सुबह-सुबह उठते ही या फिर दिन भर की थकावट दूर करने के लिए सभी चाय पीते हैं, फिर वो कोई कामगार हो या कोई साहिब। दिन में कभी भी चाय पीने के लिए हर कोई तैयार होता है, चाय को कभी कोई ना नहीं करता। भारतीय लोगों के लिए चाय ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। देश के बाहर से आयी चाय आज भारतीय तहज़ीब और संस्कृति का इतना अहम हिस्सा बन चुकी है कि बाहरी देशों में भारतीय चाय को एक विशिष्ट दर्जा प्राप्त हुआ है। भारत की संस्कृति का ये हिस्सा- चाय, का आखिर क्या इतिहास है और यह भारत में पहली बार कहाँ से आई?
यह तो सभी को ज्ञात है कि चाय की खेती तथा उसे पीने की शुरुवात चीन की भूमि से हुई जो फिर व्यापर के रास्तों से गुजरते हुए यूरोप पहुंची। बहुत से देशों में चाय पीना और पिलाना प्रतिष्ठा का लक्षण है तथा सामाजिक संकेत भी। जापान में चाय पीने की पद्धति कला बन चुकी है। सान रिक्यु नाम के जापानी चाय विशेषज्ञ ने जापानी चाय बनाने और परोसने के तरीके को इस कलात्मक ऊंचाई पर पहुँचाया। ब्रितानी लोगों में भी चाय पीने और पिलाने के तथा उसे तैयार करने के प्रमाणित तरीके हैं। भारत में भी चाय पीने की परंपरा इस तरह जड़ ले चुकी है कि किसी भी समय, किसी भी जगह पर भारतीय इंसान चाय पी सकता है। जगह-जगह गली-नुक्कड़ पर उपलब्ध चाय के ठेले एवं दुकानें इसका प्रमाण हैं। भारत में उगनेवाली चाय का 70% भारत में ही उपभुक्त होता है। घर पर चाय पीना अनिवार्य रीत बन चुकी है तथा घर आये मेहमानों को चाय पिलाना भारतीय शिष्टाचार का एक अहम हिस्सा।
यूरोप में ख़ास कर इंग्लैंड में चाय काफी प्रसिद्ध हुई जहाँ पर वो ब्रिटिश लोगों की ज़िंदगी में संस्थापित हो गयी। मान्यता है कि यहाँ पर चाय की मांग इस हद तक बढ़ गयी कि खरीदने के लिए चाँदी भी कम पड़ने लगी और चाय को आयात करने के लिए ब्रितानी लोगों ने अफीम निर्यात करने का फैसला किया। कहते हैं कि 19वीं शती के मध्य में इंग्लैंड और चीन के बीच हुए अफ़ीम युद्ध का महत्वपूर्ण कारण चाय के प्रति ब्रितानी लोगों का जुनून भी था। चाय की बढती मांग को पूरा करने के लिए ब्रितानी शासन उचित जगहों की तलाश में जुट गया और अपनी अख्तियारी में रखी ‘कॉलोनी’ (Colony) में इस हेतु प्रयोग करने लगा।
चाय (कैमेल्लिया सिनेंसिस – Camellia Sinensis) एक सदाबहार झाड़ी है जिसे अगर बढ़ने दिया तो पेड़ बन जाता है। ग्रीन टी और सादी काली चाय ये एक ही पौधे से मिलते हैं सिर्फ उनकी चुनाई और प्रसंस्करण के तरीके विभिन्न होते हैं, चीन में ज्यादातर ग्रीन टी पी जाती थी। चाय खेती के लिए उन्नत जमीन की जरुरत होती है साथ ही उष्ण वातावरण, अच्छी बारिश और अम्लयुक्त मिट्टी की जरुरत होती है। आसाम में यह सब उत्तम मात्रा में उपलब्ध है जिस वजह से बहुत सी जगहों पर प्रयोग करने के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहाँ पर अपने चाय के बागान शुरू किये।
भारत में, इस तरह, चीनी किस्मों की चाय को ब्रिटिश लोग लाये। ब्रितानी शासकों ने भारत में चाय की लगावत करने के लिए यूरोपीय लोगों को आसाम में जगह देने का प्रलोभन देते हुए चाय व्यवसाय की शुरुवात की। मनीराम दिवान(1806-1858) पहले भारतीय चाय व्यवसायी थे तथा आसामी चाय का प्रथम व्यापारिक बाग़ान शुरू करने का श्रेय उन्हें जाता है।
सन 1820 के शुरुवाती दौर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के आसाम राज्य में चाय बागानों के जरिये बड़े पैमाने पर चाय का उत्पादन शुरू किया। सन 1826 में यंदबू संधि के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अहोम राजाओं से यह जमीन हड़प ली। सन 1837 में अंग्रेजी चाय का बागान आसाम के चबुआ में शुरू किया गया और सन 1840 के आते आते आसाम टी कंपनी (Assam Tea Company) ने व्यवसायिक तौर पर चाय-खेती की शुरुवात की और सन 1850 में आसाम की बहुत सी जमीन चाय-खेती के अंतर्गत आ गयी तथा 19 वीं शताब्दी में आसाम दुनिया में चाय-उत्पादन में प्रथम स्थान पर आ गया। आज भी भारत, चाय के प्रमुख उत्पादकों में से एक है जिसका प्रथम स्थान बस कुछ समय पहले ही, ज्यादा जमीन की उपलब्धता की वजह से चीन ने ले लिया है। आसाम के साथ दार्जीलिंग में भी ब्रितानी शासकों ने चाय की खेती शुरू की। आज दुनिया में आसाम और दार्जीलिंग की चाय प्रतिष्ठित ब्रांड बन चुकी है।
शुरुवाती दौर में भारत में चाय अंग्रेजी लोगों के साथ सिर्फ अंग्रेजी तौर तरीके अपनाने वाले भारतीय ही पीते थे लेकिन सन 1950 के आस पास टी बोर्ड भारत के सफल विज्ञापन अभियान की वजह से चाय पीना लोकप्रिय हुआ।
भारत में चाय के इस इतिहास को देखें तो हमें यह पता चलता है कि भारत चाय का प्रमुख उत्पादक होने के बावजूद भी यहाँ पर कुछ लोगों को छोड़कर कोई चाय नहीं पीता था, यह अंग्रेजों की उपनिवेशी विरासत है जो सन 1950 के बाद ही इतनी लोकप्रिय हुई।
1. रिमार्केबल प्लांट्स दाट शेप आवर वर्ल्ड- हेलेन एंड विलियम बायनम, 134-136.
2. https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_tea_in_India
3. http://japanese-tea-ceremony.net/
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