भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय जाता है, इसके मज़बूत डेयरी क्षेत्र को

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
13-01-2025 09:26 AM
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय जाता है, इसके मज़बूत डेयरी क्षेत्र को
डेयरी कृषि, मेरठ में कई लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां कई स्थानीय किसान, दूध और अन्य डेयरी उत्पाद बनाने के लिए गाय और भैंस पालते हैं। हमारा शहर अपने ताज़ा दूध के लिए जाना जाता है, जो स्थानीय बाज़ारों और आस-पास के इलाकों में बेचा जाता है। दूध, दही और घी जैसे डेयरी उत्पाद, न केवल रोज़मर्रा की आवश्यक वस्तुएं हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को समर्थन देने में भी मदद करते हैं। मेरठ में किसान, दूध उत्पादन में सुधार के लिए पारंपरिक तरीकों और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिससे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होती है। डेयरी कृषि, लगातार रोज़गार प्रदान कर रही है, और इस क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आज, हम गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण विकास में भारत के डेयरी क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा करेंगे। हम इस बात पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे कि, डेयरी कृषि, कैसे आय व रोज़गार प्रदान करती है और लाखों ग्रामीण परिवारों की आजीविका का समर्थन करती है। इसके बाद, हम डेयरी क्षेत्र में चुनौतियों और भविष्य की रणनीतियों का पता लगाएंगे। अंत में, हम भारत सरकार के कुछ विकास कार्यक्रमों की जांच करेंगे, जिनका उद्देश्य डेयरी उत्पादन, बुनियादी ढांचे और किसान कल्याण को बढ़ाना है।
दूध उत्पादन-
भारत, दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। पशुधन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए, सरकार द्वारा कई उपाय शुरू किए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप दूध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन प्रभाग Publications Division of the Ministry of Information and Broadcasting) द्वारा प्रकाशित भारत 2024: एक संदर्भ वार्षिक (India 2024: A Reference Annual) नमक एक पुस्तक के अनुसार, 2020-21 और 2021-22 के दौरान, दूध उत्पादन क्रमशः 209.96 मिलियन टन और 221.06 मिलियन टन था, जो 5.29% की वार्षिक वृद्धि दर्शाता है। 2021-22 में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता, लगभग 444 ग्राम प्रति दिन थी।
गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण विकास में भारत के डेयरी क्षेत्र की भूमिका-
भारत, अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय, अपने मज़बूत डेयरी क्षेत्र को देता है। 100 मिलियन से अधिक लोगों के लिए, डेयरी केवल एक कृषि गतिविधि न होकर, एक जीवन रेखा है। दूध की मांग बढ़ने के कारण, जो निकट भविष्य में दोगुनी से अधिक होने का अनुमान है, यह क्षेत्र सतत ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाते हुए, गरीबी और बेरोज़गारी को दूर करने का एक शक्तिशाली अवसर प्रस्तुत करता है।
डेयरी कृषि: गरीबी उन्मूलन का मार्ग-
डेयरी कृषि में, भारत के खासकर सूखाग्रस्त और वर्षा आधारित क्षेत्रों में ग्रामीण गरीबों के उत्थान की, अपार संभावनाएं हैं। भूमिहीन और सीमांत किसानों के लिए, पारिवारिक उपविभाजनों के कारण घटती भूमि जोत के बीच, पशुधन आय और स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।
इस क्षेत्र की गरीब-समर्थक प्रकृति का मतलब है कि, दूध उत्पादन में सुधार सीधे तौर पर लाखों छोटे पैमाने के पशुपालकों की आय में वृद्धि करता है। दूध उत्पादन न केवल घरेलू पोषण और खाद्य सुरक्षा का समर्थन करता है बल्कि, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य आवश्यकताओं में पुनर्निवेश के लिए अतिरिक्त आय भी उत्पन्न करता है।
इसके अलावा, डेयरी क्षेत्र, लगभग 27.6 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है, जिनमें से 65-70% छोटे, सीमांत या भूमिहीन किसान हैं। ग्रामीण रोज़गार में इसकी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा सकता है। जैसे-जैसे दूध की मांग बढ़ती है, उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि गरीबी उन्मूलन के लिए, उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती है।
भारत का डेयरी उद्योग, ग्रामीण कृषि प्रणाली से गहराई से जुड़ा हुआ है। फ़सल उपोत्पादों का उपयोग आमतौर पर चारे के रूप में किया जाता है, जबकि जानवरों का गोबर उर्वरक के रूप में कार्य करता है। यह एक स्थायी चक्र बनाता है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करता है।
इस क्षेत्र का योगदान बहुत बड़ा है। 2015-16 में, कुल कृषि उत्पादन में पशुधन की हिस्सेदारी 28.5% थी, जिसके मूल में डेयरी थी। 1951 और 2019 के बीच, भारत का दूध उत्पादन 17 मिलियन टन से बढ़कर 187.7 मिलियन टन हो गया, जो इसकी गतिशील वृद्धि और निरंतर विस्तार की क्षमता को दर्शाता है। यह निरंतर वृद्धि, न केवल एक कृषि गतिविधि के रूप में, बल्कि भारत के ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में डेयरी के महत्व को रेखांकित करती है।
चुनौतियां और भविष्य की रणनीतियां-
अपनी सफ़लता के बावजूद, भारत के डेयरी क्षेत्र को वैश्विक मानकों की तुलना में, प्रति पशु कम औसत दूध उपज जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन मुद्दों के समाधान के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
१.नस्ल और पोषण प्रबंधन: जीनोमिक चयन(Genomic selection) और बेहतर पोषण प्रथाओं जैसी उन्नत प्रजनन तकनीकें, दूध उत्पादकता को काफ़ी हद तक बढ़ा सकती हैं।
२.प्रौद्योगिकी को अपनाना: सार्वजनिक- निजी भागीदारी, डेयरी उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन में उन्नत प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
३.मूल्यवर्धित उत्पाद: ए2 दूध जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों में विशेषज्ञता, छोटे पैमाने के किसानों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंच बढ़ा सकती है।
४.लागत दक्षता: बेहतर पशु स्वास्थ्य देखभाल और प्रबंधन प्रथाओं से उत्पादन लागत कम हो सकती है, जिससे छोटे किसानों को लाभ होगा।
५.बुनियादी ढांचे का विकास: उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन और विपणन बुनियादी ढांचे में निवेश, भारतीय डेयरी उत्पादों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बना सकता है।
भारत सरकार द्वारा विकास कार्यक्रम –
१.राष्ट्रीय गोकुल मिशन

राष्ट्रीय गोकुल मिशन, विशेष रूप से वैज्ञानिक और समग्र तरीके से, स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए 2019 में शुरू किया गया था। यह योजना ग्रामीण गरीबों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि 80% से अधिक कम उत्पादक देशी जानवर, छोटे और सीमांत किसानों और भूमिहीन मज़दूरों के पास हैं। यह योजना दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने और देश के ग्रामीण किसानों के लिए, डेयरी को अधिक लाभकारी बनाने के लिए दूध उत्पादन और गोवंश की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस योजना से स्वदेशी नस्लों के विशिष्ट पशुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है, और स्वदेशी स्टॉक (Stock) की उपलब्धता बढ़ रही है।
योजना के कार्यान्वयन और सरकार द्वारा उठाए गए अन्य उपायों के कारण, 2014-15 से 2021-22 के दौरान, देश में दूध उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर 6.38% थी। 2014-15 और 2021-22 के बीच वर्णित तथा गैर-वर्णित मवेशी, भैंस और क्रॉसब्रेड मवेशियों सहित, सभी श्रेणी के जानवरों की उत्पादकता में 16.74% की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार भैंसों की उत्पादकता 2014-15 में 1792 किलोग्राम प्रति पशु प्रति वर्ष से बढ़कर, 2021-22 में 2022.1 किलोग्राम प्रति पशु प्रति वर्ष हो गई। स्वदेशी मवेशियों से दूध उत्पादन 2014-15 में 29.48 मिलियन टन से बढ़कर, 2020-2021 में 42.02 मिलियन टन हो गया।
२.गोपाल रत्न पुरस्कार-
गोपाल रत्न पुरस्कार, 2022 में विभाग द्वारा शुरू किया गया था | यह पशुधन और डेयरी क्षेत्र के सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कारों में से एक है। इस पुरस्कार का उद्देश्य, इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी व्यक्तिगत किसानों, कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियनों और डेयरी सहकारी समितियों को प्रोत्साहित करना है। यह पुरस्कार तीन श्रेणियों में प्रदान किए जाते हैं, अर्थात् (i) स्वदेशी मवेशी/भैंस नस्ल का पालन करने वाले सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान; (ii) सर्वोत्तम कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (ए आई टी) और (iii) सर्वोत्तम डेयरी सहकारी।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4rhzfcr2
India 2024: A Reference Annual

चित्र संदर्भ

1. गाय का दूध दुहती युवती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्रजातियों के अनुसार, 2017–18 के दौरान, दूध के अनुपात को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रेनीगुंटा जंक्शन पर ऑपरेशन फ़्लड लिखा दूध ले जा रही रेल गाड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. आनंद, गुजरात में अमूल के एक प्लांट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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