समयसीमा 245
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मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
भगवद गीता में कुल 18 अध्याय हैं जिनका अपना एक अलग महत्व है। सम्पूर्ण अध्यायों में विभिन्न योगों, संस्कारों, कर्तव्यों और दर्शन का महत्व बताया गया है। भगवद गीता वेदांत के सत्य का एक अद्भुत जोड़ है, यह आकार-निराकार, सत्य-असत्य, अच्छाई-बुराई, अंधकार-प्रकाश एवं अनंत के बारे में बताता है। यह वेदान्तिक शिक्षण ‘तत त्वम असी’ पर आधारित है । गीता के पहले 6 अध्याय 'त्वम' के विषय में है – ‘तुम ही छात्र हो जिसे ज्ञान ग्रहण करना है’ जहाँ अर्जुन एक छात्र का किरदार निभाते हैं। गीता के अगले 6 अध्याय 'तत' के विषय में है – ‘दिव्यता और सृजन की अनंत महिमा और पूर्णता’। गीता के आखिरी 6 अध्याय 'असी' के विषय में है अर्थात साधक के विषय में आखिरी 6 अध्याय बताते हैं कि साधक अपने आप में पूर्ण है और अर्जुन कृष्ण से कुछ भिन्न नहीं हैं। अर्जुन को इस बात का पता अंत में चलता है जबकि कृष्ण शुरुआत से इस सत्य से ज्ञात हैं। भगवद गीता के 18 अध्यायों से मिली सीख को हम निम्नलिखित रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं-
- क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।
- जो कुछ हुआ वह अच्छा हुआ, जो कुछ हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। जो कुछ होगा वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करते हुए कर्म करो। वर्तमान चल रहा है।
- तुम्हारा क्या गया जो रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए थे, जो कुछ लिया यहीं से लिया। जो कुछ दिया यहीं दिया। जो लिया इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
- खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाओगे। जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता दुखों का कारण है।
- परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण तुम निर्धन हो जाते हो। तेरा-मेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से हटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
- न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा। परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो?
- तुम अपने आप को भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिन्ता व शोक से सर्वदा मुक्त्त है।
- जो कुछ भी तुम करते हो, उसे भगवान को अर्पित करते चलो। इसी से तुम्हें सदा जीवन-मुक्त्त का आनन्द अनुभव होगा।
इस प्रकार से गीता के सम्पूर्ण 18 अध्यायों को प्रदर्शित किया गया है।
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