कागज के आविष्कार के पहले भी लिखने का कार्य बड़े स्तर पर होता था परन्तु प्रश्न यह है कि लेखन का कार्य कागज पर नहीं तो किस पर होता था? प्राचीन विश्व में मिट्टी के पट्टों पर, पत्थर पर, पत्तों आदि पर लेखन का कार्य होता था। मिटटी के पट्टों पर लिखने की परंपरा मेसोपोटामिया, इजिप्ट आदि स्थानों से बड़ी मात्रा में प्राप्त होती है। भारत में अशोक द्वारा लगावाये गए शिला लेखों की बड़ी संख्या प्राप्त हुयी है। ताम्बे पर लिखे ताम्र पात्र भी बड़े पैमाने पर प्राप्त होते हैं। पत्तों में पेपिरस और ताड़ के पत्तों पर लेखन का कार्य किया जाता था। भारत में बड़े पैमाने पर ताड़ के पत्तों का प्रयोग लिखने के लिए किया जाता था। इन पत्तों पर विभिन्न ग्रंथों को लिखा जाता था। ताड़ के पत्तों पर लिखने की प्रक्रिया निम्नलिखित होती थी-
पहले ताड़ के पत्ते हो लिया जाता था तथा उसको काट लिया जाता था। काटने के उपरांत उस पर खुरचनी से लेखन का कार्य किया जाता था। खुरचनी से पत्ते पर कुरेद कर लिखा जाता था तथा बाद में उसपर स्याही लगायी जाती थी जिससे लेखन सही तरीके से दिखाई देता था। भारत के विभिन्न संग्रहालयों में ताड़ पत्रों को संरक्षित करके रखा गया है। दिल्ली के राष्ट्रीय अभिलेखागार में हजारों की संख्या में ताड़ पत्रों को रखा गया है।
रामपुर का रज़ा पुस्तकालय भारत के प्रमुख पुस्तकालयों में आता है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के ग्रंथों को संरक्षित कर के रखा गया है। इन ग्रंथों में ताम्र पत्र और ताड़ पत्र भी शामिल हैं। रामपुर रज़ा पुस्तकालय में कई विशिष्ट ताड़ पत्रों को संरक्षित कर के रखा गया है। ये ताड़ पत्र भारत के अतीत की बहुमूल्य जानकारियों को समेटे हुए हैं।
1. राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली
2. रामपुर रज़ा पुस्तकालय
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