बंद करने का फैसला लिया। इसकी वजह थी, कच्चे माल के बढ़ते दाम, दुसरे देशों में निर्यात में गिरावट, आदि। तो चलिए आज देखते हैं बीते हुए ज़माने की कुछ माचिस की डिब्बियों के चित्र।
शुरुआती माचिस के डब्बे भारत के बाहर अधिकतर स्वीडन, ऑस्ट्रिया, जापान आदि में छपे जाते थे। परन्तु उनपर बने चित्रों में सबसे अधिक प्रसिद्ध थे हिंदु देवी देवताओं के चित्र:
पर्यटन स्थलों वाले माचिस के डब्बे:
स्वतंत्रता सेनानियों वाले माचिस के डब्बे:
राजा-महाराजाओं वाले माचिस के डब्बे:
भारत में छापे जाने वाले माचिस के डब्बों पर दिखने वाली कलाकृतियों में से थीं- भारत माता (देशप्रेम को समर्पित), हिन्दू देवी-देवता, स्वतंत्रता सेनानी, विज्ञापन, चलचित्र (फ़िल्में) आदि:
संदर्भ:
1.https://www.financialexpress.com/industry/itc-decides-to-shut-matchbox-unit-in-bareilly/33321/
2.https://retail.economictimes.indiatimes.com/news/food-entertainment/personal-care-pet-supplies-liquor/future-of-matchbox-industry-worth-rs-1500-crore-fading-away-with-time/48030617
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