धर्मों की फुलवारी एक ऐसा गुलदस्ता है, जिसकी महक से पूरा विश्व महकता है। धर्म का अर्थ किसी जाति विशेष से नहीं है। यह फुलवारी एक ऐसी फुलवारी है, जहां पर सब धर्म के फूल खिलखिलाते हैं बिना किसी भेदभाव के और अपनी खुशबू अर्थात एकता से इस सुंदर फुलवारी को सींचते हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुसार, ईश्वर-अल्लाह एक ही नाम हैं। बस उनको पूजने का तरीका हर जाति विशेष के अनुसार अलग-अलग है। हर देश और हर भेष में उसके नाम अनेक हैं, लेकिन वो ईश्वर एक ही है। प्रत्येक व्यक्ति अपने विश्वास के अनुसार उसका सुमिरन करता है। उनके अनुसार, यदि सभी धर्मों का एक ही स्त्रोत है, तो हमें उन्हें संश्लेषित करना होगा। आज उन्हें अलग-अलग देखा जाता है और इसी कारण हम एक-दूसरे की जान आसानी से ले लेते हैं। यहां धर्म का अर्थ सांप्रदायिकता नहीं है। यह धर्म- हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म से आगे है। यह उनमें सामंजस्य बनाता है और उन्हें वास्तविकता प्रदान करता है।
दुनिया के महान धर्म जब एक साथ चलते हैं, तो आध्यात्मिक और दार्शनिक ज्ञान का जबरदस्त जलाशय बनाते हैं। उदाहरण के लिए- नेपाल में कई लोग हैं, जो हिन्दू और बौद्ध धर्म दोनों को मानते हैं। दूसरी ओर जापान में प्रसिद्ध कहानियों के अनुसार, लोग शिन्टो परम्परा में पैदा होते हैं, ईसाईयों के रूप में शादी करते हैं और अंत में बौद्धों के रूप में मर जाते हैं।
स्वामी शिवानंद के अनुसार- “सभी धर्म एक हैं। वे एक दिव्य जीवन जीना सिखाते हैं। मैं सभी धर्मों के संतों और भविष्य वक्ताओं का सम्मान करता हूं। मैं सभी धर्मों के सभी सम्प्रदायों का भी सम्मान करता हूं। मैं सभी की सेवा करता हूं, सभी से प्यार करता हूं, सभी के साथ मिल-जुलकर रहता हूं और सभी लोगों में भगवान को पाता हूं”।
सभी धर्मों में सत्य का मिश्रण होता है, जो दिव्य है और जो त्रुटि है- वो मानव है। सभी धर्मों का मूलभूत समान है, केवल अनिवार्यता में अंतर है। सत्य न तो हिन्दू और न ही मुस्लिम है, न ही बौद्ध और न ही ईसाई है। सत्य एक सजातीय, शाश्वत पदार्थ है। सत्य के धर्म का अनुयायी प्रकाश, शांति, ज्ञान, शक्ति और आनंद के मार्ग पर चलता है।
मनुष्य अज्ञानता में शक्ति और लोभ की वासना के कारण अपने धर्म को भूल जाता है। वह नास्तिक बन गया है और क्रूर बन गया है। वह नैतिकता भूल कर विनाश की राह पर चल रहा है। कोई बौद्ध धर्म का प्रचार करता है, लेकिन इच्छाओं और हिंसा को नहीं छोड़ पाता। कोई ईसाई धर्म का प्रचार करता है, लेकिन क्षमा और प्यार का अभ्यास नहीं करता है। कोई इस्लाम का प्रचार करता है, लेकिन मनुष्यता और भाईचारे को नहीं पहचानता है और कोई हिन्दू धर्म का प्रचार करता है, लेकिन प्रकाश को महसूस नहीं करता है। आज के दौर में प्रचार पुरूषों की आजीविका बन गया है, जबकि अभ्यास घृणित वस्तु।
हरिवंशराय बच्चन जी के शब्दों में-
नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बंटवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी,
और बकरा मुसलमान हो गया।
मंदिरों में हिन्दू देखे,
मस्जिदों में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया,
तब जाकर दिखे इंसान।
2. https://www.speakingtree.in/article/the-unity-of-religions-688202
3. http://www.dlshq.org/religions/unirel.htm
4. https://www.indiatimes.com/culture/who-we-are/10-images-of-religious-unity-that-define-the-idea-of-india-228132.html
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