सभी जानते हैं कि बर्फीली ठण्ड सहन करना आसान है, यदि हवा नहीं बह रही हो। पर सभी इसका सही कारण नहीं समझते। तेज़ हवा में अधिक ठण्ड की अनुभूति सिर्फ सजीव प्राणियों को ही होती है : थर्मामीटर का पारा हवा लगने से नीचे नहीं उतरता। बर्फीली ठण्ड में हवा बहने पर तेजी से ठंडक लगने का कारण है कि शरीर से (विशेष कर उसके खुले भागों से) कहीं अधिक गर्मी निकल कर वातावरण में लीन हो जाती है, जबकि शांत मौसम में, शरीर द्वारा गर्म की गयी हवा नयी ठंडी हवा से इतनी जल्दी विस्थापित नहीं हो पाती। हवा जितनी ही तेज़ होगी, प्रति मिनट उसकी उतनी ही अधिक मात्रा शरीर की सतह को स्पर्श करती हुई निकलेगी और इसके फलस्वरूप शरीर से प्रति मिनट ताप-हानि की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी। तेज़ ठण्ड की अनुभूति के लिए यही पर्याप्त है।
लेकिन एक कारण और है। हमारी चमड़ी से वाष्प के रूप में हमेशा आर्द्रता निकलती रहती है। वाष्पीकरण के लिए ताप चाहिए; वह हमारे शरीर से मिलता है और हमारे शरीर की निकटवर्ती हवा की परत से (यदि हवा स्थिर है, तो) वाष्पीकरण बहुत मंद होता है, क्योंकि चमड़ी के पास की हवा वाष्प से जल्द ही संतृप्त हो जाती है (आर्द्रता से संतृप्त हवा में वाष्पीकरण की क्रिया तीव्र नहीं होती)। पर यदि हवा प्रवाहमान है और चमड़ी को स्पर्श करती हुई नयी-नयी हवा गुजरती रहती है, तो वाष्पीकरण की गति अपनी प्रचंडता बनाये रखती है; वह मंद नहीं होती। और इसके लिए अधिक ताप खर्च होता है, जो हमारे शरीर से ही खींचा जाता है। इसलिए हम ठंडक का एहसास करते हैं।
अतः हम आसान शब्दों में यह कह सकते हैं कि हमें कितनी ठण्ड लग रही है, यह सिर्फ तापमान पर ही नहीं निर्भर करता बल्कि हवा के वेग पर भी निर्भर करता है। दो अलग स्थान जिनका तापमान एक समान हो परन्तु हवा की गति अलग-अलग, ऐसे स्थानों पर एक ही मनुष्य को ठण्ड का अलग अलग एहसास होगा।
1. मनोरंजक भौतिकी, या. इ. पेरेलमान
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