समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 943
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
भगवान को प्रसन्न करने के लिए हम भगवान् की पूजा करते हैं। पूजा का एक निश्चित विधि और क्रम रहता है, पूजा और चढ़ावे भी विविध प्रकार के होते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार पूजा विधी और चढ़ावों के कई प्रकार होते हैं जैसे पंचोपचार (5 प्रकार), दशोपचार (10 प्रकार), षोडशोपचार(16 प्रकार), द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार), चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार) और एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार)। इन सभी के पीछे एक विशिष्ट तत्वज्ञान है, एक शास्त्र है।
मनुष्य अपनी पंचेंद्रियों का इस्तेमाल करके अपने आस-पास की सृष्टि का अवलोकन करता है तथा अनुभव लेता है। यही इन्द्रियाँ उसकी उन्नति तथा उसके विनाश का कारण बन सकती हैं, क्यूंकि जब मनुष्य को इन पर काबू नहीं रहता तो वह पशु जैसे बर्ताव करता है। सनातन धर्म में इस पर काबू पाने के कई तरीके दिए हैं क्यूंकि एक बार आप इन पर काबू पा लें तो आपका जीवन शांत और खुशहाल होता है तथा आप अपने आप को ईश्वर के नजदीक पाते हैं। इश्वर की साधना, तपस्या, पूजा-पाठ दान-धर्म आदि इन कई तरीकों में से कुछ हैं जो इंसान अपने अपेक्षित लक्ष्य के हिसाब से अपनाता है जैसे साधु संत कठोर तपस्या करते हैं तो गृहस्ति जीवन वाले दान-धर्म तथा पूजा पाठ।
हमारी पांच इन्द्रियाँ हमें पंच अनुभव देते हैं तथा हमें अच्छे अनुभव एवं खुशी प्रदान करती हैं:
1. आंखें: देखना
2. कान: सुनना
3. नाक: सूंघना
4. जीभ: स्वाद लेना
5. त्वचा: स्पर्श का एहसास
इन खुशियों को भगवान के चरणों में अर्पित करना तथा इन पर काबू पाकर भक्ति में लीन हो जाना इसे पंचोपचार कहते हैं जिसमें हम भगवान को इन पंचेंद्रियों के प्रतिनिधिक चीज़ें अर्पित करते हैं। धूप, फूल, चंदन जो सुवास प्रदान करते हैं; नैवेद्य जो स्वाद का द्योतक है; दीप, फूल जो आँखों को शांति और आनंद प्रदान करते हैं; घंटानाद, शंखनाद, आरती जो कानों का द्योतक है; और फूल-पानी अर्पित करना तथा गंध लगाना स्पर्श का। इस पूजा को पंचोपचार कहते हैं। जब हम यह इन्द्रियाँ और उनकी उत्तेजनाओं को परमात्मा को अर्पण करते हैं तब हमें उनका दुरूपयोग करने की इच्छा नहीं होगी।
हाल ही में मेरठ की एक धार्मिक संस्था ने एक 9 दिन का यग्य आयोजित किया था जिसमे उन्होंने 500 क्विंटल आम की लकड़ी को जलाया ताकि प्रदूषण कम हो।
इन सभी के अलावा मनुष्य अपने इस्तेमाल के लिए कुछ चीज़े बनाता है जैसे घर, कपड़े आदि, इन्हें भगवान को चढ़ाने के बाद ही इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे हम घर लेते हैं तब गृहपूजा, गणेश-पूजन करवाते हैं अथवा नयी गाड़ी लेते हैं तब उसकी पूजा करते हैं। यह चढ़ावे षोडशोपचार मतलब सोला तरीके के चढ़ावों में से हैं। इसी तरीके से बाकी उपचार भी होते हैं, जैसे चतुषष्टि प्रकार जिसमें हम कला से जुड़ी चीज़ें जो हमे आनंद प्रदान करती हैं जैसे नृत्य-गायन आदि द्वारा अर्पण करते हैं। वैसे तो शास्त्र के हिसाब से प्रमुख 16 कलाएँ है, मान्यता है कि भगवान शिव 64 कलाओं में माहिर थे।
इन सभी उपचारों की तरफ अगर हम ध्यान दें तो एक बात उभरकर सामने आती है कि उनका आधारभूत सिद्धांत मनुष्य को इन्द्रियों की संतुष्टि, जो कभी कभी उसपर बहुत हावी हो जाती है, पर संयम बनाए रखना सिखाना है। जब मनुष्य इन सभी पर संयम रखना सीख लेता है तभी वो खुशहाल और संतुष्ट जीवन जी सकता है और भगवन तथा सृष्टि के नजदीक जा सकता है।
1. आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोम ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी
2. https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/hindu-body-to-burn-500-quintals-of-mango-wood-for-nine-days-to-reduce-pollution/articleshow/63275405.cms
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.