क्रिकेट की गेंद एक सख्त, ठोस गेंद होती है जिसका इस्तेमाल इस खेल में किया जाता है। क्रिकेट के खेल में बल्लेबाज़ी, फील्डिंग (Fielding) और गेंदबाज़ी अहम् भूमिकाएं होती हैं। गेंदबाज़ी करने और बल्लेबाज को आउट करने में गेंद की विभिन्न विशेषताएँ काम आती है, यह बहुत से कारकों पर निर्भिर करती है जैसे - हवा और ज़मीन पर गेंद का घुमाव, गेंद की स्थिति और गेंदबाज़ की कोशिश, इसके अलावा फील्डिंग करने वाले दल की भी अहम भूमिका होती है। बल्लेबाज रन बनाने के लिए गेंद को ऐसी जगह मारता है जहाँ रन लेना सुरक्षित हो, या फ़िर गेंद को सीमा के पार पहुंचा देता है।
क्रिकेट गेंद के ख़तरे -
काफ़ी सख्त और ठोस होने के कारण इस गेंद के काफ़ी ख़तरे हैं। अगर गलती से गेंद शरीर के अहम हिस्सों पर लग जाए तो व्यक्ति गंभीर रूप से घायल या उसकी मौत भी हो सकती है। बांग्लादेश में एक क्लब मैच के दौरान फील्डिंग करने वक़्त रमण लाम्बा के सिर पर गेंद लग गयी और उस वजह से उनकी मौत हो गई, ऐसी घटनाएं ज़्यादा न बढ़ें इसीलिए बल्लेबाज हेलमेट और पैड का इस्तेमाल करते हैं। क्रिकेट का खेल तब ही रोमांचक होता है जब गेंद की गुणवत्ता अच्छी हो। देश-विदेश की बहुत सी कंपनियाँ क्रिकेट खेलने की सामग्री बनाती हैं, उन कंपनियों में आपस में अच्छी गेंद बनाने के लिए जंग सी लगी रहती है। ऑस्ट्रेलिया की कंपनी ‘कूकाबुर्रा बॉल’ गेंद का उत्पाद करती है और इसी के टक्कर की दो अन्य कंपनियाँ हैं – इंग्लैंड की ‘ड्यूक बॉल’ और मेरठ की ‘एस.जी. बॉल’। आइए इनमे अंतर देखें -
* ड्यूक और एस.जी. की गेंद हाथ से बनायी जाती है जबकि कूकाबुर्रा की गेंद मशीन से बनती है।
* चमड़े की सतहों उपचार और सीम की ऊंचाई भी हर कंपनी में अलग रहती है जिससे गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है।
* कूकाबुर्रा की गेंद अक्सर लाल रंग की होती है, यह घूमती जयादा है और इससे पहले के 30 ओवर खेलना बल्लेबाजों के लिए मुश्किल होता है।
* ड्यूक काफ़ी लाल होती है, यह शुरुआत में नहीं घूमती है मगर ज़मीन से रगड़ खाकर घूमना शुरू कर देती है।
* ड्यूक की गेंद ज़्यादा कठोर सतहों के लिए नहीं बनी है, और यह कठोर सतहों पर ज़्यादा देर तक नहीं टिकती।
* एस. जी. गेंद देखने में बिलकुल ड्यूक गेंद की तरह होती है, मगर यह गेंद बहुत कम घूमती है।
* कूकाबुर्रा गेंद की चमक काफ़ी समय तक बरक़रार रहती है, मगर 35 से 40 ओवरों के बाद इसकी चमक घटने लगती है। इसकी रिवर्स स्विंग (Reverse Swing) ड्यूक गेंद से कम होती है।
* ड्यूक गेंद अंग्रेजी स्थितियों के लिए उत्कृष्ट है।
* एस. जी. गेंद की सीम लम्बे समय तक बनी रहती है पर गेंद कुछ समय में थोड़ी फैली हुई प्रतीत होती है जिससे स्पिनर (स्पिनर) को अपनी ग्रिप (Grip) बनाने में आसानी होती है और इसीलिए भारत जैसे देश में जहाँ के मैदानों का हाल काफी जल्दी बदलता है, इस गेंद को इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है।
एस. जी. की गेंद का प्रयोग बड़े पैमाने पर अनार्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय खेलों में किया जाता है। जैसा कि एस. जी. अपने बल्लों के लिये जाने जाते हैं परन्तु इनके गेंद का भी प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है।
1. https://www.quora.com/Cricket-sport-What-is-the-difference-between-a-kookaburra-a-duke-and-an-S-G-ball
2. http://news.bbc.co.uk/2/hi/sport/cricket/324356.stm
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Cricket_ball
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