किसी भी राज्य या देश पर आधिपत्य स्थापित करने में सेना का अहम् योगदान होता है और यही कारण है कि तमाम बड़े राजवाड़ों के पास अपना एक सैन्य संगठन हुआ करता था। सैनिकों के रहने और अभ्यास करने वाले स्थान को छावनी (कैंटोनमेंट/ कैंट) के रूप में जाना जाता है और यही कारण है कि आज भी कही पर कुछ बड़ी घटना होती है तो लोग कहते हैं कि पूरा शहर छावनी में तब्दील हो गया है। भारत पर अंग्रेजों के आधिपत्य के बाद उन्होंने यहाँ पर छावनियों का निर्माण करना शुरू किया। वर्तमान काल में भारत में कुल 62 छावनियां हैं जिनमें मेरठ सबसे महत्वपूर्ण छावनी है। अन्य छावनियों में जिनका निर्माण अंग्रेजों ने करवाया था निम्नवत हैं-
अहमदाबाद, अंबाला, बेलगाम, बैंगलूरू, दानापुर, जबलपुर, कानपुर, भटिंडा, दिल्ली, पुणे, पेशावर, रामगढ़, रावलपिंडी, सियालकोट, सिकंदराबाद और त्रिची आदि।
भारत और पकिस्तान के विभाजन के बाद कई छावनियाँ पकिस्तान में स्थित हो गयी थीं जैसे कि पेशावर, रावलपिंडी आदि। रावलपिंडी उस समय छावनियों का मुख्यालय हुआ करता था तथा इसके बाद उत्तरी भारत में मेरठ और रामगढ़ ब्रिटिश भारतीय सेना की सबसे महत्वपूर्ण छावनी थी। यदि मेरठ की स्थापना की बात की जाए तो यह 1803 में हुई थी। 18वीं और 19वीं शताब्दी में भारत में छावनी को अर्ध-स्थायी की तरह देखा जाता था क्यूंकि उस काल में राजनैतिक अस्थिरता बड़े पैमाने पर हुआ करती थी लेकिन 20वीं शताब्दी के अंत तक वे सभी छावनियां स्थायी बन गईं। सन 1903 में लॉर्ड किचनर के सैन्य सुधारों और 1924 के कैंटोनमेंट्स अधिनियम के माध्यम से इन छावनियों की स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला। यदि छावनियों की बात की जाये तो भारत भर में कुल 62 छावनियां स्थित हैं जो कि कुल 1,57,000 एकड़ जमीन के क्षेत्र में फैली हुयी हैं। इसके अलावा इन छावनियों का प्रशिक्षण क्षेत्र भी है जो कि 15,96,000 एकड़ में फैला हुआ है जहाँ पर सेना में भरती हुए लोगों को प्रशिक्षित किया जाता है।
मेरठ की छावनी, जो की भारत की सबसे बड़ी छावनी है, की स्थापना 1803 में लास्वारी की लड़ाई के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गयी थी। 2011 की जनगणना के अनुसार यह पूरे 3,568.06 हेक्टयर की जमीन अर्थात 35.68 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है तथा यहाँ पर कुल मिला कर 93,684 (नागरिक और सैन्य) लोग निवास करते हैं तथा यह लोगों की संख्या के तर्ज पर भारत की सबसे बड़ी छावनी है। 1857 के समय में मेरठ की छावनी का एक अहम योगदान था और यहाँ पर काली पलटन विद्रोह की शुरुआत हुयी थी। यह छावनी पुराने मेरठ शहर को 3 तरफ से घेरती है - पल्लवपुरम से सैनिक विहार से लेकर गंगा नगर तक। यह छावनी सड़क और रेल मार्ग से अच्छी तरीके से जुड़ी हुई है।
मेरठ छावनी 1829 से 1920 तक ब्रिटिश भारतीय सेना के 7वें (मेरठ) डिवीजन का विभागीय मुख्यालय था। इस प्रकार से मेरठ की छावनी अपने में एक अत्यंत ही विस्मय करने वाली छावनी के रूप में उभर कर सामने आई है। इस छावनी से सैनिकों ने य्प्रेस की पहली लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लिया था, एल अलामीन, फ्रांस की लड़ाई, बर्मा अभियान, भारत-पाकिस्तानी युद्ध, बांग्लादेश लिबरेशन (Liberation) युद्ध और कारगिल युद्ध दोनों की पहली और दूसरी लड़ाई में इस छावनी ने अपना अहम् योगदान दिया है। यह सिद्ध करता है कि यहाँ से सैनिक विदेशों में भी जाकर युद्ध कर के आये हैं। यह इस बात को भी प्रदर्शित करता है कि यह छावनी अंग्रेजों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण हुआ करती थी। यह अतीत में पंजाब रेजिमेंट कोर ऑफ सिग्नल, जाट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट और डोगरा रेजिमेंट आदि का केंद्र रहा है।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Cantonment
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Meerut
3. http://www.cbmrt.org.in/about-us.php
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