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गुलमोहर का नाम सुनते ही हमारे सामने लाल-नारंगी रंग के खूबसूरत फूल दिखाई देने लगते हैं। इस पुष्प को भारत में कई नामों से जाना जाता है। उन्हीं में से एक नाम है जो कि अध्यात्म से भी जुड़ा है। इस पुष्प को कृष्ण को चढ़ाया जाता है, इस कारण इसे ‘कृष्ण चूड’ के नाम से भी जाना जाता है। इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम ‘डेलोक्सी रेजिया’ है। यदि गुलमोहर के इतिहास के बारे में देखें तो यह वृक्ष मेडागास्कर का मूल वृक्ष है। यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है।
इनकी पत्तियां चौड़े क्षेत्र में फैली होती हैं और ये इमली की तरह छोटी छोटी पत्तियों का एक झुण्ड होता है। यह एक छतरी के आकार की तरह दिखने वाला वृक्ष होता है। यह वृक्ष अप्रैल से जून महीने में अपने मुख्य रूप में आता है अर्थात यह पूरा वृक्ष फूलों से लद जाता है। पुष्प के आते ही यह वृक्ष अपने उफान पर हो जाता है। जहाँ अनेकों गुलमोहर खड़े होते हैं वहां ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि स्वर्ग के समान सभी जगह पर लाल फूलों की चादर बिछ गयी हो और आसमान भी पूरा लाल हो गया हो।
मेरठ में इस वक़्त गुलमोहर के पुष्प अपनी उफान पर हैं और ये शहर के सौंदर्य को बढ़ा रहे हैं। गुलमोहर का फल 12-14 इंच लम्बा होता है तथा लगभग ढाई इंच चौड़ा होता है। यह शुरुआत में हरा होता है परन्तु समय के साथ साथ यह काला और कठोर हो जाता है। यह वृक्ष सौंदर्य के रूप में अत्यंत मशहूर है। अमलतास के साथ यह और भी सुंदर लगता है। यह वृक्ष सौंदर्य के अलावा अपने औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। यह रोग अवरोधी, डायरिया, डायबीटीज, आदि जैसी बिमारियों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। गुलमोहर के पेड़ का मेरठ में अत्यंत महत्व है। यहाँ पर बागपत मार्ग पर गुलमोहर पुष्प के नाम से एक उद्यान भी है जिसे गुलमोहर पार्क के नाम से जाना जाता है।
1. फ्लावरिंग ट्रीज़, एम.एस. रंधावा
2. http://www.phytojournal.com/archives/2016/vol5issue6/PartD/5-6-7-154.pdf
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