मेरठ शहर का इतिहास, सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध नज़र आता है। यह शहर, कई पारंपरिक कला रूपों का केंद्र रहा है। इनमें दीवार पेंटिंग और मांडना चित्रण (Mandana painting) जैसे कला के अनूठे रूप भी शामिल हैं। ये रूप, कला क्षेत्र की ग्रामीण और लोक परंपराओं से गहरी तरह से जुड़े हुए हैं। इन परंपराओं को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया गया है। कला के इन रूपों में आमतौर पर लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी, प्रकृति और उनकी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाया जाता है।
आज के इस लेख में सबसे पहले हम दीवार पेंटिंग के बारे में जानेंगे। हम इनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को समझेंगे। इसके बाद मांडना पेंटिंग पर चर्चा करेंगे। यह जटिल कला शैली पारंपरिक अनुष्ठानों और त्योहारों में दिखाई देती है। अंत में, हम भारत के प्रसिद्ध गुफ़ा चित्रों की बात करेंगे। इसके तहत हम उनकी प्राचीन उत्पत्ति और भारतीय कला के शुरुआती स्वरूप में उनकी भूमिका को समझने की कोशिश करेंगे।
आइए, सबसे पहले दीवार पेंटिंग के बारे में जानते हैं।
दीवार पेंटिंग को भित्ति चित्र भी कहा जाता है। इन्हें दीवार पर सीधा पेंट करके बनाया जाता है। भित्ति चित्रों की खास बात यह है कि वे इमारत के डिज़ाइन के साथ बहुत अच्छे से मेल खाते हैं। इन चित्रों को बनाने की शुरुआत ऊपरी पुरापाषाण युग से लेकर प्राचीन मिस्र तक के समय में हुई थी। 'भित्ति चित्र' शब्द मैक्सिकन मुरलीस्टा आर्ट मूवमेंट (Mexican Muralista Art Movement) के बाद ज़्यादा लोकप्रिय हुआ।
दीवार चित्रों की अलग-अलग शैलियों में, फ़्रेस्को तकनीक (fresco technique), सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस पद्धति में चूने के घोल और पानी में घुलने वाले प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में शुरुआती भित्ति चित्र अजंता और एलोरा की गुफ़ाओं , कैमूर रेंज, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और मध्य प्रदेश के भीमबेटका के शैलाश्रयों में देखे जा सकते हैं।
आज के समय में दीवार पेंटिंग, कई मायनों में अहम् हो गई है। इन्हें आप सार्वजनिक स्थानों देख सकते हैं। ये चित्र कलाकारों को पहचान दिलाने में मदद करते हैं। आज के समय में भित्ति चित्रों का उपयोग सामाजिक संदेश देने और राजनीतिक विचारों को व्यक्त करने के लिए भी किया जाता है।
पहले के समय में भित्तिचित्र कहीं भी बिना अनुमति के बनाए जा सकते थे। लेकिन अब इसकी अनूठी शैली और लोकप्रियता के कारण इन्हें बार, पब और रेस्तरां जैसी जगहों पर विशेष रूप से बनवाया जाता है। भारत में, पहले लोग अपने घरों के अंदर और बाहर दीवारों पर अपने जनजातीय और धार्मिक विश्वासों को दिखाने के लिए पेंटिंग करते थे।
आजकल लोग अपने घरों में अपनी पसंद और व्यक्तित्व को दिखाने वाले भित्ति चित्र बनवाने के लिए कलाकारों को बुलाते हैं। इस बढ़ते चलन से कलाकारों को बहुत काम मिलने लगा है। हाथ से बनाए गए भित्ति चित्र खास संदेश और विषय व्यक्त करते हैं। इसीलिए इन्हें अस्पतालों, कॉर्पोरेट कार्यालयों और स्कूलों में बहुत पसंद किया जाता है।
आइए, अब आपको मांडना पेंटिंग नामक एक अनोखी चित्रकला शैली से परिचित कराते हैं।
मांडना पेंटिंग एक पारंपरिक कला है, जिसकी शुरुआत राजस्थान में हुई थी। इस कला का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है। "मांडना" शब्द संस्कृत के "मांडा" से लिया गया है, जिसका मतलब 'शुभ' होता है। कला के इस रूप को लोग भाग्य और धन का प्रतीक मानते हैं।
कहा जाता है कि ग्रामीण राजस्थान की महिलाओं ने अपने घरों को सजाने और खास अवसरों का जश्न मनाने के लिए मांडना कला की शुरुआत की। इसकी शुरुआत प्राचीन भारतीय परंपराओं से हुई, जिसमें फ़र्श और दीवारों को सजाया जाता था। मांडना कला के शुरुआती नमूने शेखावाटी की हवेलियों में मिलते हैं। शेखावाटी राजस्थान का वह क्षेत्र है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
समय के साथ मांडना कला में नए डिज़ाइन और पैटर्न जोड़े गए। इससे यह कला अधिक जटिल और खूबसूरत हो गई। बाद में, भारत के अन्य हिस्सों के समुदायों ने भी इसे अपनाया।
आज भी राजस्थान और भारत के कई हिस्सों में कलाकार मांडना पेंटिंग बनाते हैं। यह कला, जीवंत और सुंदर मानी जाती है। दुनिया भर में इसे पारंपरिक भारतीय कला के रूप में पहचान मिल रही है।
मांडना पेंटिंग में कई सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण सामग्री चावल का पेस्ट है। इसे चावल के आटे और पानी को मिलाकर बनाया जाता है। इस पेस्ट को दीवारों और फर्श पर लगाना आसान होता है। इसमें प्रयुक्त होने वाली एक और सामान्य सामग्री चाक पाउडर है। इसे चावल के आटे के साथ मिलाकर चमकीले रंग बनाए जाते हैं। लाल-भूरे रंग के लिए गेरू पाउडर का उपयोग होता है, जो एक प्रकार की प्राकृतिक मिट्टी है। इसे चावल के आटे के साथ मिलाने पर इसे लगाना आसान हो जाता है।
इसके अलावा, हल्दी (जो एक प्राकृतिक रंग है) का भी मांडना कला में इस्तेमाल होता है। हल्दी को चावल के आटे या चाक पाउडर के साथ मिलाकर चमकीला पीला रंग बनाया जाता है।
आइए, अब एक नज़र भारत में प्रसिद्ध गुफ़ाओं पर डालते हैं, जहाँ के गुफ़ा चित्र पूरी दुनियां में लोकप्रिय हैं:
1. अजंता गुफ़ा के चित्र: अजंता की गुफाएँ महाराष्ट्र के किले से करीब 100 किमी दूर स्थित हैं। ये गुफाएं बौद्ध धर्म के इतिहास को समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। यहां के चित्र महायान संप्रदाय में बहुत अहम् माने जाते हैं। इन गुफ़ाओं के भित्ति चित्रों में बुद्ध के जीवन से जुड़ी कहानियाँ, कई सुंदर आकृतियाँ और सजावट दिखाई गई हैं।
2. एलोरा गुफ़ा के चित्र: एलोरा गुफ़ाएं, क्रीचर से लगभग 18 मील की दूरी पर हैं। यहां पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की शक्ति स्वरूप के कई भित्ति चित्र हैं। इसके अलावा, इन गुफ़ाओं में अप्सराओं और शैवों का भी बहुत सुंदर दृश्य बनाया गया है।
3. एलीफ़ेंटा गुफ़ाएं : एलीफ़ेंटा गुफ़ाएं, महाराष्ट्र के एलीफ़ेंटा द्वीप पर स्थित हैं। यहाँ की दीवारों पर चित्रकला, 8वीं सदी में बनी थी। मुंबई से कई लोग, नाव के ज़रिए इस द्वीप तक पहुंचते हैं। द्वीप पर एक छोटी सी पैदल यात्रा के बाद गुफ़ाओं तक पहुंचा जा सकता है।
सबसे पहले, इन गुफ़ाओं को प्लास्टर से सजाया गया था। वही पर चित्र बनाए गए थे। लेकिन आज, इन रचनाओं के केवल कुछ ही भाग सुरक्षित बचे हैं। महाराष्ट्र में अन्य महत्वपूर्ण गुफ़ाओं में भाजा गुफ़ाएं , कन्हेरी गुफ़ाएं , कर्सम्बल गुफ़ाएं और कुडा गुफ़ाएं शामिल हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2d2574pk
https://tinyurl.com/2d72tul6
https://tinyurl.com/2d9r33c9
चित्र संदर्भ
1. भीमबेटका गुफ़ा चित्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अजंता की गुफाओं में पद्मपाणि के भित्ति चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. आधुनिक समय के भित्ति चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मांडना पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अजंता की गुफ़ाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. एलीफ़ेंटा गुफ़ा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)