मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
-जिसके मूल में ब्रह्म है, मध्य में विष्णु और ऊपरी हिस्से में शिव बसे हैं ऐसे अश्वत्थ को मेरा नमन (स्कन्दपुराण)
अश्वत्थ- जिसे हिन्दू पीपल के नाम से भी जानते हैं और बौध धर्मीय बोधी वृक्ष के नाम से। इस वृक्ष का इन धर्मों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। बुद्ध को इसी पेड़ के नीचे सर्वज्ञान प्राप्त हुआ था। सनातन, वैदिक धर्म के अनुसार इस वृक्ष में ब्रह्मा-विष्णु-महेश मतलब त्रिमूर्ति का वास होता है तथा इसे देववृक्ष कहा जाता है।
इस पेड़ का शास्त्रीय नाम फ़ायकस रेलिजिओसा (Ficus Religiosa) है तथा यह भारत और भारतीय उपमहाद्वीप का मूल-स्वदेशी वृक्ष है। यह पर्णपातीअर्ध-सदाबहार प्रकार का वृक्ष है अर्थात इसे किसी भी प्रकार की जमीन पर उगाया जा सकता है, बस इसे थोड़ा पानी और सूरज की रौशनी मिल जाए। इसका इस्तेमाल दमा, मधुमेह, दस्त, मिर्गी आदि बिमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।
जब आप हवा को आस-पास मेहसूस नहीं कर सकते उस समय भी इस वृक्ष के पत्ते हिलते दिखाई देते हैं (इस पेड़ की सरंचना ऐसी है) जिस वजह से लोग मानते हैं कि इनमे देवों का वास होता है, कुछ लोग यह भी कहते हैं कि यह कोई भूत प्रेत का साया है।
भारत में इस पेड़ के चारों ओर चबूतरे बांधे जाते हैं, जो देवी-देवताओं की मूर्ति को स्थापित करने के लिए (जैसे छोटे-खुले मंदिर), यात्रियों को आराम करने के लिए अथवा गाँव के लोगों को इकठ्ठा हो वार्तालाप करने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। सोमवती अमावस्या के दिन तथा सुबह-सुबह सूरज उगने से पहले लड़कियां एवं विवाहित स्त्रियाँ समृद्धि और सुख-शांति के लिए इसकी पूजा करती हैं।
गौतम बुद्ध को बोधगया में इसी वृक्ष के नीचे बैठ आत्मज्ञान हुआ था, इस पेड़ को बहुत बार नष्ट किया गया लेकिन इसकी एक डाली बच गयी थी जिसे फिर श्रीलंका के अनुराधापुर में सन 288 ईसा पूर्व के आस-पास लगाया गया। आज यह पेड़ दुनिया का सबसे पुराना आवृतबीजी वृक्ष है और इसे महाबोधी वृक्ष कहते हैं।
हिन्दू धर्म में इस पेड़ को वृक्ष राजा भी कहा जाता है क्यूंकि यह मान्यता है कि इसमें त्रिमूर्ति का वास है तथा कहा जाता है कि श्री कृष्ण इस पेड़ के नीचे ध्यान लगाये बैठते थे। भगवत गीता में उन्होंने कहा है कि-
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः। गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।
-सम्पूर्ण वृक्षों में पीपल, देवर्षियों में नारद, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ।
इन सभी कारणों की वजह से इसे कृष्ण का रूप भी माना जाता है और ऋषि मुनी और भिक्षु इस पेड़ के नीचे ध्यान लगाते हैं।
1.आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोम ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी
2.https://hi.wikipedia.org/wiki/पीपल
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Ficus_religiosa
4.https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/srimad?htrskd=1&httyn=1&htshg=1&scsh=1&choose=1&&language=dv&field_chapter_value=10&field_nsutra_value=26
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