उत्तरप्रदेश का रामपुर ऐसी भौगोलिक स्थिति पर बसा हुआ है जहाँ से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं अत्यंत नजदीक हैं। यही कारण है कि यहाँ पर कई ऐसे भी फल, पुष्प आदि मिल जाते हैं जिनका मैदानी इलाकों में मिलना असंभव सा है। ऐसा ही एक पुष्प है ‘बुरांश’ जो हिमालय में पाया जाता है। बुरांश का जूस अत्यंत फायदेमंद होता है तथा इसके कई आयुर्वेदिक फायदे भी हैं। यह पुष्प वैसे तो विश्व में कई स्थानों पर पाया जाता है पर भारत में यह बहुत ही कम स्थान पर पाया जाता है। रामपुर के नजदीक होने के कारण यहाँ का कोई भी व्यक्ति इस जूस का आनंद ले सकता है। यदि इस पुष्प और वृक्ष के विषय में ध्यान देते हैं तो कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हमारे सामने प्रस्तुत होते हैं- बुरांश का वैज्ञानिक नाम ‘रोडोडेंड्रोन’ है। यह उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है तथा नेपाल में इसको राष्ट्रीय पुष्प का दर्जा प्राप्त है। यह पुष्प गर्मी के दिनों में खिल जाता है। बुरांश के पुष्प का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाने में किया जाता है। इसका पुष्प किडनी, लीवर, अस्थियों में दर्द, रक्त कोशिकाओं की वृद्धि आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका नाम रोडोडेंड्रोन ग्रीक भाषा के ‘रोडो’ अर्थात गुलाब और ‘डेंड्रोन’ अर्थात पेड़ शब्दों के सम्मलेन से बना है। इस पुष्प का सबसे पहला जिक्र 401 ईसा पूर्व में बेबीलोन से आता है। इसके अलावा कई अन्य स्थानों से भी इस पुष्प का जिक्र मिलता है जो इस बात की पुष्टि कर देता है कि इस पुष्प का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है।
भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मसालों और खाद्य उत्पादन के लिए भारत में आई थी तथा उनको मुख्य रूप से यहाँ के पुष्पों आदि की जानकारी न थी। हालाँकि यह पुष्प विश्व के अन्य कई भागों में भी पाया जाता है और सब जगह रोडोडेंड्रोन नाम से ही जाना जाता था। यहाँ पर उन्होंने इस पुष्प को भी रोडोडेंड्रोन नाम दिया। एक बात लेकिन जानने योग्य थी कि भारत के हिमालय में सिक्किम और भूटान में पाया जाने वाला यह पुष्प विश्व के अन्य से कुछ भिन्न था और उनके लिए नया था। महान वैज्ञानिक डार्विन के दोस्त वनस्पतिविद जोसेफ हूकर ने ब्रिटिश राज शासकों और अपने दोस्तों के नाम पर कई रोडोडेंड्रॉन को नामित किया जिनसे वे भारत की यात्रा पर मिले थे।
जोसेफ हूकर ने नौसेना के अधिकारी के रूप में करीब 5 वर्षों तक ‘क्यु’ (Kew) में काम किया था। वहां पर उनके अच्छे कामों की वजह से उन्हें भारत में गवर्नर के रूप में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। उनके साथ ही उनके दोस्त ह्यू फाल्कनर सहारनपुर वानस्पतिक उद्यान का प्रभार लेने के लिए उन्ही के साथ यहाँ पहुंचे। बाद में जोसेफ हूकर ने अपने इन सभी मित्रों की याद में वानस्पतिक प्रजातियों को उनका नाम दिया जैसे- रोडोडेंड्रॉन ऑकलैंडि (अब ज्ञात है आर. ग्रिफिथियानम के रूप में), आर. डलहौसिये (लेडी डलहौसी के नाम पर), और आर. फाल्कोनेरी।
जोसेफ हूकर जो कि कलकत्ता में थे ने वहां से उत्तर में सिक्किम की यात्रा की और दार्जिलिंग में स्थित पहाड़ियों में दो साल बिताए। जहां उनका मेजबान नेपाल में ब्रिटिश निवासी ब्रायन होजसन था। एक और दोस्त डॉ आर्किबाल्ड कैंपबेल जो कि सिक्किम के अधीक्षक थे, से वे मिले। हूकर ने उनकी सहायता को ध्यान में रखकर रोडोडेंड्रोन हॉजसोनी, मैग्नोलिया कैंपबेली और रोडोडेंड्रोन कैंपबेलिया (श्रीमती कैंपबेल के नाम पर) इन सभी का नामकरण किया।
इस पुष्प का जूस आज भी छोटे पैमाने पर तैयार किया जाता है जो कि हर की पौड़ी और उत्तराखंड के अन्य कई स्थानों पर मिलता है। रामपुर का कोई भी इंसान इस जूस का रसास्वादन करने के लिए 1 से 2 घंटे का सफ़र कर उत्तराखंड में जा सकता है।
1.https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8
2.https://hindi.news18.com/news/uttarakhand/what-is-more-important-in-ayurveda-buransh-juice-696411.html
3.https://scholar.lib.vt.edu/ejournals/JARS/v44n4/v44n4-magor.htm
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