मानव शरीर एक मंदिर के सामान है तथा इसमें कई प्रणालियाँ पायी जाती हैं जो कि शरीर को चलने और कार्य करने में सहायक होती हैं| प्राचीन भारतीय ग्रन्थ आयुर्वेद मानव के शरीर की संरचना और उनके विकारों की एक व्यवस्थित जानकारी देता है| आयुर्वेद में जीवन की कल्पना शरीर, आत्मा, होश और दिमाग के मिलन से होती है| एक जीवित व्यक्ति तीन शारीरिक द्रवों के मिलन से बनता है और वे हैं :-
* वात (Vata)
* पित्त (Pitta)
* कफ (Kapha)
मानव शरीर में कुल सात बुनियादी ऊतक होते हैं और वे हैं :-
* रस (Rasa)
* रक्त (Rakta)
* मांस (Mansa)
* मेदा (Meda)
* अस्थि (Asthi)
* मज्जा (Majja)
* शुक्र (Shukra)
और मानव शरीर का कचरा (Waste Product) मल, मूत्र और स्वेद होते हैं| और इसी तरह पूरा मानव शरीर शारीरिक द्रव, ऊतक और शरीर के कचरे से बनता है| इस शारीरिक मैट्रिक्स के बढ़ने या सड़ने से जो घटक बचते हैं वे इन द्रव और ऊतकों द्वारा संसाधित कर लिए जाते हैं| खाने में अंतर्ग्रहण (Ingestion), पाचन (Digestion), चयापचय (Metabolism), अवशोषण (Absorption) और परिपाक (Assimilation) का एक अपना ही अनोखा महत्त्व है , और यह शारीरिक तंत्रों के चलने में मदद करते हैं|
पंचमहाभूत-
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्माण्ड की हर वस्तु पांच बुनियादी तत्वों से बनी है और उन्हें पंचमहाभूत कहते हैं| इनमें धरती, जल, अग्नि, वायु और शून्यक हैं| शरीर के हर हिस्से को अच्छे ढंग से चलने के लिए इन पांच तत्वों का संतुलित रूप में होना आवश्यक है| शरीर की बनावट और विकास पोषण पर निर्भित है| भोजन में यह पाँचों तत्व मौजूद हैं जो अग्नि की प्रक्रिया के बाद शारीर का पोषण करते हैं और शरीर को स्वस्थ रूप से चलने में मदद मिलती है| शरीर के सभी ऊतक और द्रव पंचमहाभूतों के मिलन से बनते है|
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