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जब भी भजन या पूजा का समापन होता है तब हम आरती किया करते हैं। आरती उस पवित्र आत्मा को दर्शाती है जो घर में पूजा के दौरान प्रस्थान करती है। घंटी बजाकर या भजन-कीर्तन कर आरती की जाती है।आरती पूजा का 16वां पड़ाव है जिसे शोदशा उपचार कहते हैं। आरती को दायें हाथ में रख कर दक्षिणावर्त दिशा में देवता के सामने घुमाते हैं, यह देवता के एक अंश या पूरे अंश को दर्शाता है। जब आरती की जा रही होती है तब हम मन में मंत्र पढ़ते हैं या जोर से उसका उच्चारण करते हैं; माना जाता है कि मंत्र के उच्चारण से बुरी शक्तियाँ दूर रहती है। अंत में हम अपने हाथों से आरती की अग्नि को छूकर अपने सिर और आखों को छूते हैं, यह प्रक्रिया बुद्धि को धारण करने को दर्शाती है। जब हम अभिषेक करते हैं तब देवता की तस्वीर या मूर्ती को सजाते हैं और बस उस देवता के ऊपर अपना सारा ध्यान केन्द्रित कर देते हैं, इससे हमें देवता की ख़ूबसूरती और महिमा का अहसास होता है। अर्चना के दौरान मंत्र पढ़ने या कीर्तन करने से पवित्रता का भाव जागरूक होता है।
हमेशा आरती और कपूर को एक ही थाली में रखा जाता है और इस प्रक्रिया से आत्मा का महत्व समझ आता है। जैसे ही कपूर अग्नि के संपर्क में आता है वह तुरंत जल जाता है और पीछे कोई भी अवशेष नहीं छोड़ता और यह हमारे अन्दर की इच्छाओं को दर्शाता है। ज्ञान का प्रकाश हमारे अहंकार को जलाता है और देवता से हमें जोड़ता है। जब भी कपूर जलता है वह एक सुगंध का उत्सर्जन करता है , और यह हमारी आत्मा की प्रगति को दर्शाता है। आरती का दार्शनिक मान बहुत आगे तक का है, इसमें सूर्य, चाँद, तारे, बिजली और प्रकृति से मिलने वाले सूत्र भी शामिल हैं। देवता अन्तरिक्ष के इस अद्भुत सूत्र का केंद्र हैं और जब भी हम देवता को आरती की अग्नि देते हैं तब पूरे वातावरण में शान्ति की भावना उत्पन्न हो जाती है और यह ज्ञान एवं जीवन को दर्शाता है।
1. इन इंडियन कल्चर व्हाई डू वी... – स्वामिनी विमलानान्दा, राधिका कृष्णकुमार
2. हिन्दू राइट्स एंड रिचुअल्स, के. वी. सिंह