मेरठ के संत जॉन चर्च की कब्र में एक ऐसा ऐतिहासिक पुरुष दफ़न है जो भारतीय उपनिवेशिक राजनीति का एक अहम् हिस्सा है। यह व्यक्ति है डेविड ओक्टरलोनी जिसने मेरठ और दिल्ली में कई कार्य किये हैं। डेविड ओक्टरलोनी वास्तिवकता में एक दिलचस्प व्यक्ति था जिसने भारत और ब्रिटिश इतिहास में रंग भरने का कार्य किया था। यह व्यक्ति अभी भी जिज्ञासा और सैनिकों, प्रशासकों और दूसरों के हित को आकर्षित करता है। आश्चर्य की बात नहीं है कि उन पर जे.एस.एस. गिल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल अकादमी, गुरुग्राम के निदेशक ने शोध किया। सी.आर.पी.ऍफ़. अकादमी नीमच, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्वीकृत 50,000 रुपये की लागत से 1822 में ओक्टरलोनी द्वारा बनवाया गया था। दिल्ली लौटने से पहले तीन साल तक ओक्टेरलोनी वहाँ रहता था। यह इस व्यक्ति की सैन्य प्रतिभा थी जिसने अंग्रेजों के लिए नेपाल युद्ध जीता था। इससे पहले उन्होंने जसवंत राव होलकर की ताकतों के खिलाफ दिल्ली की रक्षा की थी और शहर की दीवारों पर खड़े होकर लंबी घेराबंदी के दौरान सेना का संचालन किया था। बाद में दिल्ली में पहले ब्रिटिश निवासी ओक्टेरलोनी, अपने भारतीय व्यवहार और दर्जनों बीवियों के लिए जाने जाते थे। ओक्टरलोनी की मृत्यु शालीमार बाग में अपने ग्रीष्मकालीन घर में ठंड और बुखार के कारण हुई थी।
ओक्टरलोनी के वंशज मारिअस द्वारा प्रस्तुत एक पत्र के अनुसार आश्चर्यचकित करने वाला खुलासा सामने आया है और वह है कि पोलिश, अमरीकी और अंग्रेजी रक्त के अलावा उनके वंशजों की रगों में कुछ भारतीय खून भी है, हालांकि वह जनरल की 13 पत्नियों में से कौन से हैं अभी तक नहीं समझा जा सका है। ओक्टरलोनी, आकस्मिक रूप से बोस्टन, मैसाचुसेट्स में पैदा हुआ था, हालांकि वह स्कॉटिश वंश का था और 1778 में एक कैडेट के रूप में भारत आया था। उनकी पत्नियों में सबसे प्रमुख बीबी मुबारक-उल-निसा, पुणे की ब्राह्मण नृत्यांगना लड़की थी, जो कि इस्लाम धर्म कबूल कर इस्लाम में परिवर्तित हो गई थी। उनसे उन्हें दो बेटियां पैदा हुयी। जनरल की पसंदीदा पत्नी को जनराली बेगम के नाम से जाना जाता था। उनके पोते, सर चार्ल्स मेटकाफ ओक्टरलोनी की मृत्यु 1891 में हुई थी। ओक्टरलोनी ने लहारू के नवाब के परिवार से एक लड़की को भी गोद लिया था, जिसने आगे चलकर गालिब के चचेरे भाई से शादी की थी। 19वीं शताब्दी का सबसे रंगीन जनरल, जो संत जॉन चर्च मेरठ में दफनाया गया है, उसको मुबारक बाग दिल्ली में एक मकबरा दिया गया था जो मुगल सम्राट शाह आलम ने उन्हें उपहार में दिया था। उनका खाली मकबरा शायद अभी भी वहीँ मौजूद है।
इम्पीरियल डेल्ही नामक पुस्तक में ओक्टरलोनी से व उस समय काल से सम्बंधित कई दस्तावेज व चित्र प्रस्तुत किये गए हैं। प्रस्तुत चित्र भी इसी पुस्तक से लिया गया है। विलियम डालरिम्पल ने अपनी पुस्तक में ओक्टरलोनी का विषद उदाहरण प्रस्तुत किया है।
1.http://www.thehindu.com/features/metroplus/ochterlony-and-his-bibis/article2001540.ece
2.http://www.bl.uk/onlinegallery/onlineex/apac/addorimss/t/019addor0005475u00067vrb.html
3.https://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/asia/india/9715921/Before-British-India-there-were-Indian-Britons.html
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