परीक्षितगढ़ के राजा परीक्षित की कहानी

मेरठ

 24-05-2018 02:01 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

साँपों अपना एक अलग ही संसार होता है जिसमें बड़े विशाल काय अजगर से लेकर कोबरा जैसे सांप आते हैं। भारत में साँपों को बड़ी श्रद्धा के साथ देखा जाता है। प्रमुख देवों में से एक शिव का प्रमुख आभूषण सांप ही है। भारत में साँपों से जुड़े कई त्यौहार भी मनाये जाते हैं, उन्ही त्योहारों में से एक त्यौहार है नाग पंचमी। नाग पंचमी पूरे भारत में बड़े पैमाने पर मनायी जाती है। मेरठ और साँपों का भी अपना एक अलग इतिहास है। इसको जानने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटते हुए महाभारत काल में जाना पड़ेगा। मेरठ के पास स्थित परीक्षित गढ़ जो कि महाभारत कालीन राजा परीक्षित के नाम पर पड़ा है। यह कहानी राजा परीक्षित की सर्पदंश से हुई मृत्यु से शुरू होती है।

राजा परीक्षित उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र थे जिनको कृष्ण ने अश्वत्थामा द्वारा चलाये गए ब्रम्हास्त्र से बचाया था। परीक्षित का पालन-पोषण विष्णु और कृष्ण द्वारा किया गया था। परीक्षित का नाम परीक्षित इस लिए पड़ा क्यूंकि वह सभी के बारे में यह परिक्षण करता था कि वह कहीं उस आदमी से अपनी माँ के गर्भ में ही तो नहीं मिला था। सांप की कहानी की शुरुआत तब होती है जब राजा परीक्षित जंगल का भ्रमण करते हुए ऋषि शमीक की कुटिया में पहुचे। वहां वह अत्यंत प्यासे थे और उन्होंने ध्यान लगाये हुए ऋषि शमीक को कई बार बड़े आदर और भाव से जगाना चाहा पर ऋषि का ध्यान ना टूटा और अंत में परेशान होकर उन्होंने एक मरे हुए सांप को ऋषि के ऊपर डाल दिया। इस वाकिये को सुनकर ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि वह सातवें दिन ही एक सांप द्वारा दंश किये जायेंगे और उनकी म्रत्यु इससे हो जायेगी।

उपरोक्त श्राप को सुन कर राजा परीक्षित ने अपने पुत्र को राजा बना दिया और अगले सात दिन तक ऋषि शुक देव जो कि ऋषि वेद व्यास के पुत्र थे से भागवत पुराण सुनी। भागवत कथा सुनने के बाद परीक्षित ने ऋषि की पूजा करने के बाद कहा कि उनको अब सर्प दंश से कोई डर नहीं है क्यूंकि उन्होंने आत्मन और ब्रम्ह को जान लिया है। ठीक सातवें दिन तक्षक सांप ऋषि का वेश बना कर राजा से मिलने आया और उनको दंश लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। कई अन्य कहानियों में इस को अलग-अलग आधार पर बताया गया है। एक अन्य कथा के अनुसार जब परीक्षित को यह श्राप मिला तब उन्होंने एक कांच का महल बनवाया जिसमें कोई भी आ जा न सके परन्तु तक्षक सांप एक छोटे जानवर का रूप लेकर फूल में से होते हुए चले गया। और राजा के पास पहुंचते ही अपने असली रूप में आकर उसने राजा को काट लिया। इस वाकिये से राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय अत्यंक क्रोधित हुए और वे सर्प सत्र या सर्प समूल नाश यज्ञ करवाने का आयोजन करते हैं। इस यज्ञ को करने के लिए ऋत्विक ऋषियों को बुलाया गया था। जन्मेजय ने यह ठाना कि मात्र तक्षक ही नहीं अपितु संसार के समस्त साँपों की बलि वो दे देंगे। यज्ञ के शुरू होते ही बड़ी मात्र में सर्प हवन कुंड में आने लगे। इतने में एक आस्तिक नाम के ऋषि आये और उन्होंने महाभारत में घटी घटनाओं को जन्मेजय को सुनाया जिसके बाद जन्मेजय यह यज्ञ रोक देते हैं। चित्र में बाईं तरफ ऋषि शमीक और दाईं तरफ राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय की मूर्तियों को देखा जा सकता है जो परीक्षितगढ़ में स्थित एक मंदिर में मौजूद हैं। इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि मेरठ और सर्पों का अत्यंत प्राचीन और अध्यात्मिक रिश्ता है। आज वर्तमान काल में मेरठ में बड़े पैमाने पर सर्प पाए जाते हैं।

1. http://devdutt.com/articles/indian-mythology/mahabharata/the-snake-sacrifice.html
2. http://ritsin.com/story-raja-parikshit-snake-sacrifice-janmejaya.html/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Sarpa_Satra

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