सम्पूर्ण भारत नदियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है, यही कारण है कि यहां पर कृषि एक प्रमुख रोजगार का साधन है, मेरठ गंगा के मैदानी भाग पर बसा हुआ शहर है, यहां पर कई नदियाँ पायी जाती हैं जिनमें से एक नदी है काली नदी। काली नदी मेरठ की प्रमुख नदियों में से एक थी तथा यह यहां पर एक समय पीने और कृषि के जल का प्रमुख साधन थी, मेरठ का औद्योगिकीकरण हुआ और उसका प्रभाव यहाँ की नदियों पर पड़ना शुरू हुआ।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यू.पी.पी.सी.बी.) द्वारा मेरठ की काली नदी से एकत्र किए गए पानी के नमूनों पर किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में यह पता चला है कि नदी का पानी जलीय जीवन के जीवित रहने के लिए उपयुक्त नहीं है।
काली नदी में 2,24,267 एम.पी.एन. (सबसे संभावित संख्या) / 100 मिलीलीटर कोलिफोर्म जीव - 45 बार सहिष्णुता सीमा और राज्य में सबसे ज्यादा दर्ज की गई है। जिनमें से दोनों जल निकाय में कार्बनिक जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। नदी में इन सभी तीन मानकों के स्तर ऐसे हैं कि नदी में कोई जलीय जीवन जीवित नहीं रह सकता है।
काली नदी दून घाटी में निकलती है और हिंदु नदी (बरनवा, बागपत) से मिलने से पहले सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और बागपत जिलों से गुज़रती है, जो यमुना (दिल्ली के पास) के साथ विलय करने के लिए जाती है, जो गंगा से मिलती है, आखिरकार बंगाल की खाड़ी में परिवर्तित हो गया। इस प्रकार काली नदी जो मेरठ के लिए एक समय एक वरदान हुआ करती थी, आज एक अभिशाप साबित हो रही है जिसका प्रयोग मनुष्य तो क्या जानवर भी नहीं कर सकते।
1.http://www.downtoearth.org.in/news/black-curse-of-the-kali-river-39382
2.https://timesofindia.indiatimes.com/city/varanasi/Polluted-Kali-river-cant-sustain-life-anymore-says-UPPCB-report/articleshow/47641867.cms
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