मैना एक अत्यंत महत्वपूर्ण पक्षी है तथा यह तराई के क्षेत्र से लेकर लगभग भारत के सभी इलाकों में पायी जाती है। मैना को एक अत्यंत सुरीले पक्षी के रूप में देखा जाता है। भारत भर में मैना की कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं जैसे कि- देशी मैना, दरिया मैना, गुलाबी मैना, तेलिया मैना, अबलखा मैना, पहाड़ी मैना, पवई मैना आदि। उपरोक्त दी गयी सभी प्रजातियाँ भिन्न भिन्न भौगोलिक स्थितियों में पायी जाती हैं।
देशी मैना सबसे आम मैना है, यह कश्मीर को छोड़ कर पूरे देश भर में पायी जाती है। कारण कि कश्मीर अत्यंत ऊँचाई पर बसा हुआ है। यह समुद्रतल से 2400 मीटर की ऊँचाई तक के भू भाग में पायी जाती हैं। मैना के विदेशों में विकास से जुड़ा यह तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इस देशी मैना को भारत से दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, न्यूजीलैंड आदि देशों में इस बात को ध्यान में रखकर ले जाया गया था कि ये वहां पर खेतों में लगने वाले कीड़ों को ख़त्म कर देंगी। जहाँ-जहाँ इस पक्षी को ले जाया गया वहां का माहौल इनके विकास के लिए अत्यंत उत्तम था तथा यही कारण है कि उन देशों में भी ये देशी मैना बड़े पैमाने पर विस्तृत हो गयी। देशी मैना जून से अगस्त के महीने में अपने अंडे देती हैं। ये साथ में करीब 4-5 अंडे देती हैं तथा इनके अंडे का रंग हल्का नीला होता है। मैना अक्सर घरों, कोटरों आदि में अपना घोसला बनाती है। देशी मैना को दूसरे नाम के अनुसार किलहैटा नाम से भी जाना जाता है। देशी मैना अन्य सभी प्रजातियों की मैना से बड़ी होती हैं तथा इनका अकार करीब 28 सेंटी मीटर बड़ा होता है। नर मैना और मादा मैना के आकार प्रकार में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं पाया जाता है। इनका रंग खैरा, लाल और पीला होता है।
दरिया मैना देशी मैना से आकार में छोटी होती है। इसके शरीर का ज्यादातर हिस्सा भूरा होता है तथा इसकी चोंच नारंगी रंग की होती है। इनका नाम दरिया इस लिए पड़ा क्यूंकि ये नदियों आदि के किनारे अपना घोसला बनाती हैं। गुलाबी मैना सबसे खूबसूरत होती है। इसका सीना तथा डैने काले रंग के होते हैं और शरीर का बाकि भाग गुलाबी रंग का होता है और इसी कारण इसका नाम गुलाबी मैना पड़ा है। तेलिया मैना का रंग काला और चमकीला होता है, इसी कारण इसको तेलिया मैना कहा जाता है। अबलखा मैना का शरीर काला होता है और पैर और दुम सफ़ेद रंग के होते हैं। यह मैना घरों आदि में ना रह कर पेड़ों आदि पर अपने घोसले बनाती हैं। पहाड़ी मैना मनुष्यों के परिवेश से दूर जंगल आदि में रहती है इसी कारण इन्हें पहाड़ी मैना कहा जाता है। ये मैना कूद कर नहीं चल सकती तथा ये मुख्य रूप से फलों का आहार ग्रहण करती हैं। इनका आकार छोटा होता है परन्तु ये अत्यंत मजबूत होती हैं। इनके पंखों का रंग काला होता है। चोंच नारंगी आँखे काली और पैर और सर पीले रंग के होते हैं। पवई मैना के शरीर का रंग बादामी होता है पंख काले और दुम के नीचे का हिस्सा सफ़ेद रंग का होता है इनके सर पर काली चोटी भी होती है त्रिकोण आकार की। इनके चोंच का अग्रभाग पीला और बीच का भाग हरा होता है तथा चोंच के जड़ का भाग नीले रंग का होता है। यह मई से अगस्त के महीने में अंडे देती हैं। इनका निवास स्थान मुख्य रूप से घरों के सुराखों में होता है। पवई मैना को सबसे ज्यादा पालतू बनाया जाता है क्यूंकि ये अत्यंत सुरीली होती हैं। मैना सर्वभक्षी होती हैं। मैना इस प्रकार से देश भर में पायी जाती हैं। मेरठ में भी यह अद्भुत चिड़िया पायी जाती है जो कि बगीचों में अपना अद्भुत राग सुनाती है।
1. भारत के पक्षी - राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह
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