विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम।
अमित्रादपि सद्व्रुत्तम अमेध्यादपी कांचनम।।
विष में यदि अमृत मिले तो वो पी लेना चाहिए, अच्छी बातें बच्चों से भी सिख लेनी चाहिए।
दुश्मन की भी अच्छी आदतें अनुकरणीय होती हैं और सोना यदि गन्दी जगह पर ही क्यूँ ना मिले, ले लेना चाहिए।
ये तो आप जानते ही होंगे कि अक्षय तृतीय कल ही निकली है, तो मेरठ शहर के सर्राफा बाज़ार के सभी दुकानदारों ने अपनी सुवर्ण दुकानें सभी नागरिकों के लिए सुसज्ज कर रखी थीं क्यूंकि इस दिन सोना खरीदना बड़ा शुभ माना जाता है। इस अवसर पर आईये हम सोने के इतिहास और उसे दिए गए इस अनन्य साधारण दर्जे के बारे में बात करें।
सिक्के और कागज़ी पैसे को हमेशा चाँदी के समान-सतह पर अधोरेखित किया गया है। ‘रुपी’ शब्द भारतीय रूपया शब्द की नकल है जो चाँदी के संस्कृत शब्द रौप्य से उत्पन्न हुआ है। पुरातन भारत में सोने के सिक्कों को दीनार कहा जाता था तथा सोने का पहला दीनार भारत में कुषाण राजाओं ने प्रस्तुत किया। प्रस्तुत चित्र कुषाण शासक हुविष्क के अर्दोक्शो के चित्रण वाला सिक्का है। हुविष्क का साम्राज्य कुषाण राज में सबसे संपन्न काल में से एक माना जाता है, इस सिक्के के पिछले भाग पर बनी अर्दोक्शो समृद्धि की देवी है जैसे भारत की देवी लक्ष्मी।
आवर्त सारणी में तक़रीबन 118 रासायनिक तत्त्व हैं जिसमें से सोना एक है। इन 118 तत्वों में से फिर सोना ही इतना महत्वपूर्ण, जनसामान्यों में प्रिय तथा ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला क्यों है? आवर्त सारणी में 118 में से 7 निष्क्रिय गैस हैं जिसका आप किसी भी तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्यूंकि उन्हें दिए गए नाम की तरह ही वे निष्क्रिय हैं और किसी भी दूसरे तत्व के साथ वे मिश्रित नहीं होती, वे हमेशा स्थिर रासायनिक स्थिति में रहती हैं। फिर हैं हैलोजन समूह जैसे अधातु जो इंसान सिक्के आदि बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता और ना ही तो संपत्ति के तौर पर अपने पास रख सकता। बाकी बचे तत्वों में से एक उपधातु समूह, संक्रमण धातु समूह, क्षारीय धातु, क्षारीय पार्थिव धातु समूह और आंतरिक संक्रमण तत्व समूह हैं जिसमें से तक़रीबन सभी जलवायु से अथवा एक दूसरे से प्रतिक्रियित होते हैं या उनका जल्दी क्षय हो जाता है अथवा वे हमारे लिए जानलेवा हैं। इस वजह से हम उन्हें अपने रोज़मर्रा के काम में इस्तेमाल नहीं कर सकते। धातु समूह के बाकि तत्त्व सृष्टि में बहुतायता में उपलब्ध हो सकते हैं और उनमें से बहुत से तत्व इस्तेमाल करने के लिए उनपर बहुत सी कठिन प्रक्रिया करनी पड़ती हैं। अब बचे हुए धातु समूह के बहुमूल्य धातु समूह में से एक सोना है। इनमें सिर्फ पांच तत्त्व हैं रोडियम (Rhodium), पैलेडियम (Palladium), चाँदी (Silver), प्लैटिनम (Platinum) और सोना (Gold)। इनमें से रोडियम, पैलेडियम 18वीं शती के बाद खोजे गए थे जिस वजह से पुरानी संस्कृतियाँ इनका इस्तेमाल नहीं कर सकती थीं। चाँदी का इस्तेमाल बहुत हुआ है लेकिन चाँदी का धातु वक़्त के साथ वातावरण के संसर्ग से काला पड़ने लगता है। प्लैटिनम (Platinum) सोने की तरह ही बहुल मात्र में उपलब्ध है मगर उसे किसी चीज़ अथवा आकार में ढालना, खास कर पुराने समय में बहुत ही कठिन था, उसकी द्रवण-विंदु 3000 डिग्री फारेनहाइट (Degrees Fahrenheit) है।
फिर बचा सिर्फ सोना, जो सृष्टि में सही मात्रा में, पानी और जमीन दोनों ही जगह उपलब्ध है। सोना किसी भी तत्त्व से प्रतिक्रिया नहीं करता अथवा वातावरण के संसर्ग का उस पर कोई प्रभव नहीं पड़ता जिस वजह से ये सालों साल तक जैसे के तैसा रहता है। उसका द्रवण-विंदु काफी नीचे है जिस वजह से उस पर काम करने के लिए किसी कारखाने या यंत्र समुह की जरुरत नहीं होती। धातु समूह में से ये सबसे लचीला होता है जिसमें एक ग्राम सोने को आप एक स्क्वायर मीटर (square meter) पत्र में ढाल सकते हो। आप सोने को अर्द्धपारदर्शक होने तक ठोक के ढाल सकते हैं तथा उष्णता और बिजली का यह अच्छा वाहक है। सोने का इस्तेमाल औषधी तत्त्व पर भी होता है, आयुर्वेद में इसके कई उपयोग बताये गए हैं।
सोना ऐतिहासिक, शास्त्रीय, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से पुरे विश्व में महत्वपूर्ण है। अगर हम समय का कांटा घुमाकर वापस यह सफ़र तय करें तो यह तय है कि धातुओं में एक बार फिर सोना ही विजयी हो निकलेगा।
1. https://www.npr.org/sections/money/2011/02/15/131430755/a-chemist-explains-why-gold-beat-out-lithium-osmium-einsteinium
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Gold
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