यूं तो मेरठ के बारे में हमें काफ़ी किताबों में पढ़ने को मिल जाता है। और इन किताबों में से कई तो काफी प्राचीन भी हैं। परन्तु क्या आप जानते हैं कि मेरठ का ज़िक्र थॉमस बेकन नाम के एक व्यक्ति की सन 1840 की एक किताब ‘ओरिएण्टल एनुअल 1840’ में भी पाया गया है? जी हाँ। और तो और ये किताब इस किताब में उस समय के मेरठवासियों से वार्तालाप कर कुछ बिंदु भी दिए गए हैं। संभवतः, यह मेरठ के बारे में बताने वाली पहली किताब हो सकती है जिसे किसी अंग्रेज़ ने लिखा हो। उन्हीं में से एक विषय है मेरठ की प्रसिद्ध आबू लेन का। एक समय में इस स्थान पर एक आबू का मकबरा हुआ करता था जिसे सन 1688 में बनवाया गया था, जो है तो आज भी मौजूद परन्तु बहुत बुरी हालत में। अब लेखक की रूचि यह जानने में थी कि आखिर ये आबू था कौन जिसका मकबरा मेरठ में इतना मुख्य माना जाता है। तो आइये आज जानते हैं आबू लेन के आबू के बारे में।
लेखक के अनुसार उन्हें मेरठ के कुछ लोगों से इस विषय में पूछकर एक नहीं बल्कि करीब 45-46 आबू की जानकारी प्राप्त हुई। और हैरत की बात तो ये कि उनमें से हर एक आबू से कोई रोचक कथा जुड़ी थी। यानी 1840 के समय में भी इस बारे में किसी को निश्चित जानकारी नहीं थी। सबको बस एक अंदाज़ा ही था। उन सभी में से लेखक को 3 आबू ऐसे लगे जिनके नाम पर इस मकबरे का नाम पड़ा हो सकता है। उन 3 आबू के बारे में लेखक द्वारा प्राप्त जानकारी निम्न थी-
1.आबू बकर:
कुछ इतिहासकारों द्वारा इस आबू को अल-राज़ी की शक्ति का मुख्य बिंदु कहा जाता था। कहा जाता है कि इस आबू को तीन बार दफनाया गया था। वास्तव में उनकी जिंदगी हर तरीके से त्रयात्मक ही थी, जिस हिसाब से उनके 3 मकबरे भी बनाये जाते चाहिए थे। आबू बकर 3 अलग-अलग ख़लीफ द्वारा 3 बार वज़ीर चुने गए थे, उन्होंने 3 बार ही मक्का की भी यात्रा की थी, 3 बार उन्होंने क़ुरान के पाक़ पाठों का अनुकरण किया था, और जैसा कि ऊपर बताया गया है, उन्हें दफ़नाया भी 3 बार गया था।
2. आबू ओबैदा:
आबू ओबैदा को फ़ारस (ईरान) पर आक्रमण करने के लिए सेना के सेनापति के रूप में सबसे योग्य माना गया था। ओबैदा पूरी फ़ौज लेकर फरात नदी पर फ़ारस की सेना के सामने खड़ा हो गया और वहीँ अपनी छावनी लगा बैठा। फ़ारस की सेना में करीब 80,000 सैनिक थे तो वहीँ ओबैदा की सेना में सिर्फ 9,000, इसके बावजूद वो अपनी पूरी सेना को लेकर फ़ारस की सेना से लड़ने चला गया। आबू ओबैदा की फ़ौज का हर सैनिक दूसरी सेना के कम से कम 10 सैनिकों को मारने का दावा करता था, परन्तु फ़ारस की सेना में मौजूद हाथियों से लड़ने का उनको कोई अनुभाव नहीं था। इससे आबू के सैनिक थोड़े डर गए परन्तु आबू मुस्कुराते हुए दूसरी सेना के सेनापति शेह्रिऔ की ओर बढ़ने लगा। शेह्रिऔ एक सफ़ेद हाथी पर सवार था। अनगिनत भालों से बचते हुए आबू शेह्रिऔ तक पहुंचा और उसे हाथी से नीचे धकेल दिया और फिर उसे बीच में से चीर दिया। यह देख शेह्रिऔ का हाथी क्रोधित हो उठा परन्तु आबू ने हाथी की सूंड पर वार किया। परन्तु इस प्रक्रिया में आबू का पैर फिसल गया और वो ज़मीन पर जा गिरा। इससे पहले कि वो खुदको संभालता, घायल हाथी आबू के ऊपर आ गिरा और एक मक्खी की तरह आबू को पीस दिया।
3. आबू अक्कर:
आबू अक्कर वैसे तो अमीर इस्माइल के घर का एक मामूली सा ग़ुलाम था, परन्तु उसके एक कार्य की वजह से उसका नाम अमर हो गया। उमर लाइस को पराजित करने के बाद अमीर इस्माइल ने उसके इलाके पर कब्ज़ा कर लिया और उसे बंदी बना लिया। वह जानता था कि उमर ने कहीं ना कहीं एक खज़ाना छिपा कर रखा है। उमर से पूछने पर यह जवाब मिला कि उसने जंग से पहले ही सारा खज़ाना हेरात भिजवा दिया था ताकि वो किसी के हाथ ना लग सके। यह सुनकर अमीर ने एक टुकड़ी हेरात की ओर भी भेजी परन्तु खज़ाना कहीं न मिला। अब अमीर इस्माइल की फ़ौज का सब्र ख़त्म हो रहा था। वे अपना ईनाम चाहते थे। एक रास्ता था कर (Tax) को तीन गुना कर देना परन्तु अमीर ने वह रास्ता नहीं चुना। कुछ दिन में कोलाहल और बढ़ गया और अंत में अमीर के परिवार ने अपने आभूषणों से फ़ौज को ईनाम देने का फैसले किया। जैसे ही अमीर के परिवार की एक महिला ने अपना हार उतारा, एक चील उड़ते हुए आई और उसे मांस का टुकड़ा समझ अपने पंजों में दबा ले गयी। यह देख आबू अक्कर तुरंत एक घोड़े पर सवार हुआ और उस चील का पीछा करने लगा। कुछ देर में जब चील ने हार नीचे फेंका तो वो एक कुँए में जा गिरा। कुंआ सूखा पड़ा था तो आबू हार वापस लाने को उसमें उतर गया। परन्तु उसे वहाँ हार के अलावा और भी बहुत कुछ मिला। हीरे जवाहरात से भरी तिजोरियां उसी कुँए में छिपाई गईं थी। आबू ने वापस जा कर अमीर को इस बारे में बताया और सभी फौजियों को उनका ईनाम प्राप्त हुआ। उस दिन से आबू अक्कर को एक धनी व्यक्ति बना दिया गया, और उसकी उदारता के किस्से उसके अच्छे भाग्य के जितने ही मशहूर हो गए।
1. द ओरिएण्टल एनुअल 1840, थॉमस बेकन
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