भारतीय इतिहास में मेरठ जिले का एक महत्वपूर्ण स्थान है। मेरठ में मौर्य साम्राज्य के बाद कुषाणों ने लम्बे समय तक शासन किया जिसके अनेकों प्रमाण यहाँ से मिलते हैं। शुंग कुषाण काल के साक्ष्य मेरठ के हस्तिनापुर से मिलते हैं। मिले साक्ष्यों में कुषाण मृदभांड, चूड़ियाँ आदि हैं जो कि हस्तिनापुर में कुषाणों के काल को प्रदर्शित करती हैं। कुषाणों के पतन के बाद मेरठ सहित पूरे भारत में एक एकक्षत्र शासन का लोप हो गया था परन्तु गुप्त काल की शुरुवात के बाद यह क्षेत्र गुप्तों के प्रभाव क्षेत्र में आ गया। गुप्त काल की शुरुआत 319 ईसवी में हुयी थी। इस वंश के संस्थापक श्रीगुप्त को माना जाता है। श्रीगुप्त के बाद चन्द्रगुप्त प्रथम इस वंश के पहले पराक्रमी शासक हुए जिन्होंने अपनी सीमाओं का प्रचार प्रसार करना शुरू किया और चन्द्रगुप्त के बाद समुद्र गुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय ने गुप्त काल को परम पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया।
इस काल ने भारत भर में एक बड़ी क्रांति का सूत्रपात किया। यह क्रांति थी कला और वस्तु के क्षेत्र में। भारत के पहले शुरुआती मंदिरों का निर्माण इसी काल में शुरू हुआ था। साँची का मंदिर भारतीय मंदिर निर्माण शैली का पहला उदाहरण माना जाता है। उसके बाद ललितपुर देवघर के मंदिरों व कानपुर में मिट्टी के मंदिर और अन्य कई स्थानों पर अनेकों मंदिरों का निर्माण होना शुरू हो गया। मेरठ जिला उस काल में गुप्त राजवंश के अधिकार क्षेत्र का हिस्सा था। गुप्तों के अंत के बाद 550 ईसवी के बाद मेरठ गुर्जर प्रतिहारों के हाथ में आ गया। गुर्जर प्रतिहार उत्तर भारत में गुप्तों के बाद सबसे बड़े राजवंश के रूप में उभरे थे। उत्तरभारत का एक बड़ा भूखंड इस राजवंश के अंतर्गत आता था। गुर्जर प्रतिहारों की राजधानी कन्नौज थी तथा इस काल में उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर मंदिरों आदि का निर्माण कार्य किया गया था। ये शिव और सूर्य दोनों को अपना देव मानते थे। इस कारण से इनके काल में शिव और सूर्य के मंदिरों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया गया था। आज भी इनके अवशेष हम विभिन्न संग्रहालयों व पुरस्थालों पर देख सकते हैं।
गुर्जर प्रतिहार के पतन के दौरान तोमर और चौहान राजवंशों के मध्य द्वंद्व होना शुरू हुआ और इसी का फायदा उठाते हुए मेरठ में डोर राजवंश के राजा हरदत्त ने मेरठ के किले का निर्माण करवा दिया। महमूद गजनी के नवे आक्रमण के दौरान उसने इस स्थान को अपने कब्जे में ले लिया था परन्तु 25,000 दीनार और 50 हाथियों के बदले उसने हरदत्त को पुनः यह स्थान सौंप दिया था। कालांतर में चौहानों के उदय के बाद डोर राजाओं को यह स्थान छोड़ देना पड़ा और चौहान शासक पृथ्वीराज के अंतर्गत यह क्षेत्र आ गया। पृथ्वीराज की मेरठ के तरोरी की हार के बाद यह क्षेत्र सल्त्नत का भाग हो गया।
1. द वकाटक गुप्त एज, आर सी मजूमदार, ए. एस. अल्तेकर
2. अर्ली इंडिया, रोमिला थापर
3. प्राचीन भारत का इतिहास भाग 1-2, के. सी. श्रीवास्तव
4. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/49795/11/11_chapter%202.pdf
5. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/26499/11/11_chapter%204.pdf
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